Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – चुनाव, तकनीक और ‘खिलवाड़’

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र
-सुभाष मिश्र

आज कुछ चर्चित मुद्दों की बात एक साथ करेंगे। पहले बात छत्तीसगढ़ में पहले चरण के मतदान की, यहां बस्तर, राजनांदगांव और कवर्धा क्षेत्र की 20 सीटों पर चुनाव हुआ। नक्सलियों की धमकी के बाद भी ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में लोगों ने जमकर मतदान किया। अपने मताधिकार का उपयोग करते हुए लोगों ने संदेश दिया कि उनका भरोसा लोकतंत्र पर है, वे बंदूकतंत्र को खारिज करते हैं। वे अपना और अपने क्षेत्र का विकास लोकतांत्रिक तरिके से चुनी हुई सरकार से कराना चाहते हैं। वे हिंसा, गोलीबारी को अब बर्दाश्त नहीं करना चाहते। हालांकि नक्सली इस दौरान भी छुटपुट घटनाओं को अंजाम देते रहे। कहीं-कहीं सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ भी हुई। इन 20 सीटों में 40 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोगों ने अपने मतों का इस्तेमाल किया। सुबह से ही ज्यादातर बूथों में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। एक लोकतांत्रिक देश के लिए ये बेहद सुखद तस्वीर होती है। कई तरह की विपरित परिस्थितियों के बाद भी लोग वोट करने के लिए आगे आते हैं, अपने वोट की ताकत को समझते हैं। पिछले कुछ चुनावों से देशभर में ये रुझान सामने आ रहा है कि बड़े शहरों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में ज्यादा वोटिंग होती है। महानगरों में सरकार हर तरह की सुविधा मुहैया कराती है लेकिन वहां लोगों में वोट डालने के लिए उस तरह उत्साह नजर नहीं आता। इस बार भी छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित इलाकों में लोग बुलेट की जगह बैलेट को तरजीह दी है। ये यहां के लोकतंत्र की खूबसूरती है। इन 20 सीटों पर छत्तीसगढ़ की राजनीति के कई स्थापित नाम अपनी किस्मत आजमा रहे हैं इनमें डॉ रमन सिंह, मो अकबर, मोहन मरकाम, विक्रम उसेंडी, केदार कश्यप, लता उसेंडी जैसे नाम शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में इस बार पहले चरण के चुनाव में दोनों ही दलों अपना एजेंडा बताने से ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप पर फोकस किया। मतदान के लिए जब बहुत कम दिन बाकी थे तब जाकर संकल्प पत्र जारी किया। हालांकि मतदान के बाद दोनों ओर से जीत के दावे हो रहे हैं। जनता ने अपना जवाब ईवीएम में कैद करा दिया है, जो तीन दिंसबर को सामने आएगा। वैसे इस बार के चुनाव को सभी एक अलग तरह का चुनाव मान रहे हैं। परंपरागत तरीके में काफी बदलाव इस बार महसूस किया गया है। इसके अलावा एक और मुद्दा बहुच चर्चा में है वो है डीपफेक टेक्नोलॉजी क्या है और ये क्यों चर्चे में है। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मौजूदा तस्वीर या वीडियो में हेरफेर करके उसे और ज्यादा रियल बनाने में किया जाता है। बहुत ही आसान भाषा में कहें तो डीपफेक एक एडिटेड वीडियो होता है, जिसमें किसी अन्य के चेहरे को किसी अन्य के चेहरे से बदल दिया जाता है। डीपफेक वीडियोज इतने सटीक होते हैं कि आप इन्हें आसानी से पहचान नहीं सकते। दुनिया भर में डीपफेक काफी तेजी से फैल रहा है। अभिनेत्री रश्मिका मंदाना की एक तस्वीर के साथ इस