-सुभाष मिश्र
कहा जा रहा है कि मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की प्री-वेडिंग सेरेमनी में विदेशी डांसर रिहाना को नाचने के लिए बुलाया गया था और लगभग 70 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। मुकेश अंबानी पूंजी का पर्याय हैं। पैसे की उन्हें कमी नहीं है। उनके सामने समस्या है कि उसे कैसे खर्च किया जाए। यही कारण है कि उनकी पत्नी जिस कप में चाय पीती है, उस कप की कीमत तीन लाख रुपए बताई जाती है। संपन्नता जब इच्छा से आगे चलकर नशे में बदल जाती है तो और आगे जाकर वह नशा हो जाती है और यही एडिक्शन आगे जाकर संपन्नता के प्रदर्शन की लत में बदल जाता है। आजादी से पहले या आजादी के बाद ऐसा नहीं है कि तब भारत में ऐसी संपन्नता नहीं थी। उस समय उद्योगपति भी थे और बहुत संपन्न भी थे लेकिन वे संपन्नता के प्रदर्शन में गांधी के रास्ते पर चले थे। उन्होंने अस्पताल खोले। ज्ञानपीठ संस्थान की स्थापना हुई। टाटा-बिरला आदि इन लोगों ने अनेक सेवा-संस्थान शुरू किये। वे संपन्नता के प्रदर्शन को सेवा के अवसर में बदलते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। मुकेश अंबानी या ऐसे और दूसरे उद्योगपति परिजनों के जन्मदिन या शादी के अवसर पर अपने परिवारजनों को उपहार में हवाई जहाज या लग्जरी याट देते हैं और इसका खूब प्रचार-प्रसार भी करते हैं। पहले संपन्नता का प्रदर्शन अश्लील माना जाता था। शर्म का विषय होता था। अब प्रदर्शन-प्रियता को परिवार की साख या गौरव की तरह देखा जाता है। वे इस फुहड़ प्रदर्शन के पीछे छिपी अश्लीलता को समझ ही नहीं पाते हैं या फिर बहुत संभव है कि वे इस अश्लीलता को भी एंजॉय करते हैं।
रिहना पॉप संगीत की कलाकार हैं। मनचाहा पैसा मिलने पर वह कहीं भी नाच सकती हैं। मुकेश अम्बानी के बेटे अनंत और राधिका की प्री-वेडिंग सेरेमनी में बॉलीवुड के बड़े-बड़े सितारे मंच पर नाचते दिखे। मीडिया ने सलमान, शाहरुख़ और आमिर खान को नाचते देखकर कहा कि यह दृश्य सदी की सबसे बड़ी घटना है। इतने सितारों का जामनगर में एक साथ जमघट अपने आप में बड़ी घटना थी। जब समाज का संपन्न या कहें पॉवरफुल व्यक्ति इस तरह का दिखावा करता है तो इसका उदाहरण महादेव एप्प में रातों-रात पैसा कमाने वाले सौरभ चंद्राकर की शादी में भी देखने को मिला था। जहां पैसे की लालच में कई बड़े सितारे यहां थिरकते नजऱ आये थे, बाद में इनमें से कई ईडी की जाँच के दायरे में भी आ गए।
बाजार और पूँजी के दबाव ने कलाकारों के भीतर से कहीं भी, किसी भी तरह से नाचने-गाने के संकोच, गरिमा और शिष्टाचार खत्म कर दिए हैं। संपन्न तबके का दंभ इसी बात का निर्लज्ज लाभ उठा रहा है। मुकेश अंबानी और वहीं क्यों भारत में अधिकांश उद्योगपति इस समय धंधे में धुत्त हैं। उनके लिए देश-समाज की सामाजिकता, संस्कृति, गरिमा और उसकी प्रतिष्ठा का कोई अर्थ नहीं रह गया है। मुकेश अंबानी इस समय अपने आपको किंग मेकर की तरह देखकर सिर्फ आत्ममुग्ध ही नहीं हैं, बल्कि एक अश्लील और गैर जरूरी दंभ से भरे हुए हैं। ऐसी आत्ममुग्धता और दंभ देश और समाज के लिए बहुत घातक है लेकिन इसकी फिक्र भला किसे है?
