Don’t mind Holi बुरा ना मानो होली हैः छत्तीसगढ़ के कौन अधिकारी हैं पनौती ?

Don't mind Holi

छत्तीसगढ़ के कौन अधिकारी हैं पनौती ?

रायपुर। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य के दो अधिकारियों को पनौती बताया तभी से सत्ता की विथिकाओ मे यह चर्चा जिज्ञासा के साथ की जा रही है कि आखिर वह कौन दो अधिकारी है जो पनौती हैं। अगर आप यह जानना चाहते हैं तो आपको अर्जुन युग से लेकर अदानी युग तक का सफर करना। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिन दो अधिकारियों का जिक्र कर रहे हैं उनमें से एक छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस है जो अब रिटायर हो चुके हैं तो चलिए पहले उनकी कहानी सुन लीजिए। दक्षिण भारतीय मूल के यह अधिकारी अपनी क्रांतिकारी सोच से किसी भी नेता को बहुत आसानी से अपने वश में कर लेते हैं। देश की राजनीति के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह भी इनसे बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने इस अधिकारी को जैसे ही महत्व देना शुरू किया कुछ समय बाद अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री ही नहीं रहे। फिर भी अर्जुन सिंह का भरोसा इस अधिकारी पर बना रहा। अर्जुन सिंह इनकी सलाह मानते रहे और नतीजा यह निकला की अर्जुन सिंह को कांग्रेस तक छोडऩी पड़ी। बड़ी मशक्कत के बाद अर्जुन सिंह कांग्रेस में लौटे। फिर समय गुजरता रहा मध्य प्रदेश का विभाजन हुआ छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। अजीत जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने और उन्होंने इस अधिकारी को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी साथी ही उन पर भरोसा भी जताया। तीन साल बाद अजीत जोगी की सत्ता फिसल गई और जोगी कभी सत्ता में नहीं लौटे। इसके उपरांत केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई और केंद्र में अर्जुन सिंह ताकत के साथ लौटे और इस अधिकारी को उन्होंने दिल्ली बुला लिया। इसके बाद अर्जुन सिंह का पूरा कार्यकाल विवादों में रहने लगा। उनके पुत्र के साथ उनका विवाद बढऩे लगा। कांग्रेस में अर्जुन विरोध चरम पर पहुंच गया और अंतत: अर्जुन सिंह कि राजनीतिक यात्रा हाशिये पर चली गई। फिर इस अधिकारी पर कुछ समय के लिए कपिल सिब्बल ने भी भरोसा जताया आज सिब्बल कांग्रेस मे ही नहीं हैं। समय बदला केन्द्र मे मोदी सत्ता में आए और राज्य में रमन सिंह तीसरी बार सत्ता में। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन रमन सिंह ने अपने तीसरे कार्यकाल के अंतिम वर्षों में इस अफसर को प्रदेश के एक अत्यन्त् महत्व पूर्ण पद पर बिठा दिया और रमन सिंह फिर सत्ता में नहीं लौटे इतना ही नहीं रमन सिंह आज अपनी ही पार्टी में संघर्ष कर रहे हैं।
अपने आपको कामरेड और सादगी की प्रतिमूर्ति बताने वाला यह एनजीओ टाईप अधिकारी सबको भ्रष्ट और खुद को सबसे बड़ा हरिश्चंद्र बताते नही थकता था। रिटायरमेंट के समय चुपचाप आफिस से एयरपोर्ट जाकर कभी मोटर सायकल कभी ट्रेन में सफऱ करके अपनी साफ़ सुथरी छवि को गढऩे में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता था। पर जैसे ही इसे मौक़ा मिला दो-दो सरकारी मकान, कैबिनेट मंत्री का दर्जा, बेटे को प्रत्यक्ष और परोक्ष सरकार और बहुत सारी संस्थाओं से करोड़ों रूपये दिलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कहते हैं ना कि जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता कि… अब बारी दुनिया के दूसरे नंबर के उद्योगपति गौतम अदानी की थी। अदानी ने एक टीवी समूह का अधिग्रहण किया और एक भारी भरकम संचालक मंडल तैयार किया इस संचालक मंडल में इस पनौती महामात्य को भी जगह दे दी। बस अब यहीं आकर आपका ईश्वर पर भरोसा बढ़ जाएगा। जिस अदानी समूह के दूर दूर तक मुसीबत में आने के कोई अवसर नहीं थे इन जनाब के कदम रखते ही अदानी समूह भारी संकटों से घिर गया।
रुकिए….बात अभी ख़त्म नहीं हुई है..इस अधिकारी को अदानी समूह में जिस अधिकारी ने प्रवेश दिलाया वह अधिकारी भी ठीक ठाक जीवन यापन कर रहा था। उन पर लगे आरोपों की एफआईआर को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था अब वो खुद भी मुसीबत में आ गये हैं उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। तो मोराल ऑफ़ स्टोरी ये है कि कोई पनौती आपका कितना ही करीब क्यों ना हो उससे तत्काल दूरी बनाएँ।

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