Global index of hunger मोदी के स्वर्ण काल में भूख, कतई नहीं!

Global index of hunger

हरिशंकर व्यास

Global index of hunger दुनिया के भूखे लोगों में से 24 फीसदी का घर भारत है

Global index of hunger पिछले दिनों दुनिया की दो जानी मानी संस्थाओं की ओर से तैयार किया जाने वाला ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ। मतलब देशों में भूख का वैश्विक सूचंकाक। इसमें भारत छह स्थान और गिर कर 107वें स्थान पर पहुंच गया है। वह पिछले साल 101वें स्थान पर था। उससे पहले के साल 94वें स्थान पर था। यानी मुफ्त अनाज बांटने की योजना जैसे जैसे आगे बढ़ी है वैसे वैसे भारत में भूख और कुपोषण बढ़ता गया है।

Global index of hunger कुछ समय पहले ही भारत ‘गरीबी की राजधानी’ बना। भारत ने नाइजीरिया को हटा कर उसकी जगह ली। अब भारत कुपोषण की राजधानी भी घोषित है। दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित लोग खास कर बच्चे भारत में रहते हैं। जिन बच्चों की लंबाई उम्र के मुताबिक नहीं है या लंबाई के अनुपात में वजन कम है, ऐसे बच्चों में दुनिया के 19 फीसदी से ज्यादा भारत में हैं।

Global index of hunger दुनिया के भूखे लोगों में से 24 फीसदी का घर भारत है। यानी दुनिया का हर चौथा भूखा व्यक्ति भारतीय है। भूखे लोगों की संख्या और उनकी स्थिति के मामले में पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि सारे देश भारत से अब बेहतर स्थिति में हैं। सबकी रैंकिंग भारत से अच्छी है। मगर जिस दिन से यह रिपोर्ट आई है भारत सरकार इसे खारिज करने में लगी है। हकीकत मानने, उसमें सुधार करने की बजाय भारत सरकार हकीकत बताने वाले के पीछे पड़ी हई है।

Global index of hunger बेरोजगारी के आंकड़े खुद संघ के दत्तात्रेय होसबाले ने बताए। उन्होंने कहा था कि भारत में चार करोड़ लोग बेरोजगार हैं। बेरोजगारी की क्लासिकल परिभाषा के मुताबिक ऐसे लोग,जो अपनी काबलियत और क्षमता के मुताबिक काम नहीं पा रहे है। ऐसे लोगों की संख्या चार से साढ़े चार करोड़ बताई जा रही है। लेकिन इससे वास्तविक तस्वीर जाहिर नहीं होती है क्योंकि करोड़ों नौजवानों में कोई योग्यता नहीं है। उन्होंने पढ़ाई नहीं की है और न उनको पास कोई तकनीकी डिग्री है।

दूसरे, आठवीं पास लोगों के लिए जो नौकरियां हैं उनमें भी बीए, एमए पास लोग लाईन में हैं और नौकरी ले रहे हैं। इसलिए बेरोजगारी की स्थिति का पता हो ही नहीं सकता है। जमीन पर बेरोजगारी कितनी भयावह है इसका कुछ अंदाजा पिछले दिनों लोगों को तब लगा, जब उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक पात्रता परीक्षा यानी पीईटी का आयोजन हुआ। करीब साढ़े 37 लाख लोगों ने इसके लिए आवेदन किया था। परीक्षा के दिन पूरे राज्य के रेलवे स्टेशनों पर जैसी भीड़ और भगदड़ थी वह अभूतपूर्व थी।

नौजवान ट्रेनों में आगे पीछे और अगल बगल लटक कर परीक्षा देने पहुंचे। इसके बावजूद लाखों बच्चे समय पर परीक्षा केंद्र तक नहीं पहुंच सके। सोचें, प्रधानमंत्री अगले साल दिसंबर तक 10 लाख नौकरी देने की बात कर रहे हैं और एक ही राज्य में साढ़े 37 लाख लोग नौकरी के लिए जान दांव पर लगा रहे हैं!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU