राजधानी रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हो चुके करीव 20 से अधिक प्रोफेसर पिछले अक्टूबर 2024 से आज दिनांक तक अपनी पेंशन न मिलने से परेशान हैं। उनका कहना है कि सेवानिवृत्त होने के बाद भी अभी तक उनको पेंशन नहीं मिली है, जबकि कायदे से सेवानिवृत्ति के बाद 90% पेंशन मिल जानी चाहिए थी, लेकिन वित्त विभाग कंट्रोलर उमेश अग्रवाल द्वारा उनकी पेंशन नहीं दी जा रही है। उन्होंने बताया कि वित्तीय विभाग के कंट्रोलर उमेश अग्रवाल सरकारी नियमों की अपने ढंग से व्याख्या करके सेवानिवृत्त लोगों को परेशान कर रहे हैं।

वित्तीय आदेश 2007 और 2010 के तहत सेवानिवृत्ति के पहले ही पेंशन से जुड़ी सारी प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए और ऐसा न हो पाने की स्थिति में सारी जिम्मेदारी वित्त विभाग के कंट्रोलर की होती है और उसके ऊपर कार्रवाई की भी बात कही गई है, परंतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हो चुके करीब 20 से अधिक प्रोफेसर तकरीबन एक से डेढ़ साल से अपने पेंशन का इंतजार कर रहे हैं। वहीं पेंशनर शिक्षक संघ के अध्यक्ष एन. के. चौबे ने बताया कि प्रोफेसरों को वित्त विभाग के कंट्रोलर उमेश अग्रवाल द्वारा जानबूझकर प्रताड़ित किया जा रहा है। 2024 तक इसी प्रक्रिया के तहत प्रोफेसरों को पेंशन दी जा रही थी परंतु इसके बाद से अब पेंशन के लिए प्रोफेसरों को परेशान किया जा रहा है।
इस मामले में उमेश अग्रवाल का कहना है कि 1986 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से समायोजित हुए शिक्षकों को 5 साल की अवधि पीएचडी करने हेतु दी गई थी, लेकिन कई प्रोफेसरों ने तय समय सीमा तक पीएचडी नहीं की जिसके चलते उनकी पेंशन की प्रक्रिया में दिक्कतें आ रही हैं और ऑडिट होने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं इस पर प्रोफेसर एन.के. चौबे ने बताया कि उमेश अग्रवाल जानबूझकर प्रोफेसरों को परेशान कर रहे हैं, उन्हीं के द्वारा ऑडिट की प्रक्रिया पूरा होने के बाद पुनर्निरीक्षण के आदेश दिए गए थे। रही बात पीएचडी की तो 1991 में विश्वविद्यालय द्वारा आदेश दिया गया था कि पीएचडी करने के लिए पहले 5 साल की सेवा देना अनिवार्य है। साथ ही उन्होंने कहा कि 1986 से लेकर अब तक की सेवा के दौरान उन्हें किसी भी प्रकार का नोटिफिकेशन पीएचडी को लेकर नहीं दिया गया था और सारी सुविधा भी दी जा रही थी, परंतु जब अचानक से पेंशन का समय आता है, तो पीएचडी का बहाना दिया जा रहा है। जबकि इससे पहले जिन प्रोफेसरों को पेंशन मिली उनमें भी कई लोगों ने पीएचडी नहीं की थी। जब उन प्रोफेसरों को पेंशन मिल सकती है तो बाकी के प्रोफेसरों को क्यों नहीं दिया जा रहा है। इसके ऊपर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि इस पर भी जांच और कार्रवाई होनी चाहिए।
पेंशन प्रक्रिया के दौरान हो रही तकलीफों में जो सबसे बड़ा मुद्दा सामने आया है, वह यह है कि रिटायरमेंट की उम्र की श्रेणी को 62 वर्ष तक रखा गया है। ऐसा वित्त विभाग के कंट्रोलर और विश्वविद्यालय के प्रशासन द्वारा कहा जा रहा है, लेकिन 65 साल तक प्रोफेसर काम किए हैं और उनकी पेंशन 62 साल की उम्र से बनाई जाने की बात कही जा रही है। इस पर एन. के. चौबे ने कहा कि UGC के नियम में और छत्तीसगढ़ गोवेर्मेंट ने 2012 के समय से ही रिटायरमेंट की उम्र की श्रेणी को 65 वर्ष कर दिया हैं। इसके आलावा अगर 3 साल उन्होंने अतिरिक्त पढ़ाया है और वह प्रोफेसर नहीं हैं तो ऐसे में जिन बच्चों को उन्होंने पढ़ाया है, उनका रिजल्ट तो शून्य माना जाएगा और हजारों बच्चों का भविष्य इससे खतरे में आ जाता है। एक तरफ विश्वविद्यालय 65 साल तक पढ़ने की इजाज़त देता है और रिटायरमेंट की तारीख भी 65 साल में तय करता है और दूसरी तरफ पेंशन देने के समय में 62 साल तक की सेवा को ही मान्यता दी जाती है। ये विश्वविद्यालय और वित्त विभाग कंट्रोलर का दोहरा चरित्र है। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर वित्त विभाग के कंट्रोलर उमेश अग्रवाल द्वारा दबंगई की जा रही है।
पेंशनर शिक्षक संघ के अध्यक्ष एन. के. चौबे ने बताया कि अपनी बातों को लेकर वह राज्यपाल, विश्वविद्यालय के कुलपति, कृषि आयुक्त और कृषि सचिव शैला निगार के पास जा चुके हैं, लेकिन उनकी तरफ से केवल आश्वासन दिया जा रहा है। वहीं उन्होंने यह भी बताया कि जब वह अपनी शिकायतें लेकर कुलपति के पास जाते हैं तो कुलपति उमेश अग्रवाल को ही हटवाने की बात कहते हैं। कुलपति कहते हैं कि आप लोग कुछ भी करके उमेश अग्रवाल को वहां से हटवा दीजिए, जिससे सीधा-सीधा समझ में आता है कि कुलपति के हाथ में कुछ नहीं है। उनसे विश्वविद्यालय नहीं संभाली जा रही है और उमेश अग्रवाल मनमानी कर रहे हैं। एन. के. चौबे ने कहा कि अगर जल्द ही उनकी पेंशन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो वह सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।