Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -महिला आरक्षण बिल: नए भवन से नई उम्मीद की किरण

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Women’s Reservation Bill: A ray of new hope from the new building

– सुभाष मिश्र

देश की संसद के नए भवन से कार्यवाही के पहले दिन को ऐतिहासिक बनाते हुए केन्द्र सरकार ने महिला आरक्षण बिल को सदन में पेश कर दिया। इस बिल को कानून मंत्री ने पेश किया। इसे नारी शक्ति वंदन विधेयक का नाम दिया गया है। इसमें कुछ बातें हैं जिस पर विपक्ष को ऐतराज हो सकता है। बात इसमें शामिल प्रमुख बात की करें तो महिलाओं के लिए आरक्षण नई जनगणना के बाद परिसीमन होगा, उसके बाद महिला आरक्षण लागू किया जा सकेगा। मतलब महिला आरक्षण के लागू होने की राह में अब भी दो रोड़े हैं- पहला जनगणना और दूसरा परिसीमन। इससे संकेत मिलता है कि महिला आरक्षण का प्रावधान 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ही लागू हो पाएगा। इस बिल में कहा गया है कि आरक्षण शुरू होने के 15 साल बाद प्रावधान प्रभावी होना बंद हो जाएंगे। विपक्ष को इस बात पर भी ऐतराज है कि आखिर महिला आरक्षण के लिए 15 वर्ष की अवधि ही क्यों सीमित रखी गई है। नारी शक्ति वंदन विधेयक में यह भी कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें भी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। विधेयक के अनुसार, प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की अदला-बदली होगी।
महिला आरक्षण बिल को देश के इतिहास में सबसे पहले सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने संसद में पेश किया था। लेकिन गठबंधन के भीतर ही इसको लेकर विरोध होने के कारण ये सफल नहीं हो पाया। इसके बाद से लगभग हर सरकार ने इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश की लेकिन इस पर कामयाबी नहीं मिल पाई है। कुछ दिलचस्प वाकये इस बिल के साथ जुड़े हैं साल 1998 से 2004 के बीच बीजेपी की अगुवाई में एनडीए सरकार ने कई बार महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की कोशिश की। पहली बार 13 जुलाई 1998 को लोकसभा पहली बार 13 जुलाई 1998 को लोकसभा में उस समय घमासान मच गया, जब कानून मंत्री एम थंबी दुरई ने इस विधेयक को सदन के पटल पर पेश करने की कोशिश की लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इसका पुरजोर विरोध किया। इस हंगामे के बीच आरजेडी के सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव ने लोकसभा के. स्पीकर जी एम सी बालयोगी से बिल की कॉपी छीन ली और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कानून मंत्री रहे राम जेठमलानी ने 23 दिसंबर 1999 को इस बिल को पेश किया। लेकिन इस बार फिर सपा, बसपा और आरजेडी ने इसका विरोध किया। इसके बाद 2000, 2002 और 2003 में भी विधेयक को पारित कराने की कोशिशें की गईं लेकिन कांग्रेस, लेफ्ट के समर्थन के बाद भी बिल पास नहीं हो पाया। छह मई 2008 को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा में पेश किया। लेकिन इसे जल्द ही कानून और न्याय की स्थाई समिति के समक्ष भेज दिया गया। सपा, जदयू और आरजेडी के विरोध के बीच इसे संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया। 25 फरवरी 2010 को केंद्रीय कैबिनेट ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी। नौ मार्च 2010 को राज्यसभा में इस विधेयक को भारी मतों से पारित किया गया। लेकिन यह विधेयक लोकसभा में पेश नहीं हो पाया। हालांकि साल समय जैसे जैसे आगे बढ़ता गया महिलाओं का प्रतिनिधित्व दूसरे क्षेत्रों की तरह राजनीतिक पदों पर भी बढ़ा है लेकिन अभी भी आधी आबादी को पूरा हक मिलना बाकी है। 17 वीं लोकसभा में देश भर से 78 महिला सांसद जीत कर संसद में पहुंची थी। संसद में महिलाओं की उपस्थिति 14.36 प्रतिशत है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 62 महिलाओं ने जीत दर्ज कराई थी। अगर 1951 की बात करें तो लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महज पांच प्रतिशत था। इस तरह नए संसद भवन में प्रवेश करने के साथ ही इस बिल को सदन के पटल पर रखकर एक तरह से पीएम मोदी ने विजयी दांव भी चल दिया है। एक ऐसा दांव, जिसके माध्यम से भाजपा, 2024 के लोकसभा चुनाव में 43 करोड़ महिलाओं को साधने की तैयारी कर रही है। ये दांव भी ऐसा है, जिसे लेकर विपक्ष भी अपनी खुशी जाहिर कर रहा है। ऐसा कहने के पीछे ये आंकड़े हैं 2019 में लोकसभा चुनाव के समय जो मतदाता सूची जारी हुई थी, उसमें महिला वोटरों की संख्या 43.2 करोड़ थी, जबकि 46.8 करोड़ पुरुष मतदाता थे। इससे अंदाजा लगता है कि ये बिल कितनी बड़ी तादाद में वोटर्स को प्रभावित कर सकता है।
2014 में सत्ता पर आने के बाद मोदी सरकार ने इस बिल की ओर खास ध्यान नहीं दिया था। जबकि भाजपा ने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण का वादा किया था। देखा जाए तो देवगौड़ा सरकार के बाद लगातार सरकारों ने इस ओर प्रयास जारी रखे थे। 2017 में कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को चि_ी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने 16 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहराई थी। लेकिन पीएम मोदी ने तब इसको लेकर कदम नहीं उठाया था। हालांकि इस अब उन्होंने नए संसद के नए भवन से देश को नई उम्मीद की किरण दिखाई है।

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