Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सफलता के बाद क्यों बदल जाते हैं लोग

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाने वाली यूपीएससी के नतीजे आ गए हैं। लाखों प्रतिभागियों के बीच जिन छात्रों ने सफलता पाई है उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया है। कुछ दिन तक वे मीडिया में एक हीरो की तरह पूछे जाएंगे। उनके संघर्ष की कहानी बहुत से लोगों को मोटिवेट करेगी। इनके संघर्ष पर फिल्में भी बन गई है। इस तरह का मोटिवेशन परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी होता है। संघ लोक सेवा आयोग ने 28 सौ से अधिक उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए चयनित किया था, जिनमें से 1016 लोगों को सफलता मिली है। मतलब यह कि 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को नाकामी हाथ लगी है। अगर यूपीएससी की प्रिलिम्स और मेन्स परीक्षा के अभ्यर्थियों की बात करें तो करीब 13 लाख लोगों ने ये परीक्षाएं दी थीं। 13 लाख में केवल 28 सौ साक्षात्कार के स्तर तक पहुंचे और वहां से एक हजार 16 लोग सफल होकर निकले। हालांकि नतीजे आने के बाद से शीर्ष 50 स्थान पर आने वालों की ही ज्यादा चर्चा मीडिया में है। बाकी साढ़े नौ सौ लोगों की सफलता की कहानी या तो उनके परिजन सुनाएंगे या उन्हें कोचिंग देने वाले संस्थान।

अंग्रेजों के जमाने से इस सर्विस और इस एक्जाम का समाज में बड़ा सम्मान है। हमारे देश को चलाने में इसी परीक्षा से चुनकर आए ब्यूरोक्रेट्स की सबसे अहम भूमिका है, ऐसे में सिर्फ परीक्षा पास होना ही किसी भी प्रतिभाशाली छात्र का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। बल्कि जिस लगन और समर्पण के साथ उसने इस पद को पाने के लिए मेहनत की है उससे ज्यादा लगन अपने कर्तव्यों के पालन में करना होगा।
यूपीएससी की सफल लोगों की कहानियों को भुनाते हुए कुकुरमुत्तों की तरह कोचिंग संस्थान खुल चुके हैं, जहां दड़बों में ठुंसी हुई मुर्गियों की तरह छात्रों को भरा जाता है। लाखों की फीस उनके अभिभावक देते हैं और बहुतों को ये उम्मीद रहती है कि बच्चा सफल हो जाए तो सरकारी रौब का स्वाद चखने मिले। हालांकि इस स्वाद की कल्पना और हकीकत में काफी फर्क है। कड़ी मेहनत और बुद्धिमत्ता से सरकार में बड़े अधिकारी बनने वालों को सत्ता के दबाव का सामना करना पड़ता है। बहुत कम अधिकारी ऐसे होते हैं जो सत्ता पर बैठे लोगों की जी-हुजूरी करने से इंकार करने की हिम्मत दिखाते हैं और वही फैसले लेते हैं जो जनता या देश के हित में हों। आखिर इतनी कठिन परीक्षा को पास करने और उच्च स्तरीय प्रशिक्षण पाने के बाद भी बहुत से लोग भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं, इस मकडज़ाल से नहीं निकल पाते। दरअसल इस जाल से बचने के लिए ईमानदारी सबसे बड़ा ढाल है लेकिन ये बहुत सस्ती नहीं है। जो अभ्यर्थी मेहनत और धैर्य के बाद इतने बड़े पद पर पहुंचते हैं और उनमें से कुछ अपने दामन पर दाग लगा बैठते हैं। आज छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों में आईएएस और आईपीएस अधिकारी गंभीर आरोप का सामना कर रहे हैं। कुछ तो जेल की हवा भी खा रहे हैं। ऐसे बहुत से अधिकारी हैं जो यूपीएससी जैसी परीक्षा पास करने के बाद कुछ साल ही नौकरी के बाद सरकारी सिस्टम से उनका मन भर जाता है और वे नौकरी छोड़कर कुछ और करने लग जाते हैं। कुछ राजनीति ज्वाइन कर लेते हैं। आजादी के बाद कई कुशल आईएएस और आईपीएस, आईएफएस अधिकारी रहे हैं जिनकी ईमानदारी और विजन का लोहा आज भी माना जाता है। उम्मीद है कि अभ्यर्थी इस परीक्षा को पास करने में जो मेहनत करते हैं, उसी तरह का जोश और जिम्मेदारी देश के निर्माण के लिए उसे आगे ले जाने में होना चाहिए।

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