इसी तरह की घटनाओं और प्रकरण के बरअक्स एक बड़ी और प्रेरणास्पद खबर अमेरिका से है। अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन को आइंस्टीन बोर्ड का ट्रस्टीज़ के अध्यक्ष और मोंटेफियोर हेल्थ सिस्टम बोर्ड की सदस्य रूथ एल. गोट्समैन से डोनेशन के रूप में एक बिलियन डॉलर यानी लगभग 8300 करोड़ रुपए दान में मिले हैं ताकि वहाँ के मेडिकल छात्रों को ट्यूशन फीस न देना पड़े। इस डोनेशन के कारण वहां पढ़ रहे छात्रों को छह हजार डॉलर यानी लगभग पाँच लाख की ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ेगी। जिन छात्रों ने ट्यूशन फीस दे दी है उन्हें वापस की जा रही है और अगले सत्र से सभी छात्रों के लिए यह ट्यूशन फीस जो कि पहले पूरी राशि देना अनिवार्य थी, अब नहीं देना पड़ेगी। अमेरिका के इतिहास में किसी मेडिकल स्कूल को दिया गया यह सबसे बड़ा उपहार है।
93 वर्षीय रूथ गाट्समैन आइंस्टीन में बाल चिकित्सा के पूर्व क्लीनिकल प्रोफेसर और वॉल स्ट्रीट के पूर्व फाइनेंसर डेविड गाट्समैन की पत्नी हैं। वह अपने जीवन काल के दौरान स्कूल के लिए महत्वपूर्ण डोनर थे। यह घटना इस बात को बताती है कि यदि आपके मन में देश और समाज के हित के प्रति चिंता है। गरीब तबके के प्रति चिंता है और दान देने के लिए उदार नीयत है तो फिर दान की राशि आपके लिए महत्व नहीं रखती है।
यह बात अपनी जगह बिल्कुल सही है कि पूँजी की बहुलता आदमी को स्वार्थी, क्रूर और काफी हद तक असामाजिक बनाती है। यह घटना इस बात का सबक भी देती है कि यदि आप पाप और पुण्य में भरोसा करते हैं तो संपन्नता के साथ अच्छी नीयत और उदारता जुड़ी हो तो वह समाज के हित में होती है। वह आपके अतीत और वर्तमान के जाने-अनजाने के पापों को खत्म करके पुण्य में इजाफा ही करती है। आने वाली पीढिय़ां व्यक्ति को उसकी संपन्नता और अमीरी के कारण नहीं देश और समाज हित में किए गए कार्यों की वजह से याद करती है और इतिहास में दर्ज करती है।
शादी-ब्याह और इसी तरह के निजी समारोह में पूँजी का अश्लील प्रदर्शन अंतत: आपके संस्कार और शिक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन लोगों को यह बात ना कोई बताने वाला है ना समझने वाला है। बल्कि ऐसी बातों को परिवार और खानदान की शान और गौरव की तरह बताने वाले चापलूसों की एक बड़ी जमात इनके आसपास होती है। इसलिए अपवाद छोड़ दिया जाए तो बाजार का यह पहला काम है कि वह पूँजी के जरिए पूँजीपतियों को दृष्टिहीन और संवेदनाहीन बनाती है।
दरअसल, अब वह समय आ गया है जब देश के नियम-कायदों में इस तरह का बदलाव होना चाहिए, जहां महँगी शादियाँ और ऐसे अश्लील और फुहड़ संपन्नता के प्रदर्शन पर रोक लगनी चाहिए। इस तरह की शादियाँ समाज में असमानता का संदेश देती हैं और यह भारतीय लोकतंत्र का अपमान भी है। जहाँ इतनी गरीबी, अभाव और असमानता है कि किसी के पास खाने के लिए रोटी नहीं है और कोई प्री वेडिंग सेरेमनी में नाचने वाली को 70 करोड़ रुपए दे रहा है। यह एक तरह का संदेश भी है कि देश का कोई भी पूँजीपति जब एक शादी में करोड़ों नहीं, अरबों-खरबों रुपए खर्च कर सकता है तो क्या वह अपने व्यवसाय के भविष्य की सुरक्षा और बढ़ोतरी के लिए चुनाव को प्रभावित करने के लिए पैसे खर्च करने में हिचकेगा यह एक संशय है। एक संदेह है जो देश के सामने चिंता के साथ खड़ा है।