Independent district स्वतंत्र जिला : मौन पड़ेगा भारी, अपेक्षाएं पूरी करने में जनप्रतिनिधि असफल

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राजकुमार मल

Independent district स्वतंत्र जिला : मौन पड़ेगा भारी, अपेक्षाएं पूरी करने में जनप्रतिनिधि असफल

Independent district भाटापारा- क्यों दें नेतृत्व का अवसर ? अस्तित्व में आते नए जिले के इस दौर में यह प्रश्न इसलिए उठाया जाने लगा है क्योंकि अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई। तब भी नहीं, जब अवसर था। इसलिए नए चेहरे की तलाश कठिन हो रही है क्योंकि स्वीकार्य चेहरा एक भी नहीं है।

Independent district दिशाहीन हो चली है विधानसभा क्षेत्र की राजनीति। नेतृत्व क्षमता भी नजर नहीं आती। पक्ष में नाम और चेहरे तो खूब हैं लेकिन स्वीकार्यता को लेकर ऊहापोह की स्थिति बन चुकी है। ऐसे में ‘बाहरी चेहरा’ आने वाले विधानसभा चुनाव में नजर आ सकता है।

Blind eye to constitutional institutions संवैधानिक संस्थाओं की आंखमिचौली

इधर विपक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी में ले-देकर एक ही चेहरा है लेकिन स्वतंत्र जिला को लेकर जिस गंभीरता की उम्मीद थी वह दिखाई नहीं दी । बाद के दिनों में अशासकीय संकल्प लाकर नाराजगी दूर करने के प्रयास असफल रहे।

चेहरे ही चेहरे

Independent district सूबे की कमान संभाल रही कांग्रेस को जीत के लिए इस विधानसभा क्षेत्र में भारी मशक्कत करनी होगी। भाटापारा विधानसभा के लिए चेहरे की खोज बेहद कठिन होगी क्योंकि सर्वमान्य नेता जैसी छवि किसी में नजर नहीं आती। कहा जा सकता है कि खोज में थकी आंखों को बाहर की तलाश करनी पड़े। बेहद कठिन होगा यह काम। स्थानीय की मांग ने जोर पकड़ा तो नए चेहरे की तलाश करनी होगी।

सुगबुगाहट असंतोष की

भारतीय जनता पार्टी। तीसरी पारी खेल रहे स्थानीय नेतृत्व के लिए आ रहा विधानसभा चुनाव आसान नहीं होने वाला। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि उपलब्धियों के पिटारे में ऐसा कुछ खास नहीं है जो जीत की जमीन तैयार करने में सक्षम हो। स्वतंत्र जिला को लेकर उनके मौन से नाराजगी इतनी ज्यादा है कि अब चुप रहना सही माना जा रहा है। दूसरी पंक्ति याने नए चेहरे को उभरने नहीं देने की भी बातें हो रहीं हैं।

मुद्दों का अंबार

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सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे। बेलगाम यातायात। सिंचाई साधनों के विस्तार पर रोक। प्रमुख जिला कार्यालयों की गैरमौजूदगी। सुस्त, सरोवर हमारी, धरोहर योजना। यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो सवाल बनते जा रहे हैं। ताजा मामला स्वतंत्र जिला को लेकर कांग्रेस और भाजपा की चुप्पी का है।

 

 

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