Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -सूचना से अफवाह के भ्रमजाल तक

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -सूचना से अफवाह के भ्रमजाल तक

– सुभाष मिश्र

सोशल मीडिया में जिस तरह फेक न्यूज, भ्रामक तथ्य परोसकर लोगों की भवानाएं भड़काई जाती है वो कई बार खतरनाक हालात पैदा कर देते हैं। बताया जा रहा है कि मणिपुर में मई माह में महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी के पीछे भी फेक न्यूज का बहुत बड़ा हाथ है। इससे पहले भी देश में कई स्थानों पर सोशल मीडिया में उकसाऊ पोस्ट के कारण दो पक्षों के बीच खूनी लड़ाई हो चुकी है। एक तरफ सोशल मीडिया के माध्यम से हम एक दूसरे से कनेक्ट होते हैं। देश और दुनिया में व्यवस्था के खिलाफ कई आंदोलन इसकी मदद से खड़े किए गए हैं, इसके जरिए आज लोग दूर-दूर रहकर भी निकट संपर्क में बने रहते हैं, लेकिन इसके साथ कुछ बुराईयां भी आई हैं। जैसे इसके जरिए झूठ, भ्रम आसानी से फैला सकते हैं। किसी कम्युनिटी या किसी व्यक्ति का चरित्र हनन का माध्यम बन सकता है ये सोशल मीडिया। ऐसे में इसके इस्तेमाल में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि और कई तरह के अपराध भी इस प्लेटफॉर्मस के जरिए होते हैं। जैसे ठगी, दोस्ती कर उसका गलत तरीके लाभ उठाना।
इन तमाम बातों के बीच खुफिया एजेंसियों ने छत्तीसगढ़ पुलिस को आगाह किया है कि छत्तीसगढ़ में आने वाले चुनावी माहौल के बीच हिंसा भड़काई जा सकती है। मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी जिलों के एसपी और एसएसपी को सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल बनाने को कहा गया है। पुलिस हेडक्वॉर्टर की स्पेशल ब्रांच ने पाया है कि सोशल मीडिया के जरिए प्रदेश में हिंसा भड़काने के प्रयास हो सकते हैं। इस वजह से सोशल मीडिया की हर पोस्ट पर नजर रखने के लिए सेल बनाई जा रही है।
इंटेलिजेंस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, मॉनिटरिंग सेल में पुलिस महकमे के लोग होंगे जो लगातार सोशल मीडिया पर नजर रखेंगे। सभी जिलों में सार्वजनिक छबि रखने वाले नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की पोस्ट पर नजर रखी जाएगी। व्हाट्सएप ग्रुप के संबंध में भी सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल जानकारी लेगी। पुलिस मुख्यालय के इंटेलिजेंस के आईजी रैंक के अधिकारी की ओर से एक आदेश भी जारी किया गया है। प्रदेश के सभी जिला के एसएसपी और एसपी को यह आदेश भेजा गया है। छत्तीसगढ़ की शांति में पहले भी कवर्धा और बेमेतरा और नारायणपुर जिले में बिगड़े हालात ने खलल डाला है। ऐसे में अब ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। खासतौर पर जब चुनाव के वक्त धार्मिक भावनाएं भड़काने के मामले दूसरे राज्यों में पहले ही सामने आ चुके हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं के पोस्ट पर आप नजर डालें तो बुलडोजर चलाने, जिहाद, अपराध जैसे कंटेट नजर आएंगे। इससे पहले यूपी में हुए मुज्जफरपुर दंगों को भड़काने में सोशल मीडिया पोस्ट की भूमिका रही है। देश में ही नहीं विदेशों में भी कई फसाद इस सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से हो चुके हैं, इसी तरह फ्रांस में हुए दंगे के लिए भी सोशल मीडिया पोस्ट को जिम्मेदार माना गया है। दरअसल वाट्सएप और फेसबुक पर कई सोशल ग्रुप बने होते हैं। अक्सर ये ग्रुप किसी विचारधारा से प्रेरित होते हैं या किसी खास मकसद से बनाए जाते हैं। यहां बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से फेक न्यूज बनाए और साझा भी किए जाते हैं। फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि सामाजिक सौहार्द्र के सामने सोशल मीडिया एक चुनौती बनकर खड़ा है। एक ऐसे समय में जब देश के कई हिस्सों से धार्मिक सद्भावना बिगडऩे की खबरें आ रही हैं, तब सोशल मीडिया एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभा सकता है, लेकिन क्या ऐसा हो पा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा दौर में सोशल मीडिया एक चिंता का विषय बन गया है। समझदारी पैदा करेंगे तो समझदारी दिखेगी और विभाजनकारी तत्व डालेंगे, तो वैसा ही दिखेगा। सही मायनों में अच्छे और बुरे दोनों का ही आईना है सोशल मीडिया। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में आम जनता के बीच गलत जानकारी और नफरत फैलाने वाले मुद्दे भी फल-फूल रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक, सोशल मीडिया और इंटरनेट के उभार ने तेजी से सामाजिक हिंसा को बढ़ावा दिया है। लिखित रूप से धार्मिक और सामाजिक विभाजनकारी कंटेंट का विभिन्न सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाता है।
कुछ देशों ने सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाए हैं जैसे फ्रांस में फ्रेंच ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी को नेटवर्क को ऑफ एयर करने का अधिकार दिया गया है। मलेशिया में झूठी खबरें फैलाने पर बड़ी आर्थिक सजा या छह साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। रूस में सोशल मीडिया पर झूठी खबरें फैलाने पर किसी प्रकाशन को 16 लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। जर्मनी में इस तरह का अपराध करने पर आम लोगों को पचास लाख यूरो और कंपनियों को पांच करोड़ यूरो का जुर्माना देने का प्रावधान है। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में कंपनी पर टर्नओवर का 10 फीसदी तक जुर्माना और उसके एग्जिक्यूटिव को तीन साल तक की जेल का प्रावधान है। हमारे देश में भी सोशल मीडिया का जिस तरह से दायरा बढ़ा है, हमारे देश में जिस तरह की सांस्कृतिक भिन्नता है चाहे वो पूजा पद्धति हो या फिर भाषा हो ऐसे में लोगों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काना या फिर गलतफहमी पैदा करना आसान हो जाता है। इसके मद्देनजर हमारे देश में भी इस पर नजर रखने और कड़े कानून बनाने की जरूरत है। हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अफवाह नाम की एक फिल्म आई है, इस फिल्म में बहुत अच्छे से दिखाया गया है कि आज के दौर में अफवाह का भ्रमजाल कैसे बुना जाता है और उसके कितने घातक परिणाम हो सकते हैं। आज लोगों को ऐतिहासिक पात्रों के नाम पर गलत तथ्य दिए जाते हैं। वर्तमान समस्याओं पर पर्दा डालने के लिए आज समाज को खिलजी औऱ टीपू सुल्तान के नाम पर बहस में उलझा दिया जाता है। ऐसे में सोशल मीडिया को, जो लोगों की जिंदगी में गहरे तक समाया हुआ है उस दौर में बेहद समझदारी से चलाना होगा। नहीं तो आपको कब एक टूल किट या उसके हैंडलर और प्रचारक के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाएगा आपको खुद समझ नहीं आएगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU