Nothing found in pegasus पेगासस में कुछ नहीं मिला

Nothing found in pegasus

वेद प्रताप वैदिक

Nothing found in pegasus पेगासस में कुछ नहीं मिला

Nothing found in pegasus  इजराइल से 500 करोड़ रु. में खरीदे गए पेगासस नामक जासूसी यंत्र की जांच में कुछ भी नहीं मिला। भारत सरकार पर यह आरोप था कि इस यंत्र के जरिए वह भारत के लगभग 300 नेताओं, पूंजीपतियों, पत्रकारों और महत्वपूर्ण नागरिकों पर जासूसी करती है।

https://jandhara24.com/news/102083/international-yoga-day-many-celebrities-including-home-minister-sahu-mp-saroj-pandey-did-yoga-gave-these-messages/

यह खबर जैसे ही ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में छपी भारत में तूफान-सा आ गया। संसद ठप्प हो गई, टीवी चैनल और अखबारों में धमाचौकड़ी मचने लगी और सरकार हतप्रभ हो गई। सरकार की घिग्घी ऐसी बंधी कि इस खबर को उससे न निगलते बन रहा था, न उगलते।

न तो वह संसद के सामने बोली और न ही अदालत के सामने। उसने बस, एक ही बात बार-बार दोहराई कि यह भारत की सुरक्षा का मामला है। गोपनीय है। यदि अदालत कहे तो वह जांच बिठा सकती है कि क्या आतंकवादियों, अपराधियों और तस्करों के अलावा भी किंही नागरिकों पर यह निगरानी रखी जाती है? अदालत ने सरकार को यह मौका देने की बजाय खुद ही इस जासूसी यंत्र पर जांच बिठा दी। जांच समिति में तीन विशेषज्ञ रखे गए और उसकी अध्यक्षता एक सेवा-निवृत्त जज ने की।

वह कमेटी तो बड़े योग्य और निष्पक्ष लोगों की थी लेकिन अब उसने अपने लंबी-चौड़ी रपट तीन हिस्सों में पेश की तो देश में फिर हंगामा खड़ा हो गया है, क्योंकि भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा है कि उस रपट की मुख्य बातों को पढऩे पर लगता है कि इस जांच में सरकार ने रत्तीभर भी सहयोग नहीं किया है। सरकार का जो रवैया अदालत के सामने था, वही जांच समिति के सामने भी रहा।

आश्चर्य इस बात पर है कि जो रवैया सरकार का रहा है, वही रवैया उन ज्यादातर लोगों का भी रहा है, जिन 300 लोगों के मोबाइल फोनों की जांच होनी थी। 300 में से सिर्फ 29 लोगों ने जांच के लिए फोन दिए। बाकी लोग चुप्पी मार गए याने जो हल्ला मचा था, वह हवाई था। उन 29 फोनों की तकनीकी जांच से विशेषज्ञों को मालूम पड़ा कि उनमें से एक पर भी पेगासस के जासूसी यंत्र की निगरानी नहीं थी। सिर्फ पांच फोनों पर मेगावेअर पाया गया। याने पेगासस को लेकर खाली-पीली हल्ला मचाया जा रहा है।

यदि यह सच है तो सरकार ने इस कमेटी के साथ खुलकर सहयोग क्यों नहीं किया? इसका मतलब दाल में कुछ काला है लेकिन जिन लोगों को अपनी निगरानी का शक है, उनकी दाल ही काली मालूम पड़ रही है। पहले तो 300 में से सिर्फ 29 लोग ही जांच के लिए आगे आए और उन 29 ने भी कह दिया कि उनके नाम प्रकट नहीं किए जाएं।

इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि सरकार से भी ज्यादा हमारे नेता, पूंजीपति, पत्रकार और अन्य लोग डरे हुए हैं।

Uncertainty in Jharkhand too झारखंड में भी अनिश्चितता
सरकार अपने अवैध कारनामों को छिपाना चाहती है तो ये देश के महत्वपूर्ण लोग अपने काले कारनामों पर पर्दा डाले रखना चाहते हैं। यदि आप कोई अवैध या अनैतिक काम नहीं कर रहे हैं तो आपको उसे छिपाने की क्या जरुरत है?

फिर भी नागरिकों की निजता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह जरुरी है कि सरकार द्वारा की जा रही जासूसी निरंकुश न हो। राज्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जासूसी कड़वी दवाई की तरह है लेकिन इसे रोजमर्रा का भोजन बना लेना उचित नहीं है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU