Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हिंसा से किसी का भला नहीं

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - हिंसा से किसी का भला नहीं

– सुभाष मिश्र

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
बशीर बद्र साब की ये पंक्तियां अगर आज लोग समझ जाएं तो वे जान जाएंगे कि हिंसा, दंगा, आगजनी कर वे क्या-क्या खोते हैं। दरअसल धर्म की कट्टरता लोगों को हिंसक बना रही है और इस तरह हर तरफ लोगों को कट्टर बनाकर उनकी इंसानियत छीनी जा रही है। कुछ लोग अपना मुहरा बनाकर लोगों को लोगों के खिलाफ बर्बर बना रहे हैं। 31 जुलाई को हरियाणा के मेवात क्षेत्र के नूंह में दो पक्षों के बीच झड़प ने इतना खौफनाक रूप ले लिया कि बड़ी आबादी खौफजदा होकर घरों में दुबक गई। दोनों तरफ से पत्थरबाजी हुईं, कई गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की गई, आग लगा दी गई। इस घटना के बाद से इलाके (4 जिलों) में तनाव है। स्थिति पर काबू पाने के लिए पैरामिलिट्री फोर्सेज की कई कंपनियां तैनात की गई हैं। इस हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 7 हो गई है। इस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि हर व्यक्ति की सुरक्षा न पुलिस, न आर्मी और न समाज कर सकता है। सुरक्षा के लिए वातावरण बनाना पड़ता है। हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई, दंगाइयों से ही कराई जाएगी।
मौजूदा दौर में सोशल मीडिया हमारे लिए वरदान के साथ ही अभिशाप की तरह भी सामने आ रहा है। इसके साथ ही मुख्यधारा के मीडिया में भी इस तरह के संवेदनशील मामलों को जिस तरह परोसा जा रहा है, उसने लोगों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास का भाव ज्यादा पैदा कर दिया है। दरअसल सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाडऩे और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है। कुछ समय पहले हुए दिल्ली दंगे में सोशल मीडिया की तीली ने भी आग लगाने का काम किया। दंगों के दौरान जब्त किए गए फोन से कई वाट्सएप समूहों का पता चला, जिसमें दंगा भड़काने के मकसद वाले वीडियो और अफवाह, झूठी खबरें, धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाले मैसेज बड़े पैमाने पर आदान-प्रदान किए जा रहे थे। ऐसे में सूचना के प्रवाह के इस दौर में बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
वाट्सएप और फेसबुक पर कई सोशल ग्रुप बने होते हैं। अक्सर ये ग्रुप किसी विचारधारा से प्रेरित होते हैं या किसी खास मकसद से बनाए जाते हैं। यहां बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से फेक न्यूज बनाए और साझा भी किए जाते हैं। फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि सामाजिक सौहार्द्र के सामने सोशल मीडिया एक चुनौती बनकर खड़ा है। एक ऐसे समय में जब देश के कई हिस्सों से सामाजिक सद्भावना बिगडऩे की खबरें आ रही हंै, तब सोशल मीडिया एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभा सकता है लेकिन क्या ऐसा हो पा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा दौर में सोशल मीडिया एक चिंता का विषय बन गया है। कई महीनों से मणिपुर सुलग रहा है। बताया जा रहा है कि यहां फैली आग को भड़काने में भी सोशल मीडिया में फैलाई गई भ्रामक जानकारी जिम्मेदार है। टीवी पर हम अक्सर ज्ञानवापी पर बहस देखते हैं जिस तरह से आक्रमक भाषा में चीजों को परोसने की कोशिश हो रही है, इससे भी सावधान रहने की जरूरत है।
एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ माह पहले धर्म की राजनीति पर सख्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हेट स्पीच से छुटकारा पाने के लिए धर्म को राजनीति से अलग करने की जरुरत है। जब तक राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जाएगा तब तक हेट स्पीच से छुटकारा नहीं मिल पाएगा। मामले की सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो राजनेता हैं, वे धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और यही सबसे बड़ी परेशानी की वजह है। हमारे देश में धर्म और राजनीति जुड़े हए हैं। इसी से हेट स्पीच को बढ़ावा मिल रहा है। जस्टिस केएम जोसेफ ने ये कहा कि हर रोज टीवी और सार्वजनिक मंचों पर नफरत फैलाने वाले बयान दिए जा रहे हैं। इससे पहले इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर तल्ख टिप्पणी की थी। शाहीन अब्दुल्ला ने अपनी याचिका में भारत में मुस्लिमों को डराने-धमकाने के चलन को रोके जाने की मांग की थी। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसफ ने कहा था कि यह 21वीं सदी है और हम धर्म के नाम पर कहां आ पहुंचे हैं? हम सभी एक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु समाज होने के बजाय एक घृणा भरा समाज बना रहे हैं। सामाजिक तानाबाना बिखरता जा रहा है। आज हमने ईश्वर को इतना छोटा कर दिया है कि उसके नाम पर विवाद हो रहे हैं। इससे पहले एक टीवी चैनल ने यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम चलाया था। जिस पर भी सर्वोच्च अदालत ने फटकार लगाई थी। हमारे यहां हेट स्पीच की कोई परिभाषा तय नहीं है लेकिन यूरोपिय देशों में इसे इन शब्दों में परिभाषित किया गया है- सहिष्णुता के आधार पर नस्लीय घृणा के खिलाफ गलत बयानबाजी या भड़काऊ बयान को जायज ठहराना हेटस्पीच माना जाता है।
अगर आप भी इस तरह की टीवी बहस या कार्यक्रमों को देखकर किसी समाज के बारे में अपनी राय कायम करते हैं या परिवार में छोटों को इस बारे में इसी तरह की बात बताते हैं तो आप भी जहर की फसल को फैलाने में सहायक बन रहे हैं। हमें अपने आसपास को देखना चाहिए क्या हमारे आपसी संबंध चाहे दूसरे समाज के साथ कैसे हैं। गांवों में शहरों में एक-दूसरे के साथ जो सामाजिक रिश्ते बने थे, जो कई पीढिय़ों से चली आ रही थी क्या उसे ये सोशल मीडिया की आंधी ध्वस्त कर देगी। क्या दशकों से एक दूसरे पर कायम विश्वास के भाव को टीवी बहस निगल जाएंगे, नहीं हमारा समाज वही है जो एक दूसरे के सुख-दुख में में खड़ा होता था। तब हम जाति बंधन के फेर में नहीं पड़ते थे। फिर आज हमें ये बांटने वाले लोग कहां से आ गए हैं। क्या समाज को बांटकर ही राजनीति हो सकती है। एक दौर में अनुमान लगाया या फिर सपना देखा गया था कि राजनीति अब विकासपरक होगी। आपको विकास के आधार पर अपनी बात कहनी होगी, बाकी कोई दूसरे विषय की जगह नहीं होगी लेकिन वो सपना टूट गया लगता है। लोग विकास समृद्धि नहीं तनाव, हिंसा और आपसी भाईचारे को खत्म कर लोगों को बांटकर अपनी सियासी रोटी सेंक रहे हैं। इनसे सतर्क रहना पड़ेगा। हमें आपस में और खुद पर भरोसा रखना होगा। प्रसंगवश बशीर बद्र साब की ये पंक्तियां जो काफी कुछ इशारों में कह जाती है-
यहां एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU