दुर्ग: छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा और दुर्ग आर्य वीर दल के संयुक्त तत्वावधान में सेंट्रल जेल, दुर्ग में एक विशेष भजन-सत्संग और वैदिक प्रेरणा कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भक्ति, आत्मशुद्धि और सुधार की प्रेरक विचारधारा प्रवाहित हुई।
कार्यक्रम की शुरुआत ईश्वर स्तुति, प्रार्थना और उपासना के वैदिक मंत्रों से हुई, जिसका पठन आचार्य अंकित शास्त्री ने किया। उन्होंने बंदियों को प्रेरित करते हुए कहा –
“प्रतिदिन ध्यान करें, आध्यात्मिक चिंतन करें, सकारात्मक साहित्य पढ़ें और नियमित व्यायाम के माध्यम से अपने जीवन को नई दिशा दें। जेल का समय आत्मनिर्माण का अवसर बन सकता है।”
कासगंज (उत्तर प्रदेश) से पधारे प्रसिद्ध भजन गायक सुकांत आर्य ने अपने सुमधुर भजनों और उपदेशों से भावविभोर कर दिया। उन्होंने समझाया कि –
“ईश्वर की भक्ति से ही जीवन का निर्माण होता है और आत्मा का शुद्धिकरण संभव है।”
मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. अजय आर्य ने अपने मार्मिक प्रवचन में कहा –
“पश्चाताप के आँसू जीवन को पवित्र करते हैं। जब कोई भक्त सच्चे मन से रोता है, तो ईश्वर करुणा करते हैं और अंधकार को दूर कर देते हैं।” उन्होंने भक्ति सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि भक्ति का फल सत्संगति, सत्कर्म, और सद्विचारों में परिपक्व होता है। गीता का संदर्भ देते हुए बताया – “किए गए कर्मों का फल अवश्य मिलता है — शुभ कर्मों का शुभ और अशुभ का अशुभ।”
एक कैदी हर दिन अपनी सजा गिनकर दुःखी होता था। एक दिन एक साधु ने पूछा – “क्या तुमने कभी गिनती की कि तुमने कितनी बार दूसरों को दुःख दिया?” यह सुनते ही उसका अंतर्मन जागा। उसने ध्यान, साधना और सेवा प्रारंभ की — और भीतर से मुक्त हो गया।
एक बंदी ईश्वर से बोला – “हे प्रभु, क्या तुम सच में सबकी सुनते हो?” आवाज़ आई – “हाँ।” बंदी बोला – “तो फिर मेरी सजा कम क्यों नहीं हुई?” प्रभु ने मुस्कराते हुए कहा – “क्योंकि तुमने अब तक सच्चा पश्चाताप नहीं किया!”
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहे –
आचार्य अंकित शास्त्री, समाजसेवी मनोज ठाकरे, डॉ. अजय आर्य, भजन गायक सुकांत आर्य, बहन रबीबाला गुप्ता, तुषार आर्य, कृष्णमूर्ति, कविता, हिमांशु, एवं अनेक बंदीजन व प्रहरीगण।
सेंट्रल जेल के अधीक्षक श्री मनीष सम्भाकर और प्रहरी राजेश कुमार साहू की गरिमामयी उपस्थिति और सहयोग के लिए आर्य समाज ने हार्दिक आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में सत्यार्थ प्रकाश की प्रतियाँ वितरित की गईं एवं बंदियों को वैदिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई।
कार्यक्रम का समापन लोकमंगल की प्रार्थना, शांति पाठ, एवं प्रसाद वितरण के साथ हुआ।
प्रेरक विचार
“पिंजरा चाहे सोने का हो, वह पिंजरा ही रहता है; आत्मा को मुक्ति सत्य विचारों से ही मिलती है।” “पश्चाताप वह दीप है जो अंधकार को जलाकर उजाले में बदल देता है।