Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – संसद में सेंधमारी…

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - संसद में सेंधमारी...
– सुभाष मिश्र

हम बात कर रहे हैं संसद में सेंघमारी की, जो हमारी नई संसद है उसको लेकर कई तरह की बातचीत हुई और काफी सुरक्षा के साथ उसका बनाया गया। उसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और जब प्रधानमंत्री मोदी गृहमंत्री अमित शाह के साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्रियों को शपथ दिलाने के लिए आए हुए थे, उसी 13 तारीख को संसद की दर्शक दीर्घा से दो लोग लोकसभा की कार्यवाही के दौरान कूद गए। ये सांसदों की टेबल पर उछलते हुए आगे बढऩे लगे। वहीं दो लोग बाहर नारेबाजी करते और फटाखा फोड़ते पकड़े गए। हालांकि उन्होंने किसी पर हमला नहीं किया। बल्कि प्रतिबंधित एरिया में जाकर नियमों के उल्लंघन किया। इस पर सांसदों ने एक आरोपी की पिटाई भी की। इस सबके चलते संसद की कार्यवाही प्रभावित हुई। बाद में सदन को स्थगित करना पड़ गया था। दरअसल जब ये घटनाक्रम हो रहा था तो हमको भगतसिंह और उनके साथियों की याद आ रही थी। इन्होंने ठीक है वैसा ही किया था। भगत से बहरी संसद को सुनाने के लिए परचे फेंके थे। बाद में भगत सिंह के साथियों ने आजादी की लड़ाई के लिए कोर्ट का सहारा लिया। उन्होंने अपने विचार कोर्ट की जिरह के वक्त व्यक्त किए। कोर्ट ने उन्हें माफी का विकल्प दिया है, लेकिन उन्होंने माफी नहीं मांगी और उन्हें आखिरकार फांसी पर लटकना पड़ा। यहां भी संसद की सुरक्षा में सेंधमारी करने वाले आरोपी प्रथम दृष्टया भगत सिंह क्लब से जुड़े पाए गए। ये सभी आरोपी अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग बैकग्राउंड से आते हैं। ये सभी सोशल मीडिया के जरिए मिलते हैं। इनको ललित झा नाम का व्यक्ति मिलवाता है। ये सभी एकजुट कैसे हुए इसकी जांच चल रही है। दरभंगा का रहने वाला ललित कलकत्ता में रहता है। कलकत्ता में टीएमसी के विधायक के साथ उसकी फोटो भी चर्चा में आती है। अब इसको राजनीतिक रूप दिया जा रहा है। बात संसद की सुरक्षा की करें तो ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले 13 दिसंबर 2001 को पुरानी संसद की इमारत में 5 आतंकियों ने हमला किया था। इसमें दिल्ली पुलिस के 5 जवान शहीद समेत 9 लोगों की जान गई थी। हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी। इस 13 दिसंबर को पहले हमले की 22वीं बरसी थी। ऐसे में किसी हमले के इनपुट भी थे, क्योंकि खालिस्तानी समर्थक और सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने चेतावनी भी जारी की थी, तो अलर्ट पहले से था कि हमला हो सकता है। लेकिन ये जो आरोपी अभी पकड़े गए हैं, इनका कोई आतंकी रिकॉर्ड नहीं है। ये हमलावर नहीं है, इनके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ है। लेकिन इनका तरीका वही था जो बहरी संसद को सुनाने के लिए भगत सिंह ने चुना था। लेकिन भगत सिंह के पास आजादी का एक विचार था। पकड़े गए आरोपियों भी नारे लगाते देखे गए लेकिन इनकी बात पूरी तरह से मीडिया में नहीं आई। वो कह रहे थे लोगों के पास आजादी नहीं है, अत्याचार हो रहा है, अन्याय हो रहा है। लेकिन आज जब हम भगत सिंह के दस्तावेज खंगालते तो समझ आता है कि भगत सिंह ने क्यों कहा कि मैं संसद में पर्चे फेंकने जाउंगा और अगर गिरफ्तारी होगी तो कोर्ट में जिरह करूंगा। बताउंगा कि हम क्या चाहते हैं। हम किस तरह की आजादी चाहते हैं। उस तरह की बात उन्होंने की। लेकिन अब सवाल ये कि अगर इस मामले में राजनीति ना तो कुछ मामले सामने आएगा। पता चलेगा कि नए संसद भवन में जो सुरक्षा की बात हो रही थी। उसकी स्थिति कैसी है और उस सुरक्षा को ठेंगा बताते हुए ये लोग कैसे पहुंच गए। जिन्होंने भी ये दृश्य देखा होगा चाहे वे कनाडा में बैठे खालिस्तानी हो या फिर आतंकवादी। उनको भी लगा होगा कि इस देश की नई संसद भी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में वे नई संसद में हमला करने की सोच सकते हैं। अब इस मामले में राजनीति शुरू हो गई है। जिन भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा की रिकमंडेशन पर आरोपियों का पास बना था, कुछ लोग उन पर सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग ललित झा को मास्टरमाइंड बताकर इसे टीएमसी से जोड़ रहे हैं। बरहाल यहां ये जानना जरूरी है कि आम आदमी संसद में कैसे एंट्री लेता है। संसद में एंट्री के लिए सबसे पहले एक पास बनवाना होता है। ये पास संसद सचिवालय से बनवाए जाते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए किसी सांसद की अनुशंसा जरूरी होती है। आम तौर पर क्षेत्र के सांसद इसमें मददगार साबित होते हैं। तो सांसद के कहने पर आपका पास बन जाता है। ऐसा ही ठीक विधानसभा के लिए भी होता है। प्रत्येक व्यक्ति का पास बनता है। अगर समूह में जाना चाहते हैं तो उसके लिए अलग से अप्लाई करना होता है। हालांकि दोनों में ही प्रक्रिया समान रहती है। हर सांसद का क्षेत्र बड़ा होता है। इतना की वो अपने हर मतदाता को जानता भी नहीं। अब चूंकि हमारे देश में आधार कार्ड है, अगर किसी की अनुशंसा होती है। तो ये मानकर चलते हैं कि दर्शक दीर्घा में स्कूल के बच्चों को भी ले जाते हैं। बहुत सारे लोग जाते हैं। तो दर्शक दीर्घा तक जाने वाले सभी लोगों की सबसे पहले संसद के गेट पर चेंकिंग होती है। यहां आपके फोन, कॉइन वगैहरा जमा कर लिए जाते है। इसके बाद अंदर एंट्री मिलती है। मशीन के अलावा मैन्युअल स्तर पर भी जांच होती है। पूरी बॉडी को चेक किया जाता है। अगर आप जूते-मोजे या अन्य जगह कोई सामान छिपाकर लाते हैं तो मशीन डिटेक्ट कर लेती है। यहां फेशियल रीडिंग के उपकरण भी लगे होते हैं। सुरक्षा में लगे जवानों को यह ट्रेनिंग भी दी जाती है कि वो हावभाव को समझें और किसी संभावित घटना से पहले ही अलर्ट हो जाएं। दो लेयर चेकिंग के बाद लोकसभा या राज्यसभा की कार्यवाही देखने के लिए हाउस में जाने को मिलता है। वहां भी क्रॉस चेक के लिए आपके नाम की जानकारी होती है। चेकिंग के बाद विजिटिंग गैलरी में भेज दिया जाता है। इसके बाद भी जो सुरक्षा का उल्लंघन हुआ वो तमाम सुरक्षा का फेल्योर था। इससे देश की साख भी खराब हुई। जब नए संसद का उद्घाटन हुआ तो लोगों को लगा कि ये पुराने से बेहतर होगा और पहले से ज्यादा सुरक्षित भी। हालांकि सुरक्षा के लिए अंदर मार्सल होते हैं और बाहर सुरक्षा के जवान होते हैं। अगर अंदर कोई सांसद हल्ला करता है तो मार्सल उन्हें बाहर ले आते हैं। ये भी एक व्यवस्था है। दर्शक दीर्घा में भी बेंच के दोनों सिरों पर सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मी बैठते हैं। वे हर हरकत पर पैनी नजर रखते हैं। अगर कोई दर्शक अचानक से नारेबाजी करता है तो उसे पहले रोका जाता है, नहीं मानने पर उसे विजिटिंग गैलरी से बाहर कर दिया जाता है। जानकारी है कि गिरफ्तार किए गए आरोपी मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा के लोकसभा विजिटर पास से आए थे। दोनों ने संसद में कार्यवाई के दौरान स्प्रे से गैस छोड़ी, जिससे पीला धुआं निकला था। गौरतलब है पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के मैनुअल के अनुसार पूरे संसद भवन परिसर की सुरक्षा जिम्मेदारी लोकसभा सचिवालय के एडिशनल सेक्रेटरी (अतिरिक्त सुरक्षा सचिव) की होती है। इसके दो पार्ट होते हैं- पहला संसद के अंदर राज्यसभा/लोकसभा चैंबर, लॉबी, गैलरी, सेंट्रल हॉल, सांसद वेटिंग रूम, गलियारे और कमेटी चैम्बर्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस के अधीन होती है। इस स्टाफ के पास हथियार नहीं होते हैं। दूसरा बाहरी परिसर में संसद भवन परिसर की दीवारों से लगे इलाके की सुरक्षा होती है। पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस इसके लिए दिल्ली पुलिस की मदद लेती है, साथ ही अन्य अर्धसैनिक बलों की मदद भी ली जाती है। ये हथियारों से लैस होते हैं। एक बात ये कि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है। ये