How possible is opposition unity विपक्षी एकता कितनी संभव?

How possible is opposition unity

अजीत द्विवेदी

How possible is opposition unity विपक्षी एकता कितनी संभव?

How possible is opposition unity भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। पार्टी एक-एक लोकसभा सीट पर काम कर रही है। पंजाब की पटियाला लोकसभा सीट कैसे जीत सकते हैं इस योजना के तहत कैप्टेन अमरिंदर सिंह को पार्टी में लाया गया है तो पिछली बार हारी साउथ गोवा लोकसभा सीट कैसे जीतेंगे, इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत को पार्टी में लिया गया है। यह अभी से तय माना जा रहा है कि पटियाला की मौजूदा कांग्रेस सांसद परनीत कौर अगली बार भाजपा की टिकट पर लड़ेंगी और साउथ गोवा सीट पर भाजपा दिगंबर कामत को उतारेगी।

How possible is opposition unity भाजपा एक एक सीट की रणनीति पर बारीकी से काम कर रही है तो साथ ही हर प्रदेश में छोटी छोटी पार्टियों को अपने साथ जोडऩे या उनका विलय भाजपा में कराने की योजना पर भी काम हो रहा है। बिहार के दौरे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी मैसेज दिया। इसके बरक्स अगर विपक्ष की राजनीति को देखें तो अभी सब कुछ बहुत बिखरा हुआ दिखेगा। कई बड़े नेता विपक्षी एकता के लिए काम कर रहे हैं लेकिन कम से कम अभी यह कोई ठोस और मूर्त रूप लेता नहीं दिख रहा है।

How possible is opposition unity इसका बुनियादी कारण कांग्रेस का विपक्षी पार्टियों के प्रति नजरिया है और आम आदमी पार्टी की राजनीति है। कांग्रेस पहले भी यह धारणा बनाए हुई थी कि विपक्षी एकता उसको केंद्र में रख कर ही संभव है। लेकिन अब जब राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई है और उसे दक्षिण के राज्यों में अच्छा रिस्पांस मिला है उससे उत्साहित कांग्रेस अब विपक्षी पार्टियों के प्रति अपमानजनक बातें करने लगी है। कांग्रेस को छोड़ कर विपक्षी एकता की बात करने वालों को जयराम रमेश ने मूर्खों के स्वर्ग में रहने वाला बताया है।

हालांकि सारी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस को छोडऩे के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस का अपना एटीट्यूड ऐसा है, जिससे विपक्षी पार्टियां बिदकेंगी। खास कर उन राज्यों में, जहां कांग्रेस मजबूत है या कांग्रेस को अपने लिए कोई संभावना दिख रही है। कर्नाटक, तेलंगाना, केरल आदि राज्यों में कांग्रेस का यह एटीट्यूड विपक्षी एकता के रास्ते में बाधा बनेगा तो कांग्रेस जिन राज्यों में बहुत कमजोर है, जैसे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में वहां की बड़ी प्रादेशिक पार्टियों की कांग्रेस के प्रति सोच विपक्षी एकता को पटरी से उतार सकती है।

इसके अलावा आम आदमी पार्टी की राजनीति भी विपक्षी एकता के रास्ते में बाधा है। आम आदमी पार्टी बड़ी तेजी से एक के बाद एक राज्य में अपना दायरा फैला रही है और उसके लिए भाजपा से बड़ा राजनीतिक दुश्मन कांग्रेस है। कांग्रेस भी उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान रही है। जिस तरह से देश के अनेक राज्यों में अलग अलग क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को हटा कर उसका स्थान ले लिया उसी तरह आम आदमी पार्टी इस प्रयास में है कि जहां कोई क्षेत्रीय पार्टी नहीं है और कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है वहां वह कांग्रेस को रिप्लेस करके उसकी जगह ले। इस योजना के तहत आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में सफलता पाई और अब आगे उसकी नजर गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों पर हैं, जहां अब भी कांग्रेस एक मजबूत ताकत है। सो, कांग्रेस नेताओं का एटीट्यूड और आप की राजनीति विपक्ष को एकजुट होने से रोकेंगे।

