हरिशंकर व्यास
Uncertainty in Jharkhand too झारखंड में भी अनिश्चितता
Uncertainty in Jharkhand too भाजपा एक प्रतिष्ठा की लड़ाई झारखंड में भी हारी थी। पांच साल तक राज्य में डबल इंजन की सरकार चली थी। कथित तौर पर खूब काम भी हुआ और प्रधानमंत्री सहित सभी नेताओं ने जम कर प्रचार भी किया। भाजपा ने कम से कम 50 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन उसे सिर्फ 25 सीटें मिलीं और उसके सीटिंग मुख्यमंत्री चुनाव हार गए। इसके बाद चुनाव पूर्व गठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। उसके बाद से ही सरकार को केंद्रीय एजेंसियों के जरिए परेशान करने का काम शुरू हो गया।
सरकार बनते ही भाजपा के नेता दावा करने लगे कि यह सरकार नहीं चलेगी। कहा जाने लगा कि कांग्रेस के एक दर्जन विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और सरकार गिर जाएगी। सोचें, राज्य में सरकार बनने के चार महीने बाद ही कोरोना की महामारी शुरू हो गई। उसी महामारी के बीच एक तरफ केंद्रीय एजेंसियों की तलवार तो दूसरी ओर कांग्रेस तोड़ कर सरकार गिराने का प्रयास।
भाजपा के इस निरंतर प्रयास का नतीजा यह हुआ है कि झारखंड अनिश्चितता के भंवर में फंसा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चौतरफा घेराबंदी की गई है। चुनाव आयोग ने उनकी सदस्यता खत्म करने की सिफारिश कर दी तो भाजपा इस तैयारी में है कि किसी तरह से वैकल्पिक सरकार न बन पाए और बने तो वह चल न सके। इसका ताना-बाना कैसे बुना गया है वह किसी अपराध कथा की तरह है।
मुख्यमंत्री के खिलाफ राज्यपाल से शिकायत की गई, जो चुनाव आयोग तक पहुंची। मुख्यमंत्री, उनके परिवार के सदस्यों और करीबी सहयोगियों के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई, जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है। सरकार बनने के थोड़े समय बाद ही मुख्यमंत्री के पिता शिबू सोरेन और उनके परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ शिकायत लोकपाल में की गई, जिसका फैसला आना है।
इन सबके बीच झारखंड में केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई जारी रही। राज्य की खनन सचिव के यहां छापा पड़ा और उनको गिरफ्तार किया गया। उसके बाद मुख्यमंत्री के राजनीतिक प्रतिनिधि को यहां छापा पड़ा और उनको गिरफ्तार किया गया। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार से केंद्रीय एजेंसी पूछताछ कर रही है। सरकार के करीबी माने जाने वाले कारोबारियों के यहां छापे पड़े और एक चर्चित कारोबारी को गिरफ्तार किया गया। इन गिरफ्तार किए गए लोगों के जरिए सरकार के अन्य लोगों और मुख्यमंत्री के परिवार के लोगों पर भी तलवार लटकाई गई है।
इन सबके बीच राजनीतिक अभियान भी चलता रहा। एक साल पहले महाराष्ट्र के कुछ लोगों ने रांची जाकर विधायकों को तोडऩे का प्रयास किया, जिसका खुलासा होने के बाद कई लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए तीन लोग गिरफ्तार भी हुए। अभी फिर इसी प्रयास का भंडाफोड़ हुआ, जब कांग्रेस के तीन विधायक पैसे के साथ बंगाल पुलिस के हत्थे चढ़े। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो दूसरे विधायकों को तोडऩे के प्रयासों का खुलासा हुआ और भाजपा नेताओं के खिलाफ सरकार को अस्थिर करने, विधायकों को प्रलोभन देने के मुकदमे दर्ज हुए। इसमें भाजपा के एक मुख्यमंत्री का भी नाम है। अब भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के विधायक टूट जाएंगे तो जेएमएम के कई विधायक इस्तीफा दे देंगे आदि आदि।
Bjp भाजपा के लिए झारखंड क्यों मुश्किल?
भाजपा के नेता ट्विट करके केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से पहले ही सारी जानकारी देते रहते हैं। उनको पता होता है कि किसके यहां छापा पडऩा है, किसके खिलाफ फैसला आना है और कौन गिरफ्तार होने वाला है? सवाल है कि जब चुनाव पूर्व गठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है और भाजपा चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुई है तो वह इसे स्वीकार क्यों नहीं कर रही है? क्या भाजपा सत्ता में बने रहने को अपना अधिकार मान रही है?