:राजकुमार मल:
भाटापारा: संकट में है किसानों का मित्र और मिट्टी का डॉक्टर। पहचाना जाता है केंचुआ के नाम से जिसकी प्रजनन क्षमता में तेजी से गिरावट आ रही है। फलस्वरुप आबादी साल-दर- साल घट रही है।
केंचुए केवल छोटे जीव नहीं, बल्कि मिट्टी की सेहत के संरक्षण और टिकाऊ खेती के प्रमुख आधार हैं। इसलिए केंचुओं की सुरक्षा और संवर्धन आने वाली पीढ़ियों की खाद्य सुरक्षा के लिए अहम है। कृषि वैज्ञानिकों में यह चिंता इसलिए देखी जा रहीं हैं क्योंकि प्रदेश के तीन जिलों में हुए प्रारंभिक सर्वेक्षण में केंचुओं की घटती आबादी की जानकारी सामने आई है।
इस खुलासे ने बढ़ाई चिंता
रायगढ़, कोरबा और जांजगीर- चांपा जिले में हुए प्रारंभिक सर्वेक्षण में मृदा जैव विविधता में 30 से 40% तक की गिरावट आने का खुलासा हुआ है। कारणों की तह में जाने पर यह जानकारी सामने आई कि रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का छिड़काव मानक मात्रा से लगभग दोगुना किया जा रहा है। परिणामस्वरुप केंचुआ की प्रजनन क्षमता कमजोर हो रही है। यही वजह है कि इनकी आबादी घटते क्रम पर है।
बढ़ी अम्लीयता और विषाक्तता
रासायनिक उर्वरक के मानक मात्रा से ज्यादा छिड़काव ने खेतीहर भूमि की पी एच मात्रा घटा दी है। इससे केंचुओं का जीवनकाल कम हो रहा है। इसके अलावा जैविक अवशेष भी घटते क्रम पर हैं क्योंकि फसल अवशेष जला दिए जा रहे हैं। कीटनाशकों के साथ प्रदेश के किसान खरपतवारनाशकों का भी छिड़काव बेहिसाब कर रहे हैं, जिससे केंचुओं की प्रजनन क्षमता कमजोर हो चली है। चिंता गंभीर इसलिए है क्योंकि बोनी से लेकर परिपक्वता अवधि तक किसान यह काम कर रहे हैं।
घट रहा मिट्टी का तापमान
रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का असंतुलित छिड़काव मिट्टी का प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ रहा है। इसे मिट्टी के घटते तापमान के रूप में देखा जा रहा है। यही वजह है कि मिट्टी में न केवल नमी घट रही है बल्कि उसकी जलधारण क्षमता भी कमजोर हो रही है। यह स्थितियां केचुओं के प्राकृतिक आवास को खत्म कर चुकीं हैं। इसलिए मौका मिल रहा है ऐसे हानिकारक जीवाणुओं को प्रसार का, जिन्हें मिट्टी का स्वाभाविक दुश्मन माना जाता है।
प्रमुख जैविक कड़ी
केंचुआ केवल मिट्टी को मुलायम या उर्वर नहीं बनाता, बल्कि वह मिट्टी में जीवन बनाए रखने वाली एक प्रमुख जैविक कड़ी है। इसके लुप्त होने का अर्थ है – मिट्टी की मृत्यु। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम जैविक तरीकों को बढ़ावा दें, रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, और फसल चक्र जैसे उपायों को अपनाएं। किसानों को जागरूक कर यह संदेश देना होगा कि केंचुआ की सुरक्षा खाद्य सुरक्षा की पहली शर्त है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर