Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -परीक्षा की टेंशन पर मोदी का अटेंशन

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

पिछले कुछ वर्षों से यह देखने को मिल रहा है कि विद्यार्थी परीक्षाओं में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने से काफी तनाव में आ जाते हैं। कई बार तो प्रतियोगी परीक्षा से लेकर स्कूल और कालेज के बच्चे परीक्षा परिणामों से इतनी निराशा में डूब जाते हैं कि अपनी जीवन लीला तक समाप्त कर लेते हैं। बच्चों में बढ़ रही इस आत्मघाती प्रवृत्ति के पीछे का मूल कारण परिवार और समाज का ऐसा दबाव है जो उन्हें उन्मुक्त होकर काम करने से रोकता है। विद्यार्थी, अभिभावकों और शिक्षकों द्वारा उनसे की जा रही उम्मीदों से काफी तनाव में आ जाते हंै और वे स्वतंत्र रूप से अपनी पढ़ाई नहीं कर पाते। उन्हें हर वक्त यह भय सताता है कि अगर उम्मीदों के अनुरूप परिणाम नहीं आया तो क्या होगा। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो यह भी बच्चों में अवसाद का कारण बन रहा है।
स्कूली परीक्षाएं अब सामने हैं और बच्चों के सामने एक बड़ा लक्ष्य है। ऐसे में बच्चों को परीक्षाओं के तनाव से कुछ राहत दिलाने और उनका उत्साहवर्धन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कूली बच्चों से परीक्षा पर चर्चा की। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने बच्चों से परीक्षा पर चर्चा की हो। पिछले करीब दस वर्षों में वे अब तक सात बार विद्यार्थियों से परीक्षा पर चर्चा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने आज बच्चों से चर्चा में उन सब पहलुओं की बात की जिनसे अमूमन हर विद्यार्थी सामना करता है। इनमें परीक्षा हॉल में जाने से पहले का तनाव, पेपर हाथ में आने के बाद की स्थिति, छात्रों को प्रेरित करने और उन्हें तनावमुक्त करने में शिक्षकों की भूमिका, दोस्तों-सहपाठियों से होने वाली प्रतिस्पर्धा से कैसे निपटा जाए, अभिभावकों का बच्चों के प्रति कैसा रवैया होना चाहिए, जैसे विषय शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने परीक्षा पर चर्चा करते हुए न केवल छात्रों बल्कि शिक्षकों और बच्चों के माता-पिता तक इस संवाद के जरिये अपनी बात पहुंचाई। प्रधानमंत्री ने बच्चों से हुई चर्चा में उन सब मुद्दों को छुआ जो परीक्षा को लेकर उनपर दबाव बना सकते हैं।
मोदी ने बच्चों के अभिभावकों से अपील कि वे स्कूल के रिपोर्ट कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड न बनाएं। दूसरे के बच्चों से तुलना कर उन पर अनावश्यक दबाव न बनाएं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि घर को नो गैजेट जोन बनाएं। साथ ही छात्रों में लैपटॉप और मोबाइल से लिखने के इतनी भी आदत न बन जाए कि कागज और कलम से दूरी बढ़ जाए। विद्यार्थी पैरेंट्स की बातों का पालन करें। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि शिक्षकों का काम नौकरी बदलना नहीं बल्कि छात्रों का जीवन बदलना होना चाहिए। शिक्षक सिर्फ अच्छे नम्बर लेन वाले छात्रों पर ही फोकस न करें, सभी का आत्मविश्वास बढ़ाएं। शिक्षक छात्रों को अच्छी तरह से सुनें और उनकी जिज्ञासाओं का जवाब दें। विद्यार्थियों में विकृत स्पर्धा का भाव न पैदा करें।
प्रधानमंत्री ने बताया कि कितने तरह के दबावों से विद्यार्थी आमतौर पर जूझते हैं। उन्होंने अभिभावकों और शिक्षकों को भी बच्चों की मनोस्थिति को समझ कर उन पर अनावश्यक दबाव न बनाने को कहा। मोदी ने विद्यार्थियों से कहा कि हमें खुद पर इतना दबाव नहीं डालना चाहिए, जिसकी वजह से हमारी योग्यता खत्म हो जाए। बच्चे परीक्षा का तनाव न लें और अपने ऊपर प्रेशर को हावी न होने दें। इस दौरान प्रधानमंत्री ने युवाओं से अपील की कि वे जल, थल, स्पेस और एआई के क्षेत्र में आगे बढ़ें। प्रधानमंत्री के इस भाषण को करीब दो करोड़ विद्यार्थियों, 14 लाख शिक्षकों और 5.69 लाख अभिभावकों ने सुना।
बहरहाल, परीक्षाओं का टेंशन और उससे उपज रही निराशा वाकई विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी परेशानी बन रही है। बच्चों को परीक्षाओं के लिए भयमुक्त वातावरण घर परिवार, अभिभावक, शिक्षक और हमारा समाज ही मुहैया करा सकता है। इस दिशा में सभी को जागरूक होकर काम करने की जरूरत है।

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