Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -चांद पर लिखेंगे इतिहास

Editor-in-Chief

– सुभाष मिश्र

करीब 77 साल पहले लिखी कवि दिनकर की ये कविता जेहन में उमड़ घुमड़ रही है। चांद को चुनौती देती ये कविता हमें मोटिवेट करती रही है। आइए जब हम कुछ समय बाद चांद पर उतरने वाले हैं उससे पहले दिनकर की इस कविता की कुछ पंक्तियों को पढ़ते हैं…।

मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से, चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

वाकई देश के वैज्ञानिकों ने एक बेहद गौरवमयी पल देश के सामने ला दिया है। 23 अगस्त का दिन हमारे इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होने के लिए बेताब है। दरअसल 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर हमारा चंद्रयान उतरने जा रहा है। मंगलवार को इसरो ने चांद की नई तस्वीरें शेयर की है जो चंद्रयान-3 ने क्लिक की हैं। चंद्रयान ने 70 किलोमीटर की दूरी से लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा की मदद से ये तस्वीरें खींचीं हैं। चंद्रयान-3 फिलहाल चांद पर लैंडिंग के लिए सटीक जगह खोज रहा है। इसे 25 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंड किया जाएगा। चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में 15 से 17 मिनट लगेंगे। इस ड्यूरेशन को 15 मिनट्स ऑफ टेरर यानी खौफ के 15 मिनट्स कहा जा रहा है। अगर चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है तो भारत का चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा। दुनिया भर में भारत का नाम रोशन करने वाले इसरो का सफर भी कम रोमांचक नहीं रहा है। साल 1962 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना की। बाद में डॉ. विक्रम साराभाई ने उन्नत टेक्नोलॉजी के विकास के लिये 5 अगस्त, 1969 को इसका नाम बदलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन कर दिया गया। आज इसरो को दुनिया की बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक के रूप में जाता है। 19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपने पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को रूस के लॉन्च सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया और अंतरिक्ष की दुनिया में अपना नाम दर्ज कराया। हालांकि, यह एक एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट था, लेकिन इसने भारत के सुनहरे भविष्य के लिये नींव तैयार की थी। 18 जुलाई, 1980 को इसरो ने एसएलवी-3 का सफल परीक्षण किया। इस सफल परीक्षण के साथ भारत ने अपना नाम दुनिया के उन देशों में शामिल कर लिया था, जो अपने सैटेलाइट्स को खुद लॉन्च करते थे। इसके माध्यम से इसरो ने रोहिणी सैटेलाइट (आरएस-1) को पृथ्वी के ऑर्बिट में स्थापित किया। साल 1983 में दूर संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान के लिए इनसैट-1बी को प्रक्षेपित किया गया।
साल 1994 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) का सफल प्रक्षेपण किया। इस लॉन्च व्हीकल की मदद से अब तक 50 से अधिक सफल मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं। इसके बाद 22 अक्टूबर 2008 को इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम बढ़ाया। 1380 किलोग्राम के चंद्रयान-1 को काफी उम्मीदों के साथ भेजा गया। एक दौर में साइकिल पर रॉकेट का सामान ढोने वाले इसरो ने साल 2014 में कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। इसरो ने 450 करोड़ रुपये के किफाइती मिशन मंगलयान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल की धरती पर उतारकर कीर्तिमान स्थापित किया। ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बना। 22 जुलाई, 2019 को भारत ने अपना दूसरा मून मिशन, चंद्रयान-2 लॉन्च किया। हालांकि, मिशन असफल रहा लेकिन इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखा गया। 14 जुलाई, 2023 को भारत ने चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया है। जिसे 23 अगस्त को चांद की सतह पर उतारने की तैयारी कर ली है।
चांद हमारे लिए धार्मिक रूप से एक देवता हैं, तो साहित्य जगत ने इसे प्रेमी की नजर से देखते इसकी तुलना प्रेमिका के चहरे या सौन्दर्य से किया गया है, तो बच्चों के लिए चंदा मामा है। वहीं वैज्ञानिकों ने अब इसे एक नई संभावना में बदल दिया है। चांद पर हमारे फिल्मों में कई गीत रचे गए…इनमें चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो…चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो… जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो..। तुझे चांद के बहाने देखूं, तू छत पर आजा गोरिए जैसे सैकड़ों गाने फिल्मों में गीतकारों ने गढ़े हैं..।
चंद्रमा के पोलर रीजन जहां चंद्रयान लैंड करने जा रहा है दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था। नासा ने बताया है कि इस समय अत्याधुनिक सेंसर मौजूद हैं लेकिन इस ऊबड़-खाबड़ ज़मीन और रोशनी से जुड़ी परिस्थितियों की वजह से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरे वाले यान के लिए ज़मीनी परिस्थितियों का आंकलन करना मुश्किल होगा।
इसके साथ ही कुछ सिस्टम्स बढ़ते और घटते तापमान की वजह से प्रभावित हो सकते हैं। चंद्रमा इन दिनों भारत ही नहीं रूस और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए भी रुचि का विषय बना हुआ है। रूस ने चंद्रयान-3 के बाद ही अपना अभियान लूना-25 को चांद की ओर भेजा था। लूना-25 को भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना था, लेकिन लूना-25 पिछले हफ़्ते नियंत्रण से बाहर होने के बाद चांद की सतह पर क्रैश हो गया।
भारतीय मूल की अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स ने मंगलवार को कहा कि चंद्रयान-3 के चंद्रमा पर उतरने का मुझे बेसब्री से इंतजार है। मैं खुश हूं कि भारत अंतरिक्ष में रिसर्च और चंद्रमा पर स्थायी जीवन की खोज में सबसे आगे है। देश और विदेश में इस मिशन की सफलता के लिए पूजा पाठ और दुआएं मांगी जा रही है। हम कामना करेंगे कि ये सफलता मानवता के लिए नई राह खोले।

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