Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – परदेस गए छात्रों की परेशानी

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

किर्गिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई करने गए सैकड़ों छात्र और उनके परिजन इस वक्त बहुत परेशान हैं। किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में लोकल लोगों ने पाकिस्तान और मिस्र के छात्रों पर हमला कर दिया था। कुछ लोगों ने इस घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके बाद से मामला और भी बिगड़ गया। 13 मई को लड़ाई का जो वीडियो वायरल हुआ, उसमें पाकिस्तान और इजिप्ट के स्टूडेंट्स थे मगर उससे स्थानीय लोग इतना भड़क गए कि उन्होंने सभी विदेशी स्टूडेंट्स पर हमला बोलना शुरू कर दिया। किर्गिस्तान के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स ने मदद की गुहार लगाई है। इनमें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के छात्र भी हैं।
विदेशों में उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने जाने वाले विद्यार्थियों के साथ उन देशों की स्थानीय समस्याएं कई बार बच्चों के लिए मुसीबत बन जाती है। चाहे कोविड का दौर रहा हो या रूस-यूक्रेन में युद्ध के दौरान वहां फंसे नागरिकों का मामला ऐसे मामले उन बच्चों के परिजनों के लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाते हैं। बच्चों के सुरक्षित होने और उनके घर वापसी की चिंता की में परिजन अपने स्तर पर हरसंभव प्रयास करते हैं, जहग जगह गुहार लगाते हैं। यह समस्या सरकार के लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण होती है। हालिया मामला सामने आया है मध्य एशियाई देश किर्गिस्तान का, जहां भारतीय छात्रों के साथ हुई हिंसा के बाद से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों के परिजन काफी चिंता में हैं। वह अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं, साथ ही लगातार उनसे वीडियो कॉल कर हौसला दे रहे हैं। अकेले मध्य प्रदेश से वहां 1200 विद्यार्थी और और पूरे देश से लगभग 15 हजार विद्यार्थी किर्गिस्तान में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।
मिडिल एशियाई देश किर्गिस्तान में मेडिकल एजुकेशन प्राप्त करने गए बच्चों जो वहां विदेशियों के खिलाफ हो रही हिंसा और हमलों से डरे हुए हैं। ये सभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उन्हें सुरक्षित भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं। बच्चे अपने मां-बाप को वीडियो कॉल कर वहां के हालात से अवगत करा रहे हैं। जो खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक किर्गिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई करने वाले हजारों विदेशी स्टूडेंट्स फंसे हुए हैं। वह अपने हॉस्टल या फ्लैट से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं ये बच्चे एक ऐसी जंग के बीच में फंसे हुए हैं, जिससे उनका कोई लेना-देना ही नहीं है। हॉस्टल में रहने वालों से ज्यादा दयनीय स्थिति फिलहाल उन स्टूडेंट्स की है, जो कॉलेज के पास किसी बिल्डिंग में कमरा लेकर रह रहे हैं। हम आपको बता दें कि देश में मेडिकल शिक्षा महंगी होने से गरीब परिवार के बच्चों को विदेश में जाकर कम खर्चे में शिक्षा लेनी पड़ रही है। किर्गीस्तान एक ऐसा देश है जहां पर कम फीस में एमबीबीएस, एमएस, एमडी की पढ़ाई की जा सकती है। यही कारण है कि देश के अधिकांश राज्यों से विद्यार्थी किर्गीस्तान की राजधानी बिस्टेक जाते हैं।
गौरतलब है कि भारत से हर साल हजारों की संख्या में छात्र किर्गीस्तान, यूक्रेन चीन आदि देशों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं। इन देशों में कम रैंकिंग वाले छात्रों को भी एडमिशन मिल जाता है। साथ ही देश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले फीस भी काफी कम है, इसी के चलते हजारों छात्र किर्गीस्तान जैसे देशों में जाते हैं।
हाल का तनाव 13 मई की रात से शुरू होता है। विभाग के अनुसार, उस दिन, वोस्तोक-5 माइक्रोडिस्ट्रिक्ट में एक पिज़्ज़ेरिया के पास किर्गिस्तानियों का एक समूह विदेशी छात्रों के एक समूह से मिला और सवाल पूछने लगा कि वे यहाँ धूम्रपान क्यों करते हैं?
स्थानीय लोगों में से एक ने हिंसक बहस शुरू कर दी, लेकिन विदेशी भागने लगे। वे अपने निवास स्थान उसी छात्रावास की ओर भागे। आंतरिक मामलों के मंत्रालय के अनुसार, स्वस्थ जीवन शैली के लिए अज्ञात लड़ाके उनके

