Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सीबीआई रामबाण या सिर्फ सियासी दांव

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्रा 

ये ऐसा दौर है जब देशभर में केन्द्रीय एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सावल उठ रहे हैं। ऐसे दौर में छत्तीसगढ़ में सीबीआई ने एंट्री मारी है। हालांकि, यहां ईडी और आईटी की कार्रवाईयों पर राजनीतिक सवाल उठते रहे हैं। सत्ता बदलने के बाद सीबीआई की भी वापसी हो गई है। गौरतलब है कि भूपेश बघेल की सरकार ने यहां सीबीआई पर रोक लगा रखी थी। विधानसभा में आज छत्तीसगढ़ सरकार ने बिरनपुर हिंसा की सीबीआई जांच कराने की घोषणा कर दी है। डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कहा कि, गांव में भुनेश्वर साहू की हत्या हुई। न्याय की लड़ाई लड़ते लड़ते उनके पिता आज सदन में अपनी बात कह रहे हैं, यह अद्भुत संयोग है। दरअसल, ध्यानाकर्षण के जरिए भाजपा विधायक ईश्वर साहू ने सदन में मामला उठाया। उन्होंने कहा कि, घटना के वक्त सीबीआई जांच की बात कही गई थी। क्या सीबीआई जांच कराई जाएगी? इसके बाद उप मुख्यमंत्री ने सदन में जांच की घोषणा की। इससे पहले पीएससी परीक्षा में घपले के आरोप की जांच भी सीबीआई को सौंपी जा चुकी है। राज्य में बीजेपी की सरकार बनते ही विष्णुदेव सरकार ने 3 जनवरी 2024 के कैबिनेट की बैठक में पीएससी 2021-22 में हुए गड़बडिय़ों की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की थी।
उल्लेखीनय है कि 8 अप्रैल 2023 के दिन दो गुटों में हुए झगड़े के बीच भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई थी। मामले ने तूल पकड़ा। विवाद को धार्मिक रंग देने के प्रयास भी हुए। झगड़ा बच्चों की मारपीट से शुरू हुआ। बवाल इतना हुआ कि गांव में कुछ घर जला दिए गए। इसके 4 दिन के बाद गांव के ही पिता और उसके पुत्र की हत्या कर दी गई। जिले में धारा 144 लगा दी गई थी। गांव में तो दो सप्ताह तक कर्फ्यू लगा रहा। दोनों समुदायों के दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया गया था। इस मामले को चुनाव में भी जमकर भुनाया गया था, जिस युवक की हत्या हुई थी उसके पिता ईश्वर साहू साजा विधानसभा से कांग्रेस के दिग्गज नेता रविन्द्र चौबे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा गया था। ईश्वर साहू ने चौबे को हरा भी दिया। इस तरह इस मुद्दे ने प्रदेश की सियासत को खासा प्रभावित किया है। सीबीआई की साख पिछले कुछ दिनों में काफी कमजोर हुई है। उस पर सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप लगा है। ऐसे में सीबीआई पर भी अपनी पहचान स्वतंत्र संस्था के रूप पर बनाने का दबाव है। सीबीआई देश की महत्त्वपूर्ण जांच एजेंसी है। इस पर बार-बार सवाल उठना चिंता का विषय है। इससे सीबीआई की साख और कार्यशैली पर भी प्रश्न चिह्न लगता है, जिससे इस जांच एजेंसी पर देश की जनता का विश्वास भी डगमगा रहा है। सीबीआई पर सवाल उठने का मतलब देश की सरकार पर सवाल उठना है। इसीलिए सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसकी स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर आंच न आने दे। सरकार यह सुनिश्चित करे कि सीबीआई निष्पक्षता और निष्ठा के साथ कार्य करे। कईं बार राज्यों और केंद्र सरकार के मतभेदों का खमियाजा सीबीआई को भुगतना पड़ता है। इससे सीबीआई पर सवालिया निशान लग जाता है।
छत्तीसगढ़ के पत्रकार सुशील पाठक की हत्या जैसे चर्चित मामले की जांच के दौरान सीबीआई के अफसर पर र्श्वित लेने का आरोप लगा था जिसे बाद में कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी किया था। सुशील पाठक की हत्या 19 दिसंबर 2010 को बिलासपुर के नया सरकंडा में हुई थी। उन्हें घर के पास ही सड़क पर गोली मारी गई थी। एक साल तक पुलिस इस मामले की जांच करती रही, लेकिन आरोपियों का सुराग नहीं मिला। 24 फरवरी 2011 को राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी। इसके बाद कई साल तक सीबीआई के कई अधिकारी मामले को खंगालते रहे, आखिरकार इसकी जांच फाइल बंद कर दी गई। इसके बाद बिलासपुर के तत्कालीन एसपी राहुल शर्मा की मौत के मामले में भी सीबीआई कुछ खास नहीं कर पाई थी। हालांकि सीबीआई जज ने इस मामले में साक्ष्य छुपाने और सीनियर अधिकारी की भूमिका पर सवाल उठाए थे, लेकिन जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुच पाई।
इस तरह देखा जाए तो सीबीआई छत्तीसगढ़ में कोई बहुत सफल एजेंसी साबित नहीं हुई है, और इस दौर में तो उसकी निष्ठा, काम-काज पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। ऐसे में सीबीआई अपने काम से क्या अपनी खोई प्रतिष्ठा लौटा पाती है, ये देखने वाली बात होगी।
बिरनपुर मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार को अपनी पुलिस पर ही भरोसा नहीं है, ये शर्मनाक स्थिति है। बघेल ने सदन में उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा द्वारा बिरनपुर हत्याकांड की जांच कराए जाने की घोषणा पर सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि भाजपा और वर्तमान सरकार में उप मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे को जोर-जोर से उठाया था। यह निर्णय कैबिनेट की पहली बैठक में ही ले लिया जाना था।
सीबीआई पर तल्ख टिप्पणी करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के जज भी शामिल हैं। साल 2013 में कोल ब्लॉक आवंटन मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई जांच की प्रगति रिपोर्ट में सरकार के हस्तक्षेप पर कड़ी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और जांच एजेंसी दोनों को कड़ी फटकार लगाते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है, जो अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं। यूपीए सरकार के दौरान सीबीआई को ये फटकार लगी थी औऱ सरकार पर स्वतंत्र एजेंसी के कामकाज पर दखल देने का आरोप लगे थे। इसके बाद देश में पीएम मोदी की अगुवाई में सरकार बनी, उस पर भी केन्द्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगातार लगे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अपनी अस्तित्व की लड़ाई में उलझी नजर आ रही सीबीआई खुद को आजाद करा पाएगी।

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