Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – माननीयों को छूट या माननीयों की लूट

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर कानूनी संरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों या विधायकों को कानूनी संरक्षण नहीं है। सांसदों या विधायकों पर वोट देने के लिए रिश्वत लेने का मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले में पांच जजों के संविधान पीठ का फैसला पलट दिया है। ऐसे में नोट के बदले सदन में वोट देने वाले सांसद या विधायक कानून के कटघरे में खड़े होंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार ने भी ऐसी किसी भी छूट का विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 105(2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्त सदस्य एक आपराधिक कृत्य में शामिल होता है। जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के कार्य के लिए आवश्यक नहीं है। अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है। ऐसे संरक्षण के व्यापक प्रभाव होते हैं। राजव्यवस्था की नैतिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा मानना है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है। इसमें गंभीर ख़तरा है। ऐसा संरक्षण ख़त्म होने चाहिए। रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है, 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105, 194 के विपरीत है। रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगी। एक सासंद या विधायक छूट का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि दावा सदन के सामूहिक कामकाज से जुड़ा है। अनुच्छेद 105 विचार-विमर्श के लिए एक माहौल बनाए रखने का प्रयास करता है। इस प्रकार जब किसी सदस्य को भाषण देने के लिए रिश्वत दी जाती है तो यह माहौल खराब हो जाता है। सांसदों या विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बहस छिड़ गई है कि यह माननीयों को छूट है या माननीयों की लूट है। संसदीय विधेषधिकार उन विशेषाधिकारों को कहा जाता है जिनका, संसदों और राष्ट्रीय विधायिकाएं विशिष्ट रूपसे आनंद लेते हैं, जो उनके अधिकार, स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इन विशेषाधिकारों की स्थापना मुख्य रूप से विधि, रीति-रिवाज अथवा संवैधानिक अनुच्छेद के आधार पर की जाती है। समय-समय पर जहाँ कुछ की पुष्टि की गई है, वहीँ अन्य गौण हो चुके विशेषाधिकारों को कानूनन समाप्त किया जाता रहा है। संसदीय विशेषाधिकारों का मूल उद्देश्य विधायकों को अपने विधायी कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों या बयानों के लिए नागरिक या आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षित रखना है। सांसदों द्वारा संसद में कहे गए किसी भी बात पर संसद के अलावा किसी भी अदालत या अन्य संस्थान में सवाल नहीं पूछा जा सकता। विधायकों को संसद में कुछ भी कहने पर सम्पूर्ण न्यायिक प्रतिरक्षण होता है।
सामान्यत: सांसदों को विभिन्न स्तर पर न्यायिक उत्तरदायित्व से भी प्रतिरक्षण प्राप्त होता है, विशेषकर संसदीय सत्र की दौरान अदालती समन और न्यायिक मामलों में छूट होती है। हालाँकि देशद्रोह और आपराधिक मामलों को इस विशेषाधिकार के दायरे के बहार रखा जाता है। भारतीय संविधान संघ और राज्य दोनों स्तरों पर, विधायिका के सदनों के कामकाज की स्वतंत्रता के लिए प्रावधान प्रदान करता है। संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदनों के विशेषाधिकारों से संबंधित है और अनुच्छेद 194 राज्य विधानमंडल के सदनों के विशेषाधिकारों से संबंधित है। दोनों अनुच्छेदों की शब्दावली सामान्य है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 में संसद के सदनों की और उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ विशेषाधिकार के तहत संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में वाक्य-स्वातंत्र्य होगा। यानी संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
छत्तीसगढ़ में एक बार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी आए थे। यहाँ उन्हें बताया गया कि विधानसभा में ऐसी व्यवस्था है कि कोई सदस्य अगर गर्भगृह में आकर विरोध करता है तो स्वत: निलंबित हो जाएगा। सोमनाथ ने इस पर एतराज जताते हुए कहा था कि जनप्रतिनिधियों के लिए अपनी बात रखने की जगह सदन है। उन्होंने इस विशेष शक्ति के मिसयूज की आशंका भी जताई थी।
सांसदों को संसद और हाउस पैनल की बैठकों में भाग लेने के लिए दैनिक भत्ते के रूप में 2,000 रुपए मिलते थे। सांसदों के मिलने वाला भत्ता साल 2018 में बंद कर दिया गया था। देश के उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष एम वेंकैया नायडू के कहने राज्यसभा सचिवालय द्वारा किए गए विश्लेषण में बड़ा खुलासा हुआ। रिपोर्ट के अनुसार संसदीय स्थायी समिति की बैठकों में भाग लेने के लिए मिलने वाले विशेष भत्ते के बंद होने के बाद भी मीटिंग में सांसदों की उपस्थिति पर कोई असर नहीं पड़ा है। नायडू ने यह रिपोर्ट तब मांगी थी जब कुछ सांसदों ने उनके साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि विशेष भत्ता से कई सांसदों को नियमित रूप से बैठकों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलता था।
1 अप्रैल, 2018 से सांसदों के मिलने वाला विशेष भत्ता बंद कर दिया गया था। 2016-17 के दौरान जब भत्ता पूरे वर्ष के लिए उपलब्ध था तब डीआरएससी की 119 बैठकों में औसत उपस्थिति 47.64 फीसदी थी और 2019-20 के दौरान भत्ता नहीं मिलता था, तब 119 बैठकों के लिए उनकी अटेंडेंस बढ़कर 48.79 फीसदी हो गई। अप्रैल से पहले तक 2017-18 के दौरान 6 महीने के लिए विशेष भत्ता दिया गया था।
संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) अधिनियम, 2010 के अनुसार, उन्हें 50,000 रुपये की सैलरी मिलती है। इस सैलरी के अलावा मेंबर ऑफ पार्लियामेंट यानी एमपी को और भी कई प्रकार के भत्ते और लाभ दिए जाते हैं। इनमें अगर संसद सत्र चल रहा है, तो फिर इसमें हिस्सा लेने के लिए उन्हें दैनिक भत्ते दिया जाता है। इसके अलावा इन सांसदों को हर महीने निर्वाचन क्षेत्र भत्ता भी दिया जाता है, जो कि 45,000 रुपये होता है।
इतना ही नहीं इन सांसदों को कई अन्य सुविधाएं और भत्ते दिए जाते हैं। जैसे अपने निर्वाचन क्षेत्र से संसद के सत्र में शामिल होने के लिए आने के लिए यात्रा भत्ता दिया जाता है। इसके तहत अगर सांसद ट्रेन से यात्रा करता है, तो फिर उन्हें एक्जीक्यूटिव क्लास यानी फस्र्ट क्लास कैटेगरी में एसी पास दिया जाता है। वहीं अगर ये सांसद साहब हवाई मार्ग से यात्रा करते हैं, तो उन्हें किसी भी एयरलाइन का एक चौथाई हवाई किराया और अपने वाहन द्वारा सड़क मार्ग से यात्रा करने पर उन्हें 16 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं। प्रत्येक संसद सदस्य को अपने परिजन के साथ हर साल कुल 34 सिंगल एयर ट्रैवल की सुविधा भी दी जाती है।
सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं और भत्तों की लिस्ट सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती है। इन्हें पेंशन, स्टेशनरी, ऑफिस खर्चा, इंश्योरेंस का पैसा भी अलग से मिलता है। बात करें ऑफिस खर्च की, तो इसके लिए सांसदों को प्रतिमाह 45,000 रुपये दिए जाते हैं। इसमें स्टेशनरी और डाक खर्च के लिए 15,000 की राशि शामिल की जाती है। सांसदों को मिलने वाली सैलरी या फिर भत्तों पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता है, यानी ये टैक्स फ्री होती है। वहीं इन्हें मिलने वाले भत्ते कई तरह के होते हैं, जिनमें कई सुविधाएं इनके परिवार के लोगों के लिए भी होती हैं।
भारत के प्रधानमंत्री का वेतन करीब 20 लाख रुपये सालाना होता है। प्रधानमंत्री को मिलने वाले इस वेतन में बेसिक पे के अलावा डेली अलाउंस, सांसद भत्ता समेत अन्य कई भत्ते शामिल होते हैं। पूर्व सांसदों को पेंशन तथा यात्रा भत्ते सहित मिलने वाले अन्य भत्तों के बारे में केन्द्र ने शीर्ष न्यायालय को बताया था कि पूर्व सांसदों को पेंशन और अन्य लाभ मिलना ‘उचितÓ है, क्योंकि सांसद के तौर पर उनका कार्यकाल भले भी समाप्त हो गया हो, उनकी गरिमा बरकरार रखी जानी चाहिए। केन्द्र ने वित्त विधेयक 2018 का भी जिक्र किया था, जिसमें सांसदों के वेतन तथा पेंशन से जुड़े प्रावधान हैं। इस विधेयक में लागत मुद्रास्फीति सूचकांक के अधार पर एक अप्रैल 2023 से प्रत्येक पांच वर्ष में उनके भत्तों को संशोधित करने का भी प्रावधान है।
वहीं,एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स यानी एडीआर द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले 15 सालों के दौरान आपराधिक मुकदमे झेल रहे सांसदों की संख्या में इजाफा हुआ है। कई उम्मीदवारों के खिलाफ की गई शिकायतों की वजह राजनीति भी हो सकती है। हालांकि, दागियों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही चली गई। दूसरी ओर सांसद और विधायक कोटे से करवाए जाने वाले कामों की विश्वसनीयता पर भी हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं।
बहरहाल, लोकसभा सांसदों की तरह राज्यसभा सांसदों को सभी अधिकार मिले हैं। इनमें विधायी शक्तियां, संविधान संशोधन की शक्ति, वित्तीय शक्ति, कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति, विविध शक्तियां शामिल हैं। इसके अलावा राज्यसभा सांसदों को दो ऐसे विशेष अधिकार प्राप्त हैं, जो लोकसभा सांसदों को प्राप्त नहीं हैं। इस प्रकार की शक्तियों का सम्बन्ध देश के संघीय ढांचे से है और राज्यसभा को राज्यों का एकमात्र प्रतिनिधि होने के कारण इस प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं। जब शक्तियाँ मिलती हैं तो उसके दुरूपयोग की आशंका भी बढ़ जाती है। ऐसे में इस बात का खतरा तो बढ़ ही जाता है कि यह छूट कहीं लूट में न बदल जाये।

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