बांग्लादेश की एक ट्रिब्यूनल अदालत ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को मौत की सजा सुनाई है। यह कार्रवाई 2024 के जुलाई-अगस्त में हुए छात्र आंदोलन के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए की गई है।
अदालत ने इस मामले के तीसरे आरोपी और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को मौत की सजा नहीं दी। उन्होंने अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए सरकार की ओर से गवाही देने की सहमति दी थी। इसी आधार पर उन्हें पांच वर्ष के कारावास की सजा दी गई है। मामून वर्तमान में जेल में हैं, जबकि शेख हसीना भारत में निर्वासन में रह रही हैं और अदालत में पेश होने से इनकार कर चुकी हैं। असदुज्जमान खान भी फरार बताए जा रहे हैं।
सरकारी गवाह बनकर बचाई जान
चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून ने अदालत में स्वयं पर लगे आरोप स्वीकार किए और सरकारी गवाह बनने की इच्छा जताई। इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल-1 ने जुलाई 2024 में उनकी याचिका स्वीकार कर उन्हें गवाही देने की अनुमति दी थी।
अदालत में पेशी के दौरान मामून ने स्पष्ट किया कि छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याएं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल के सीधे आदेश पर हुई थीं। उन्होंने अदालत से तथा देश और पीड़ित परिवारों से माफी भी मांगी।
मामून को मिली सजा पर परिवारों में नाराजगी
जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन में मारे गए छात्रों और प्रदर्शनकारियों के परिजनों ने मामून को दी गई केवल पांच वर्ष की सजा पर असंतोष जताया है। एक पीड़ित परिवार के सदस्य ने स्थानीय मीडिया से कहा कि जिन पर गोलीबारी का आरोप है, उन्हें मात्र पांच साल की सजा मिलना न्याय के साथ समझौते जैसा है।