Congress power broker कांग्रेस के पॉवर ब्रोकर

Congress power broker

Congress power broker कांग्रेस के पॉवर ब्रोकर

Congress power broker जब कांग्रेस ने समझ लिया है कि वर्तमान दौर में विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए सडक़ों पर उतरना ही रास्ता है, सुख-सुविधा बढ़ाने के मकसद से राजनीति में लोगों का अलग रास्ता ढूंढना स्वाभाविक ही है।

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सौवीं वर्षगांठ के मौके पर दिसंबर 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि कांग्रेस में सत्ता के दलालों (पॉवर ब्रोकर्स) ने गहरी पैठ बना ली है, जिनसे पार्टी को मुक्त कराना उनका मकसद है। बाद का अनुभव यह रहा कि राजीव गांधी पार्टी से पॉवर ब्रोकर्स को तो दूर नहीं कर पाए, उलटे सत्ता के दलालों ने उन्हें अपने गहरे प्रभाव में ले लिया।

तब से कांग्रेस के कर्ता-धर्ता पॉवर ब्रोकर्स और दरबारी ही रहे हैं। उन ब्रोकर्स ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन असल में पार्टी के पास सत्ता ही नहीं रहेगी। अधिक से अधिक उनका अनुमान यह होगा कि आम लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत अगर कभी पार्टी सत्ता से बाहर हुई, तो फिर अगले चुनावी चक्र में वापस भी आ जाएगी।

Congress power broker उन्हें इसका तो कतई भान नहीं रहोगा कि एक दिन एक ऐसी सरकार बन जाएगी, जिसे आम चुनावी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हराना दुष्कर नजर आने लगेगा और विपक्ष में रहना जोखिम भरा हो जाएगा।

Congress power broker  अब जबकि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने समझ लिया है कि वर्तमान सरकार के दौर में विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए सडक़ों पर उतरना और लंबी पद यात्रा पर जाना ही रास्ता है, तो जो लोग सुख-सुविधा कायम रखने और उसे बढ़ाने के मकसद से राजनीति में आए हैं, उनका अपने लिए अलग स्थान और रास्ता ढूंढना स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। इसीलिए कांग्रेस को गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, उनके पहले कई दूसरे नेताओं के पार्टी छोडऩे और आनंद शर्मा जैसे नेताओं की नाराजगी पर शोक नहीं मनाना चाहिए।

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Congress power broker असल मे ऐसे नेता कोई समाधान नहीं, बल्कि कांग्रेस की आज की समस्या का एक बड़ा कारण हैं। उन्हें उनके फैसले पर छोड़ कर पार्टी को अपनी नई राह पर आगे बढऩा चाहिए। इस राह में उसे नए साथी और नए रहबर मिलेंगे। इस राह में पार्टी को नई ताकत और नई जान मिलने की पूरी संभावना है।

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Congress power broker शर्त सिर्फ यह है कि इस राह पर कांग्रेस ईमानदारी और पूरी गंभीरता से चले। राहुल गांधी ने इसे तपस्या कहा है, तो उम्मीद है कि वे और उनके साथी इसमें खरा उतरने के लिए बलिदान देने को तैयार होंगे, जो पॉवर ब्रोकर्स के वश की बात नहीं है।

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