International women’s day बुन्देली लोक संस्कृति में डाला गया नारी की केन्द्रीय भूमिका में प्रकाश
International women’s day झांसी ! उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी में “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ” के उपलक्ष्य में “ महिला: अतीत और वर्तमान” विषय पर सोमवार को आयोजित संगोष्ठी में अतिथियों ने अपने विचार व्यक्त किये और इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया।
International women’s day यहां राजकीय इंटर कॉलेज (जीआईसी) के सभागार कक्ष में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में राज्यमंत्री (दर्जा प्राप्त) और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष तथा बुंदेलखंड की संस्कृति के मर्मज्ञ हरगोविंद कुशवाहा ने प्राचीन समय से लेकर आज तक भारतीय परिपेक्ष्य मे महिलाओ के सांस्कृतिक योगदान को रेखांकित किया विशेष रूप से बुन्देली लोक संस्कृति मे नारी की केन्द्रीय भूमिका मे प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में नारी का शुरू से केवल सम्मान ही नहीं पूजन किया जाता है। समाज महिलाओं का हमेशा ऋणी रहेगा। विशिष्ट अतिथि डा़ नीति शास्त्री ने वक्तव्य मे महिलाओ मे आत्मविश्वास के संचार पर जोर दिया।
यूनीवार्ता की पत्रकार सोनिया पाण्डे ने सनातन परंपरा में ज्ञान के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि वैदिक काल में महिलाओ को बहुत सम्मानित स्थान प्राप्त था।
जिन महिलाओं ने ज्ञान को महत्व देते हुए उसे हासिल करने के लिए अथक प्रयास किया उन्हें समाज ने महिला ऋषियों की उपाधियों से विभूषित किया । सनातन परंपरा में हमेशा से ही ज्ञान पर बल दिया गया और उसे हासिल करने वाला फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरूष, उसको हमेशा सम्मानित स्तर पर रखा गया।
इसके बाद बाहरी आक्रमणों के मध्यकाल में देश में महिलाओं की स्थिति में काफी गिरावट आयी लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान में ही महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करते हुए उन्हें विभिन्न तरह की सुरक्षा मुहैया करायी गयी।
वर्तमान समय में उन्होंने केवल महिला होने के कारण किसी तरह का सम्मान मिलने की उम्मीद नहीं रखने की चेतावनी देते हुए सलाह दी कि यदि सही अर्थों में सम्मान हासिल करना है तो अपने अपने कार्यक्षेत्रों में सर्वोच्च ज्ञान हासिल कर तथा पूरी कर्मठता के साथ अपने काम को अंजाम दे । ऐसा करके न केवल समाज बल्कि स्वयं अपनी नजरों में भी सम्मान पाया जा सकता है।
एक समाचारपत्र से जुड़ी पत्रकार मेघा ने समाज में कार्य विभाजन ने महिलाओं और पुरूषों की कार्यों की प्रकृति ने महिलाओं को घर पर रहने और पुरूषों को बाहर निकलने की आजादी दी। कालांतर में काफी बदलाव आये और आज की बात करें तो महिलाएं भी पुरूषों के साथ बराबरी से काम कर रही हैं ऐसे में पहले जैसी बात आज नहीं है।
आज महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह खुद को साबित कर पुरूषों से बराबरी पर काम करने लगी हैं लेकिन इसके बावजूद कहीं न कहीं उन्हें आज भी वांछित सम्मान नहीं मिला है । इस ओर परिवार के स्तर से ही काम करने की दरकार है।
एक प्रादेशिक समाचार चैनल की एंकर सरिता सोनी ने सभी तरह की विषम परिस्थितियों के बीच महिलाओं को महत्व को रेखांकित करते हुए कहा “कोमल है तू, कमजोर नहीं, शक्ति का नाम ही नारी है।”
इससे पहले अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर सरस्वती मां एवं महारानी लक्ष्मीबाई के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया । अतिथियो का स्वागत करते हुए उप प्रधानाचार्य आलोक शांडिल्य ने कहा कि वीरांगना लक्ष्मीबाई की धरती पर महिलाओ का सम्मान करते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।
अतिथियो द्वारा जी आई सी मे कार्यरत महिलाओ को सम्मानित किया गया जिन महिलाओ का सम्मान हुआ उनमे सुधा नामदेव, ममता जैन, प्रीति खरे, प्रमिलेश निरंजन, मोहनी मिश्रा, अनीता राजपूत, रेखा कुशवाहा, किरन विनीता एवं विद्यालय के मिडडे मील मे कार्यरत नीलम एवं गीता की भी सम्मान किया गया। वही महिला पत्रकारों मे सोनिया पाण्डे, सरिता सोनी एवं मेघा को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर अतिथियो का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम के संयोजक सतीश कुमार सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष मे रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला और उन्हें न केवल महिलाओ बल्कि भारत वासियो के लिये प्रेरणास्रोत बताया । उन्होने इस अवसर पर भावुक होते हुये अपने जीवन मे काशी ओर झांसी की भूमिका का उल्लेख किया कि जिस तरह रानी लक्ष्मीबाई काशी मे पैदा हुई लेकिन उनकी कर्मभूमि झांसी बनी उसी तरह मेरी शिक्षा दीक्षा भी काशी मे हुई ओर यह मेरा सौभाग्य है कि मे वीरांगना की भूमि पर सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम का संचालन राहुल मिश्रा ने किया।