Global pandemic : वैश्विक महामारी बन सकती है डाईबीटीज, कम लागत में इंसुलिन का अविष्कार, पढ़िए पूरी खबर

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रमेश गुप्ता

Global pandemic  : डाईबीटीज के लिए कम लागत और लंबे समय तक चलने वाले इंसुलिन का अविष्कार 

Global pandemic : भिलाई.. आधुनिक जीवनशैली को देखते हुए डाईबीटीज के खतरे को कम करके नहीं आंका जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, डाईबीटीज मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है और आने वाले दशकों में यह एक वैश्विक महामारी बन सकती है। टाइप 1 और उन्नत चरण के टाइप 2 डाईबीटीज के सभी मरीज ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं, एक हार्मोन जो आम तौर पर अग्न्याशय द्वारा स्रावित होता है।

अक्सर, यह इंजेक्शन के माध्यम से किया जाता है जिसे प्रतिदिन लगाने की आवश्यकता होती है। यह प्रक्रिया रोगी के लिए असुविधाजनक और दर्दनाक है और इससे हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्लड शुगर लेवल का खतरा भी होता है, जो घातक हो सकता है। आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. सुचेतन पाल के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने शिव नादर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ‘स्मार्ट इंसुलिन’ विकसित करने पर काम किया है। यह फॉर्मूलेशन जैव प्रचुर सामग्रियों से विकसित किया गया है और इसने डाईबीटीज के उपचार में काफी संभावनाएं दिखाई हैं।

इस अध्ययन में विकसित सामग्री दो दिनों के लिए के लिए इंसुलिन जारी करती है, जबकि नियमित इंसुलिन 12 घंटे तक काम करता है। मानव परीक्षण में जाने से पहले इसे डाईबीटीक चूहों में परीक्षण कर के देखा गया था। यदि मानव परीक्षण सफल होता है, तो रोगियों के इंसुलिन इंजेक्शन की आवृत्ति कम हो जाएगी और उनके स्वास्थ्य में सुधार की संभावना होगी।

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इस आशाजनक फॉर्मूलेशन का मूल्यांकन कम लागत और लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन और मनुष्यों में संभावित कृत्रिम अग्न्याशय के लिए किया जाएगा। यह कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस (ACS) एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेज में प्रकाशित हुआ है। यह शोध आईआईटी भिलाई, एचडीएफसी-सीएसआर अनुदान, डीएसटी और डीबीटी इनोवेटिव यंग बायोटेक्नोलॉजिस्ट अवार्ड द्वारा समर्थित है।

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