केंद्र सरकार के अधीन है, इसे लेकर केंद्र और दिल्ली की केजरीवाल सरकार में तनातनी होती रहती है। अब संसद की सुरक्षा मामले में कार्रवाई हो गई। आरोपी गिरफ्तार हो गए। लोकसभा सचिवालय ने आठ सुरक्षाकर्मियों को भी निलंबित कर दिया। हालांकि सवाल अब भी बना है कि ये लोग सदन तक कैसे पहुंच गए। हम यहां किसी एक व्यक्ति पर सवाल नहीं उठा रहे बल्कि सिस्टम के फेल्योर होने की बात कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत की संसद में सुरक्षा उल्लंघन मामला सामने आया है। बल्कि विकसित अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की संसद में हमला हुआ है। लंदन में 22 मार्च 2017 को वेस्टमिंस्टर पैलेस (ब्रिटिश संसद) के बाहर आतंकी हमला हुआ था। हमले में 5 लोगों की मौत हुई थी जबकि करीब 50 लोग घायल हुए थे। श्रीलंका में 1987 में संसद पर ग्रेनेड से हमला हुआ था। 18 अगस्त को हमलावर ने उस कमरे में दो ग्रेनेड फेंके थे, ग्रेनेड उस मेज से उछलकर गिरे थे, जहां श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और प्रधानमंत्री रणसिंघे प्रेमदासा बैठे थे। धमाके में एक संसद सदस्य और एक मंत्रालय सचिव की मौत हो गई थी। अमेरिका में 2020 में राष्ट्रपति चुनाव राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हार गए थे। इससे नाराज ट्रंप समर्थकों ने कैपिटल हिल का घेराव कर तोडफ़ोड़ की थी। रूस के चेचन्या रिपब्लिक की संसद में 2010 में आतंकी हमला हुआ था। उदाहरण बहुत सारे हैं। हम उसकी वकालत नहीं कर रहे हैं। सवाल ये कि हमारी नई संसद को करोड़ों रुपए खर्च कर बनाया गया। सुरक्षा के तगड़े इंतजाम थे, फिर सुरक्षा में सेंधमारी कैसे हुई ये सवाल अब भी बना है। इस मामले में सांसद और लोग क्या कह रहे हैं। चूंकि अगले साल लोकसभा के चुनाव हैं, लोगों को चुनाव को साइड में रखते हुए ये ध्यान रखना होगा कि हमारी संसद की सुरक्षा में सेंधमारी हुई है। गमीमत रही आरोपियों के पास कोई हथियार नहीं था, अगर होता तो क्या हाल होता। हालांकि आरोपियों को जानने वाले बता रहे हैं कि लड़के सीधे साधे हैं। उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। चूंकि ये आरोपी सोशल मीडिया के जरिए मिले थे। पर एक बात साफ है कि सोशल मीडिया लोगों को वैचारिक स्तर पर एकजुट कर रहा है। आपकी हॉबी, आपकी दोस्ती के लिए और ठगी के लिए भी एकजुट कर रहा है। जिसके जैसे विचार हैं, वैसे लोग वर्चुअली एक दूसरे जुड़ रहे हैं। सट्टे का कारोबार हम देख रहे हैं वर्चुअली चल रहा है। विचारों को आदान प्रदान भी हो रहा है। आतंकी गतिविधियां भी हो रही हैं। रुपयों का लेन देन हो रहा है। न जानें क्या क्या हो रहा है। दुनिया जुड़ रही है, कहीं से भी बैठकर कहीं भी जुड़ सकते हैं। फिजिकली कब मिलते हैं, लेकिन आप अपने वैचारिक सोच को तुरंत शेयर कर सकते हैं। यहां हर कम्यूनिटी का एक कोना है, जिससे लोग जुड़े हुए हैं। नए लड़के लड़कियां दोस्त यार बनाने के लिए नई-नई साइट पर जाते हैं। यही कारण है कि यहां, लेस्बियन का अलग, उग्रवादियों का अलग कोना है। वैचारिक क्रांति करने वालों का अलग है। यानी सभी प्रकार के विचारों को अगर कोई मिलन स्थल या कहें आंगन है तो वो सोशल मीडिया है और सोशल मीडिया पर किस तरह की गतिविधि चल रही है। इसे कोई चेक नहीं कर पा रहा है। अभी हाल ही में डीप फेक टेक्नोलॉजी के जरिए प्रधानमंत्री का ही नाचते हुए वीडियो बन गया। उस पर बात हो रही है। तो जो लोग पहले वैचारिक क्रांति के लिए एक जुट होते थे, उनके लिए सोशल मीडिया एक जरिए बन गया है। यहां तक की भटके हुए लोग भी सोशल मीडिया पर एकजुट हो रहे हैं और संसद की सुरक्षा में सेंधमारी करने वाले ये लोग भी सोशल मीडिया के जरिए एकजुट हुए थे। गौर करने वाली बात है कि लोग कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल संसद में सेंधमारी की साजिश रचने में कर रहे हैं ये हम सबके लिए चौंकाने वाली बात है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU