Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – आखिर क्यों भूल रहे हैं मर्यादा ?

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Why are you forgetting dignity?

– सुभाष मिश्र

लोकसेवक जब राजशाही की तरह बर्ताव करने लग जाएं तो समझ लीजिए उस जगह लोकतंत्र की चुलें हिल चुकी हैं और जनता पर प्रशासन निरंकुश होते जा रहा है। सार्वजनिक मंच पर सभी से संयमित व्यवहार की अपेक्षा होती है, अगर कोई शख्स भारतीय प्रशासनिक सेवा या फिर भारतीय पुलिस सेवा में चयनित है तो फिर उससे समाज की उम्मीदें बढ़ जाती है। इन अधिकारियों से उच्च स्तर पर मानवीय व्यवहार की अपेक्षा होती है, लेकिन अक्सर होता इसके ठीक उलट है। कई बार देखने को मिला है कि ट्रेनी अफसर जल्द अपना आपा खो देते हैं जबकि कुछ दिनों पहले तक ये युवा बेहद अनुशासित छात्र होते हैं। अपने युवा काल में ज्यादातर समय इन्होंने अध्ययन में बिताया होता है। आखिर इतने जिम्मेदार पद पर पहुंचते ही क्यों वे अपना संतुलन खो देते हैं। हाल ही में रायगढ़ में एक पत्रकार के साथ हुई बदसलूकी की तरह ही छत्तीसगढ़ और देश में अफसरों ने अपनी मर्यादा तोड़ी है।
हैरानी वाली बात है कि बेहद कठिन परीक्षा पास कर चुने गए इन अफसरों को फिल्ड में तारने से पहले तमाम तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है कि उन्हें किस तरह प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन करना है, आम जनता की सेवा कैसे करनी है और उनके हितों और हकों की रक्षा कैसे करनी है, इन तमाम बातों को बहुत बारीकी से बताई जाती है। इसके बाद जब ये अधिकारी अलग-अलग राज्यों में नियुक्त होते हैं तब उन्हें राज्य में स्थित अकादमियों द्वारा भी प्रदेश की तमाम स्थितियों से अवगत कराया जाता है। इस तरह के प्रशिक्षण के दौरान किसी अफसर को किस तरह लोक व्यवहार रखना है इस पर बहुत ज्यादा फोकस किया जाता है। खासतौर पर जनता से जनप्रतिनिधियों से और मीडिया से किस तरह संबंध और व्यवहार रखना है। इसे खासतौर पर फोकस किया जाता है। बावजूद इसके इस तरह की घटना खेदजनक है।
दरअसल ब्रिटिश काल से ही प्रशासनिक अधिकारियों की हो या फिर पुलिस की छबि आम जनता की नजर में पहले ही उतनी मित्रवत नहीं है। आजादी के इतने सालों के बाद भी इसमें कोई खास बदलाव नजर नहीं आता। ऐसे मामलों में सीनियर अधिकारियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इन मामलों में पाया गया कि वरिष्ठ अफसर ही जूनियर अधिकारियों को इस तरह जनता के सामने दबंगई से पेश आने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई बार प्रशिक्षु बेलगाम हो जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में इससे पहले जगदलपुर में ट्रेनी डीएसपी और डॉक्टरों के बीच मारपीट का मामला सामने आया था। इसी तरह एक प्रशिक्षु आईपीएस द्वारा विधायक और उनके समर्थकों के साथ मारपीट का मामला सामने आया था। इसी तरह कई दूसरे राज्यों में भी घटनाएं सामने आती रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान हमने देखा किस तरह कई बार अधिकारी अपना आपा खो बैठे और लोगों पर बरस पड़े। ये सब बातें हालात पर निर्भर करती हैं। हालांकि कई बार दूसरे पक्ष की गलती सामने नहीं आ पाती। ऐसे में हमें सभी पक्षों की जानकारी लेकर ही कोई भी राय कायम करनी चाहिए। कई बार इन अफसरों को व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस दौरान कहीं कोई चूक की गुंजाइश या किसी के दौरा गलती से या जानबूझकर व्यवस्था के विपरित कार्य करने पर ये अफसर अपना संयम खो देते हैं। हालांकि, उन्हें धैर्य से काम लेना चाहिए। साथ ही दूसरे पक्ष से भी उम्मीद की जाती है कि वो इनके धैर्य की परीक्षा न लेते हुए व्यवस्था में सहयोगी बनें क्योंकि लोकतंत्र में हम सब जिम्मेदार नागरिक हैं। समाज एवं कानून द्वारा स्वीकृत ऐसे आदर्श जो मानव जीवन को शुभ एवं गरिमापूर्ण बना देते हैं उन्हें मूल्य कहते हैं जैसे अनुशासन, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा। समाज प्रत्येक व्यक्ति से मूल्यों के अनुपालन की उपेक्षा करता है जो व्यक्ति सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का जितना अधिक पालन करता है, उस व्यक्ति का व्यवहार उतना ही अधिक अच्छा माना जाता है। अर्थात् व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण मूल्यों के अनुपालन से होता है। उसी प्रकार एक प्रशासनिक अधिकारी का मूल्यांकन प्रशासनिक आचार संहिता में निर्धारित मूल्यों के पालन के आधार पर किया जाता है अर्थात जो प्रशासनिक अधिकारी या लोक सेवक प्रशासनिक आचार संहिता के प्रावधानों का जितने उपयुक्त तरीके से पालन करता है, वह उतना ही आदर्श लोक सेवक माना जाता है। इन तमाम बातों के बीच लोक प्रशासन का प्रथम उद्देश्य अधिक से अधिक जनकल्याण करना होता है और लोक सेवक इस उद्देश्य की प्राप्ति के साधन होते हैं। उच्च पदों पर बैठे लोगों का व्यवहार ही समाज में एक उदाहरण बनता है। इस पर लोकतंत्र के चारों स्तंभ को ध्यान रखना होगा।

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