शनिवार देर रात डूरंड रेखा पर पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच भीषण सैन्य झड़पें हुईं। यह संघर्ष पाकिस्तान के हवाई हमले के बाद शुरू हुआ, जिसमें इस्लामाबाद ने काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ठिकानों को निशाना बनाया था। यह घटना उस समय हुई जब अफगान अमीरात के विदेश मंत्री दिल्ली में मौजूद थे।
तालिबान और पाकिस्तान के दावे
अफगान प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने बताया कि झड़पों में 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 30 घायल हुए, जबकि अफगान सेना को 20 से अधिक जवानों का नुकसान हुआ। तालिबान ने बड़ी मात्रा में पाकिस्तानी हथियारों पर कब्जा करने का दावा किया। मुजाहिद ने कहा कि कतर और सऊदी अरब के अनुरोध पर यह सैन्य कार्रवाई रोकी गई। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सुरक्षा सूत्रों ने दावा किया कि अफगानिस्तान ने “बिना उकसावे” के गोलीबारी शुरू की, जिसका “पूरी ताकत” से जवाब दिया गया। पाकिस्तान ने कई अफगान पोस्ट नष्ट करने और तालिबान ने तीन पाकिस्तानी चौकियां कब्जाने का दावा किया। झड़पें सीमा के छह से अधिक क्षेत्रों में हुईं।
अफगानिस्तान का आरोप
काबुल में प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुजाहिद ने कहा कि पाकिस्तान अपनी जमीन पर मौजूद आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहों की अनदेखी कर रहा है, जबकि अफगानिस्तान को अपनी हवाई और जमीनी सीमाओं की रक्षा का अधिकार है। उन्होंने पाकिस्तान से आतंकियों को पनाह देना बंद करने और उन्हें काबुल सरकार को सौंपने की मांग की।
भारत के पूर्व राजनयिक की प्रतिक्रिया
पूर्व भारतीय राजनयिक केपी फेबियन ने इस तनाव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह घटना अफगान विदेश मंत्री की दिल्ली यात्रा के दौरान होना संयोग हो सकता है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान ने अपनी नीति गलत तरीके से लागू की और अत्यधिक दबाव बनाया, जिसका गर्वीले अफगानों ने प्रतिरोध किया। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के संबंध गंभीर रूप से खराब हुए हैं।” फेबियन ने यह भी उल्लेख किया कि अफगानिस्तान भारत के साथ संबंध मजबूत करने को उत्सुक है, जिससे पाकिस्तान असहज महसूस कर रहा है।