Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – मैं सिस्टम हूं, मैं बहुत बीमार हूं….

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कई ऐसे सरकारी महकमे हैं जिनका बदहाली, लापरवाही और आपराधिक गतिविधियों से गहरा नाता बन गया है। लगता है कि सिस्टम में ही इन बुराईयों ने स्थाई अड्डा बना लिया है। मंगलवार रात दुर्ग केन्द्रीय जेल में जिला प्रशासन ने छापा मारा तो यहां भारी पैमाने पर लापरवाही, मनमानी का भंडफोड़ हुआ। कैसे दबंग अपराधी पूरे जेल प्रशासन को अपने इशारों पर नचा रहे हैं इसका शर्मनाक खुलासा हुआ है।
गौरतलब है कि दुर्ग सेंट्रल जेल में कई हाईप्रोफाइल मामले से जुड़े कैदी सजा काट रहे हैं। इसके बाद भी इस जेल की व्यवस्था सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार का शिकार नजर आई। जब एसपी और उनकी टीम ने जेल में दबिश दी तो पाया कि महादेव सट्टा ऐप और हत्या के आरोपी दीपक नेपाली, गैंगस्टर तपन सरकार और मुक्कू नेपाली जैसे अपराधियों को वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है। इसका खुलासा तब हुआ जब दुर्ग कलेक्टर और एसपी ने अपनी पूरी टीम के साथ यहां छापा मारा। जब वे जेल की बैरक में पहुंचे तो चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई। इस दौरान कई आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई हैं। तपन सरकार, मुक्कू नेपाली, दीपक नेपाली और उपेंद्र कबरा जिस बैरक में हैं, वहां उन्हें वीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। सभी आरोपी मोटे गद्दे पर सोए हुए हैं। इनके गद्दे के नीचे से काजू, बादाम और किशमिश मिले। जब एसपी ने इसके बारे में पूछा तो जेल अधीक्षक कोई जवाब नहीं दे पाए। इस पर एसपी ने जेल अधीक्षक को जमकर फटकार लगाई।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्रीय जेल दुर्ग का आकस्मिक निरीक्षण किया गया। इस दौरान बैरक से एक मोबाइल फोन, सिम, उस्तरा, ब्लेड और चाकू जैसे हाथ से बने औजारों के साथ ही इस्तेमाल किया, चिलम, बीड़ी, सिगरेट और अन्य प्रतिबंधित सामान जब्त किया गया है। हालांकि जेलों से आपत्तिजनक सामानों की बरामदगी की ये पहली घटना नहीं है देशभर की कई जेलों से इस तरह बरामदगी हो चुकी है, आए दिन खबरें आती रहती है कि फलां जेल से फलां गैंगस्टर अपनी काली करतूतों को अंजाम देता है।
मई 2023 जांजगीर जिला जेल में बंदियों से नशे का सामान बरामद किया गया था। छापेमारी के दौरान प्रशासन के सामने कैदियों ने हंगामा खड़ा कर दिया था। 2019 में रायपुर जेल में गैंगवार की खबर सामने आई थी। इस दौरान जेल में दो गुटों से धारदार हथियार बरामद किए गए थे। जेल में तैनात अमले की मंजूरी या सांठगांठ के बिना ये सब संभव नहीं है। इससे हमारे उस सिस्टम के अपराधीकरण की पुष्टि होती है जिस पर समाज में सुधार लाने की महती जिम्मेवारी है। दरअसल, आजाद भारत में जेलों को सुधारगृह के तौर पर विकसित करने की कवायद हुई थी, लेकिन ये घूस देने वालों के लिए राजनीति संरक्षण प्राप्त अपराधियों का ऐशगाह बन गया है?
इसी तरह की भर्राशाही हमें सरकारी अस्पतालों में भी देखने को मिलती है। आए दिन मरीजों के परिजन डॉक्टर नहीं होने ठीक से इलाज नहीं मिलने या अन्य तरह की लापरवाही को लेकर हंगामा करते हैं। कई जिला अस्पतालों में डॉक्टर कई सालों से जमें हुए हैं क्योंकि उनका प्राइवेट नर्सिंग होम उसी शहर में हैं। ऐसे डॉक्टर साब सरकारी अस्पताल में तो सिर्फ नाम के लिए करते हैं। इलाज मोटी रकम लेने के बाद अपने नर्सिंग होम में करते हैं, ऐसे में गरीब और लाचार आदमी के लिए बेहतर इलाज पाना आज भी एक सपना है।
इस पर हमारे समय के बड़े कवि विनोद कुमार शुक्ल की ये कविता याद आती है..जो इस वक्त की बहुत जरूरी कविता है-
सबसे गरीब आदमी की
सबसे कठिन बीमारी के लिए
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर आए
जिसकी सबसे ज्यादा फीस हो
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर
उस गरीब की झोपड़ी में आकर
झाड़ू लगा दे
जिससे कुछ गंदगी दूर हो
सामने की बदबूदार नाली को
साफ कर दे
जिससे बदबू कुछ कम हो
उस गरीब बीमार के घड़े में
शुद्ध जल दूर म्युनिसिपल की
नल से भर कर लाए
बीमार के चीथड़ों को
पास के हरे गंदे पानी के डबरे
से न धोए
बीमार को सरकारी अस्प ताल
जाने की सलाह न दे
कृतज्ञ होकर
सबसे बड़ा डॉक्टीर सबसे गरीब आदमी का इलाज करे
और फीस मॉंगने से डरे
सबसे गरीब बीमार आदमी के लिए
सबसे सस्ताो डॉक्टर भी
बहुत महंगा है

आप तमाम प्रदेशों के बड़े सरकारी अस्पताल में चले जाइए। हर तरफ बदहाली का आलम पसरा नजर आता है। बेड नहीं मिलने पर जमीन पर ही लेटे मरीज, कमरे की जमीन नहीं मिली तो गलियारे और सीढिय़ों में पड़े मरीज सरकारी अस्पतालों में आम है। हजारों करोड़ के बजट के बाद हम जरूरत के मुताबिक अस्पताल नहीं बना सके हैं। संसाधनों के अभाव से ज्यादा कहीं न कहीं इच्छा शक्ति की कमी और सिस्टम में व्याप्त लालफीताशाही है। इसी तरह तहसील दफ्तर, कलेक्ट्रोरेट जैसी जगहों पर आम आदमी ठगा हुआ महसूस करता है। हमारा बीमार सिस्टम से हार कर लोग खुद को पिटा हुआ महसूस करते हैं। अभी चुनाव का वक्त है नेता आएंगे सब सुधार देने के वादे करेंगे लेकिन हमारा सिस्टम, धार करने वालों को जल्द अपना हिस्सा बना लेता है। इसके बाद सुधार का बीड़ा उठाने वाले लोग भी उसी बीमार व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं।

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