अब सवाल है कि अगर विपक्षी पार्टियां साथ आती हैं तो कैसे आएंगी? उसका क्या फॉर्मूला होगा, जिससे साझा विपक्ष भाजपा को चुनौती दे सकेगा? यह तो कतई संभव नहीं है कि सभी पार्टियों का सभी राज्यों में तालमेल हो। क्योंकि ज्यादातर पार्टियां एक से ज्यादा राज्य में लडऩे लायक नहीं हैं। उनके पास न संगठन है और न नेता हैं। इसलिए राज्यवार विपक्ष की साझेदारी बने और विपक्ष उन सीटों पर ध्यान केंद्रित करे, जहां पिछले चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर मिली थी या भाजपा जहां कम वोटों के अंतर से जीती है। इसकी रणनीति बनाते हुए यह ध्यान रखना होगा कि इन सीटों पर भाजपा भी अपनी रणनीति बना रही है।

भाजपा 144 ऐसी सीटों पर ध्यान केंद्रित किए हुए है, जहां वह पिछली बार चुनाव हारी थी और इसके अलावा 77 ऐसी जीती हुई सीटों पर उसका फोकस है, जहां वह पिछली बार एक लाख से कम वोट के अंतर से जीती थी। इसमें कई सीटें हैं, जो पार्टी कुछ हजार वोट से जीती है। झारखंड की खूंटी लोकसभा सीट पर भाजपा दो हजार वोट से तो लोहरदगा में 10 हजार और दुमका में 45 हजार वोट के अंतर से जीती थी। इन सीटों पर भाजपा की विशेष तैयारी हो रही है। तभी विपक्षी पार्टियों को भी ऐसी सीटों पर अपनी साझेदारी बनाने और साझा उम्मीदवार उतारने की योजना पर काम करना चाहिए।

चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली संस्था सीएसडीएस ने भाजपा की कम अंतर से जीती सीटों का विश्लेषण किया है, जिससे पता चलता है कि ऐसी सीटों पर पिछले चुनाव में दूसरे और तीसरे स्थान पर रही विपक्षी पार्टियों के वोट जोड़ दें तो ज्यादातर सीटों पर भाजपा हार जाएगी। यानी विपक्ष का वोट बंटने से भाजपा जीती है। अगर एक लाख से कम अंतर से हारी 77 सीटों पर विपक्ष साझा उम्मीदवार उतार दे तो वह 50 सीटें जीत सकती है और 10-12 सीटें पर भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। अगर ऐसा हो जाता है तो भाजपा की सीटें 303 से कम होकर बहुमत के 272 के आंकड़े से काफी नीचे आ जाएंगी। यह बहुत सरल विश्लेषण है। इसमें यह माना गया है कि एक लाख वोट से ज्यादा अंतर से जीती हुई सारी सीटें भाजपा फिर जीतेगी ही। ऐसी सीटों की संख्या 227 है। इनमें से 105 सीटें तो ऐसी हैं, जिन पर भाजपा तीन लाख से ज्यादा अंतर से जीती है और 59 सीटें ऐसी हैं, जिन पर उसकी जीत का अंतर दो से तीन लाख वोट का था। ऐसी सीटों पर भाजपा को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है।

हालांकि इस बारे में पक्के तौर पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले करीब 10 छोटे-बड़े राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। राज्यों के चुनाव नतीजों से बहुत कुछ बदलेगा। अभी जो धारणा बन रही है कि भाजपा जब 2024 का चुनाव लडऩे जाएगी तो उसके खिलाफ 10 साल की एंटी इन्कंबैंसी होगी और महंगाई, बेरोजगारी आदि समस्याओं की वजह से भाजपा को नुकसान हो सकता है, वह धारणा राज्यों के चुनाव नतीजों से प्रभावित होगी। अगर भाजपा हारती है तो उसके लिए 2024 में मुश्किल आएगी। लेकिन उससे पहले अभी का माहौल देख कर लगता नहीं है कि विपक्ष किसी तरह से भाजपा को सवा दो सौ सीटें से नीचे रोक सकता है। सबसे बड़ी पार्टी भाजपा रहेगी, यह तय दिख रहा है। भाजपा की सीटें कम करना भी तभी संभव है, जब विपक्षी पार्टियों में पूरी तरह से एकजुटता स्थापित हो। अगर ऐसा नहीं हुआ और विपक्ष के वोट बंटे तो फिर भाजपा को रोकना मुश्किल होगा। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसे भी उन्हीं राज्यों और उन्हीं सीटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जहां वह पिछले चुनाव में कम अंतर से हारी थी और जहां उसका जनाधार और संगठन दोनों हैं। अगर कांग्रेस इस तरह से लक्षित राजनीति करती है तो वह 30 से 35 सीटें बढ़ा सकती है यानी उसकी सीटें 80 से ऊपर जा सकती हैं।

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