छात्रावास में आए और उनके पैसे और चीजें छीन लीं। ऐसा करने के लिए उन्हें बल प्रयोग करना पड़ा। पुलिस का कहना है, यह वास्तविक परिस्थितियों की व्याख्या के बिना था, जिससे सार्वजनिक आक्रोश और युवा लोगों में बड़े पैमाने पर असंतोष पैदा हुआ और स्थानीय अशांति फैल गई।
अभी तक हॉस्टल में चार विदेशी हमलावरों में से दो की पहचान हो पाई है. वे 18 और 19 साल के केमिन क्षेत्र के मूल निवासी निकले। अन्य दो की अभी भी तलाश की जा रही है। आइये अब एक नजर डालते हैं विदेशों में पढ़ाई करने वाले भारतीय विद्यर्थियों पर …कनाडा में सबसे ज्यादा करीब ढाई लाख भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं अमेरिका में सवा दो लाख छात्र पढ़ते हैं। ऑस्ट्रेलिया में 92 हजार से ज्यादा और सऊदी अरब में लगभग 81 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
यूं तो भारत के छात्रों का विदेश जाकर पढऩे का चलन कोई नया नहीं है। अगर कुछ बदला है तो वह है बाहर जाने वालों का वर्ग और ठिकाना। पहले अमीर परिवारों के बच्चे ही विदेश जा पाते थे और वे अमेरिका या ब्रिटेन की ओर रुख करते थे। उनका मकसद होता था ऑक्सफर्ड, हार्वर्ड या कैम्ब्रिज जैसे नामी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करना लेकिन अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में पढऩे जाने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तो कमोबेश नए ठिकाने हैं जो मध्यमवर्गीय छात्रों ने बनाए हैं और इससे पता चलता कि छात्र सिर्फ पढ़ाई की वजह से विदेश नहीं जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि विदेश जाने के पीछे दो तरह की वजह है। एक तो यह कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सस्ती हुई है जिस कारण मध्यमवर्गीय छात्र भी विदेश में पढऩा वहन कर पा रहे हैं और दूसरी वजह है कि भारत से बाहर एक बेहतर जिंदगी की तलाश। मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन का चुनाव छात्र कई सालों से करते आ रहे हैं। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने से पहले 20 हजार से ज्यादा भारतीय यूक्रेन में रह रहे थे जिनमें सबसे बड़ी संख्या छात्रों की ही थी।
दूसरी बड़ी वजह है महंगाई जो छात्रों को यूक्रेन जैसे छोटे देशों की ओर जाने को मजबूर करती है। अमेरिका में मेडिकल पढऩे के लिए 18 से 30 लाख रुपये के बीच खर्च करने होते हैं। ब्रिटेन में किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से डॉक्टरी पढऩे के लिए 20 से 25 लाख रुपये लगते हैं। लीसेस्टर यूनिवर्सिटी विदेशी छात्रों से लगभग 12 लाख रुपये सालाना फीस लेती है। इसके उलट भारत में अगर छात्र को सरकारी कॉलेज में दाखिला ना मिले तो एक से डेढ़ करोड़ में भी निजी कॉलेज में सीट मिल जाना गनीमत होगी। वहीं यूक्रेन, चीन, रूस, जॉर्जिया आदि में 17 लाख से लेकर अधिकतम 45 लाख रुपये में काम चल जाता है। किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में 17 मई की रात भारतीय और पाकिस्तानी छात्रों से मारपीट की गई। स्थानीय छात्रों उन हॉस्टल्स में घुस गए जहां भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी स्टूडेंट्स रह रहे थे। किर्गिस्तान की मीडिया के मुताबिक हिंसा में 29 छात्र घायल हुए। इसके बाद से ही हालात काफी तनावपूर्ण हैं। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है लेकिन इस तरह पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाले छात्रों का परेशान होना काफी कष्टदायक है।

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