महिलाओं का अपमान या लोकतंत्र की विडंबना? पंचायत की बैठक में महिलाओं को जमीन पर बैठाया

देश में पंचायतों से लेकर संसद तक महिलाओं को नेतृत्व और समान अधिकार देने की बातें होती हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने के नाम पर योजनाएं चलाई जाती हैं। लेकिन हकीकत यह है कि ग्राम पंचायत स्तर पर ही उन्हें बैठने तक का सम्मान नहीं दिया जा रहा।

ग्रामवासी कहते हैं कि जब सचिव-सर्पंच खुद आराम से कुर्सी पर बैठकर कार्यवार ब्यौरा पेश करते हैं, तो जनता को भी वही सुविधा क्यों नहीं मिलती? आखिर जनता ही लोकतंत्र की असली ताकत है।

“जनता जनार्दन को सम्मान नहीं, अपमान”

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह घटना जनता जनार्दन का अपमान है।

“जब ग्राम पंचायत की बैठक में ही हमें जमीन पर बैठाया जा रहा है, तो बड़े मंचों पर समानता की बातें सिर्फ दिखावा लगती हैं।”

“सचिव-सर्पंच का काम जनता को सम्मान देना है, लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है।”

जिम्मेदारों की सोच पर सवाल

बैठक का यह दृश्य यह बताने के लिए काफी है कि जिम्मेदारों की सोच अभी भी जनता को बराबरी पर बैठाने के लिए तैयार नहीं है। लोकतंत्र का मूल भाव ही है सबको समान अधिकार और सम्मान, लेकिन यहां अमल में तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आई।

ग्राम पंचायतों का काम जनता को जोड़ना और उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाना है। अगर शुरुआत ही अपमान से होगी, तो विश्वास और भागीदारी कैसे बढ़ेगी?

ग्रामीणों की मांग

गांव के लोगों ने मांग की है कि भविष्य में होने वाली पंचायत बैठकों में आमजन के लिए भी टेबल-कुर्सी या उचित व्यवस्था की जाए, ताकि जनता और प्रतिनिधि बराबरी के साथ बैठ सकें।

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