तकनीक से छेड़छाड़ की गई जिसके चलते ये बहुत चर्चा में है। रश्मिका मंदाना ने इस पर हैरानी जताते हुए सोशल मीडिया में लिखा है कि ईमानदारी से कहूं तो ऐसा कुछ न केवल मेरे लिए, बल्कि हममें से हर एक के लिए बेहद डरावना है। अगर मेरे साथ ये तब हुआ होता, जब में स्कूल या कॉलेज में थी, तो मैं इससे निपटने का सोच भी नहीं सकती थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये तकनीक कितनी खतरनाक है। आजकल बहुत से ब्लैकमेल के मामले इसी तरह के तकनीक के कारण सामने आ रहे हैं। अमिताभ बच्चन ने भी वीडियो को शेयर करते हुए कहा कि इस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। डीपफेक के लिए कई वेबसाइट्स और एप हैं, जहां लोग डीपफेक वीडियोज और इमेज बना रहे हैं। डीपफेक शब्द डीप लर्निंग और फेक के मेल से बना है। डीप फेक टेक्नोलॉजी की मदद से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी सेलिब्रिटी वीडियो के फ़ेस के साथ फेस स्वैप कर दिया जाता है। ये देखने में बिलकुल असली वीडियो या इमेज की तरह दिखती है। तकनीक ने जहां हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं, वहीं कई घातक टूल्स भी सामने आए हैं। इनसे सभी को सतर्क होना होगा। क्योंकि मजाक में बनाया गया वीडियो तक तो ठीक है, लेकिन किसी के छवि खराब करने वाले वीडियो और तस्वीर का बहुत खराब परिणाम सामने आ सकता है। तीसरा चर्चित मामला ‘टाइम आउट’ रहा है, ये मामला जेंटलमेन गेम में कैसे खेल भावना खत्म हो रही है इसका एक उदाहरण बनकर सामने आया है। दरअसल विश्व कप के एक अहम मुकाबला श्रीलंका और बांग्लादेश के बीच खेला जा रहा था। इस मैच में श्रीलंका के बल्लेबाज एंजेलो मैथ्यूज के खिलाफ बल्लेबाजी के लिए थोड़ी देरी से पहुंचने पर बांग्लादेशी कप्तान शाकिब अल हसन ने अपील की, अंपायर ने इसे स्वीकारते हुए टाइम आउट दे दिया। क्योंकि मैथ्यूज तय समय पर बैटिंग के लिए तैयार नहीं थे। वे इंटरनेशनल क्रिकेट में टाइम आउट होने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बने। बांग्लादेश की टीम द्वारा जिस तरह से इस मामले में अपील की गई उसकी चौतरफा निंदा हो रही है। बांग्लादेशी कप्तान शाकिब अल हसन ने कहा कि मुझे लग रहा था मैं जंग में हूं। मुझे उस समय टीम के हित में जो करना था, वह मैंने किया। इधर मैथ्यूज ने कहा कि शाकिब ने जो किया वह शर्मनाक है। ऐसा शायद ही कोई टीम करेगी। शाकिब और बांग्लादेश की हरकत बेहद शर्मनाक है। अगर वे इस तरह क्रिकेट खेलना चाहते हैं, तो यह बेहद शर्मनाक है। मुझे नहीं लगता कि कोई और टीम ऐसा करती। गौतम गंभीर ने अपनी सोशल पोस्ट में लिखा कि आज जो हुआ वह बेहद निराशाजनक है। क्रिकेट एक ऐसा खेल है जहां जीत-हार से ज्यादा खेल भावना की अहमियत रही है। इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं जब किसी खिलाड़ी को आसानी से आउट किया जा सकता, लेकिन खेल भावना को अहमियत देते हुए ऐसा नहीं किया। इस तरह जीत का दबाव जो कहीं न कहीं बाजार से जुड़ा है वो खेल समेत हमारे जीवन के हर पहलु को बदल रहा है। आज मनोरंजन से लेकर राजनीति तक ये बदलाव हर तरफ दिख रहा है। इस अंक में हमने राजनीति, तकनीक और खेल में आ रहे बदलाव की बात की, इनसे सीख लेनी होगी और सतर्क भी रहना पड़ेगा।

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