Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – छत्तीसगढ़ एक बार फिर राम-मय

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Chhattisgarh once again Ram-May

– सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ एक बार फिर राम-मय नजर आएगा। एक से तीन जून तक रायगढ़ के रामलीला मैदान में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन होने जा रहा है। अपनी तरह का एक विशिष्ट आयोजन है। छत्तीसगढ़ में जबसे भूपेश बघेल की सरकार आई है तभी से ही करोड़ों लोगों के धार्मिक आस्था के प्रतीक भगवान राम को छत्तीसगढ़ की परंपरा से जोड़ते हुए कई कार्य किए हैं, फिर वो राम वन गमन पथ हो या फिर रामायण मंडलियों को प्रोत्साहित करना हो या फिर रामायण पर आधारित महोत्सव कराना हो। दरअसल, किसी भी चीज को देखने का अपना अपना नजरिया है। एक तरफ राजनीति को आस्था से जोडऩे की बात है, तो दूसरी तरफ परंपरा से जोडऩे की बात है।
इसे समझने के लिए आपको छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में सदियों से जड़ें जमाई वो आस्था है जो सीधे राम से जुड़ी हैं। छत्तीसगढिय़ा सदियों से मर्यादा पुरुषोत्तम के सौम्य रूप को पूजता रहा है, तभी तो वो अपने भांजे में राम का रूप देखता है और उसे पूज्य मानता है। इस राज्य में 15 सालों तक भाजपा की सरकार थी लेकिन वो छत्तीसगढ़ को इस तरह पहचानने में चूक गई। इसके पीछे कारण कुछ भी रहे हों लेकिन तत्कालीन रमन सिंह सरकार छत्तीसगढ़ की परंपराओं के साथ, तीज-त्यौहारों के साथ उस तरह की तालमेल नहीं बैठा पाई जिस तरह की जरूरत थी। दरअसल छत्तीसगढ़ नए राज्य की मांग के पीछे ये बहुत मजबूत कारण थे यहां की संस्कृति परंपरा बोली। इनकी उपेक्षा जाने अनजाने में संयुक्त मध्यप्रदेश के वक्त हो जाती थी। उसका क्रम किसी न किसी कारण से राज्य निर्माण के डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त जारी रहा। ये यहां के पूर्ववर्ती सरकारों की सियासी चूक तो थी।
वहीं भूपेश बघेल ने राज्य की कमान संभालते ही प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की ओर फोकस करना शुरू किया। यहीं से राजीव गांधी न्याय योजना, गोधन न्याय योजना जैसी योजनाओं का जन्म हुआ। इस सरकार ने कोशिश की कि कुछ भी हो जाए लेकिन प्रदेश के किसान और वन उत्पादों पर निर्भर रहने वाले लोगों की चेहरे पर मुस्कान बनी रहे।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा से लेकर सुकमा तक भगवान राम से जुड़ी लोक आस्था के कई केन्द्र है। इनकी ओर कभी भी उस तरह ध्यान नहीं दिया गया जिससे की ये स्थान देश-प्रदेश के सामने उभरकर आए। भूपेश बघेल सरकार ने राम-वन-गमन प्रोजेक्ट के तहत इन स्थानों को विकसित करने का बीड़ा उठाया, फिलहाल प्रदेश में इस तरह के 9 स्थानों को पर्यटन के नजरिए से विकसित किया जा रहा है। इससे कहीं न कहीं इन स्थानों से जुड़ी लोकआस्था को भी संबलता मिलती है। रायगढ़ में शुरू होने जा रहे रामायण महोत्सव की तैयारियां जोरों पर है।
खास बात ये है कि महोत्सव में विशेष रूप से अरण्य कांड पर केंद्रित रामायण गाथा की प्रस्तुति होंगी। मान्यता है कि भगवान श्रीराम अपने वनवास काल के दौरान ज्यादातर समय छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में बिताए थे। इससे समझा जा सकता है कि सरकार स्थानीयता को उभारने के लिए कितनी गंभीर है। इस महोत्सव में विदेशी कलाकारों द्वारा भी आकर्षक स्वरूप में रामगाथा का मंचन किया जाएगा। इसमें मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, गोवा, असम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के साथ ही विदेशी कलाकारों के द्वारा विशेष रूप से रामायण का आकर्षक मंचन किया जाएगा।
हालांकि इसकी अहमियत को अब देखते हुए इस पर सियासी बयानबाजी भी हुई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने कहा कि निमंत्रण मिलेगा तो वो वहां जाने के लिए अवश्य विचार करेंगे। वहीं इसका जवाब सीएम बघेल ने ये कहते हुए दिया था कि सरकारी आयोजन है सभी को आमंत्रण जाएगा, लेकिन भाजपा के अध्यक्ष अतिरिक्त चाहते हैं तो उन्हें 2 कार्ड भेज देंगे।
रामचरितमानस में भरपूर सामाजिक दृष्टि है। गोस्वामी तुलसीदास लोकधर्मी भक्त कवि थे। तुलसीदास ने सामाजिक आचरण, व्यक्ति और समाज का विवेक, मानवीय संबंध, सामाजिक संघर्ष सभी को लिया है। खास बात ये है कि उन्होंने इस महाकाव्य को आम लोगों की बोलचाल की भाषा में सृजित किया है। कहीं न कहीं इसके पीछे उनका मानना रहा होगा कि संस्कृत में इसे कम लोग ही पढ़ समझ पाएंगे लेकिन अवधी में आम जनमानस तक पहुंच पाएगी।
खैर सियासत के इतर देखें तो रामायण महोत्सव कराना सांस्कृतिक नजरिए से बहुत अच्छी पहल है। इससे नई पीढ़ी को इसकी अहमियत समझने में आसानी होगी। साथ ही इससे वो ये भी समझ सकती है कि राम के नाम पर सियासत करना और राम को अपने बीच स्थापित करना दो अलग-अलग बात है।

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