Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – राजनीति में आधी आबादी का हाल

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

वैसे तो हमारे देश में कई दशक पहले एक महिला प्रधानमंत्री के तौर पर देश की सेवा कर चुकी है। इंदिरा गांधी के बाद भी देश की राजनीति में कई अहम पदों पर महिलाओं ने जिम्मेदारीपूर्वक कत्र्तव्य का निर्वहन किया है, जबकि अमेरिका, चीन, रूस जैसे देश में 21वीं सदी में ऐसा नहीं हो पाया है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना को 100 साल से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन आज भी वहा महिलाओं को राजनीति के लायक नहीं समझा जाता है। चीन की राजनीति में महिलाएं लगातार हाशिए पर रही हैं। सुपरचाइना में लिखते हुए जियायुन फेंग ने एक बार कहा था कि चीन में बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन हुए हैं। पिछले 100 सालों में चीन का विकास भी काफी तेजी से हुआ है, लेकिन राजनीति में महिलाओं का आगे आना अभी भी सबसे मुश्किल बात है। पुरुष अभी भी चीन के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं पर हावी हैं।
महिलाओं को राजनीति में भागीदारी के नाम पर हम कई विकसित देशों से आगे रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या हमारे देश में व्यापक भागीदारी के बाद भी महिलाएं राजनीति में उस तरह शक्तिशाली हो पाई हैं या फिर संख्या बल की पूर्ति ही इनके द्वारा किया जा रहा है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं को रिझाने के लिए कई घोषणाएं की गईं, जिसका लाभ भी उन्हें मिला। इसी तरह लोकसभा चुनाव में भी महिलाओं को लेकर काफी बात की जा रही है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है। हालाँकि, वृहद स्तर पर देखें तो यह संख्या अभी भी कम है, क्योंकि यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आस-पास भी नहीं है। अमेरिका में यह आँकड़ा 32 प्रतिशत है, जबकि पड़ोसी देश बांग्लादेश में 21 प्रतिशत है। वर्ष 1962 से अभी तक लगभग 600 महिलाएँ सांसद के रूप में चुनी गई हैं।
देश के 543 लोकसभा क्षेत्रों में से लगभग आधे ने वर्ष 1962 के बाद किसी महिला को सांसद के रूप में नहीं चुना है। भले ही चुनाव में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है, लेकिन नीति निर्धारण में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। आज भी पंचायत और नगर निगमों में सरपंच पति और पार्षद पति जैसे स्वयंभू पद देखने और सुनने को मिलते हैं। महिला आरक्षण बिल सांसद ने पास कर दिया है। इसी तरह समाज में महिलाओं को सश्क्त बनाने लिए जमीन या संपत्ति के पंजीयन में छूट देने से उनके नाम पर संपत्ति तो ली जा रही है। उन्हें राजनीतिक पदें तो मिल रहे हैं लेकिन अभी भी महिलाएं कई कारणों से सियासत में निर्णायक भूमिका में नहीं आ पा रही हैं। पिछले कुछ सालों में महिला सांसदों ने ज्यादातर स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, सड़क, सूक्ष्म-लघु-मध्यम उद्योगों से जुड़े सवाल सदन में किए हैं। यह समाज के वंचित व कमजोर वर्ग से जुड़े सवाल हैं। जबकि पुरुष सांसदों के अधिकतर सवाल वित्त, रक्षा, विदेश मामलात, पीएमओ से संबंधित थे।
आगामी लोकसभा चुनाव में महिला वोटर्स इस बार जीत की सूत्रधार बन सकती हैं। ऐसा इसलिए संभव हो सकता है, क्योंकि चुनावी इतिहास में पहली बार बड़ी संख्या में महिला वोटर्स हिस्सा लेंगी। अब तक कुल 96.88 करोड़ मतदाता रजिस्टर हुए हैं, जिनमें महिला वोटर्स की संख्या रिकॉर्ड 47.1 करोड़ तक पहुंच गई है। इसके मद्देनजर पिछले 6 माह में कई बड़े फैसले लिए गए हैं। मोदी सरकार ने पिछले 6 महीने में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई अहम फैसले किए हैं। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने वाला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पारित किया गया। अंतरिम बजट 2024-25 में लैंगिक बजट में 38.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घई। लखपति दीदी का लक्ष्य 2 करोड़ से बढाकर 3 करोड़ कर दिया गया। निर्वाचन में महिला आरक्षण बिल लागू होने के बाद लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 181 हो जाएगी। ये काफी बड़ी संख्या है।
छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा सीटों में इस बार 19 महिला विधायक चुनी गई हैं। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 15 और कांग्रेस ने 18 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया था। इनमें से बीजेपी से आठ और कांग्रेस से 11 महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन से ही राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भूमिका देखी जाती रही है। आंदोलन में सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली, विजय लक्ष्मी पंडित जैसी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आजादी के बाद भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनने का गौरव इंदिरा गांधी को प्राप्त हुआ जो 1966-1977 तक और फिर 1980-1984 तक देश की प्रधानमंत्री रहीं। भारत में प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी बनीं। वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूू भी आदिवासी समाज से हैं और वो देश की पहली आदिवासी महिला हैं जो राष्ट्रपति बनी हैं। इन सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर महिलाओं की पहुंच भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भूमिका का जीवंत उदाहरण तो है, लेकिन देश की आधी आबादी को वास्तविक रूप से सशक्त बनाने के लिए और प्रयास और जागरूकता लाने की आवश्यकता है।

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