कलेक्टर के आदेश की अवहेलना… मुख्यालय में नही रहते तकनीकी सहायक… कैसे पूरा होगा मनरेगा कार्य

जिला प्रशासन ने कई बार यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि मनरेगा से जुड़े सभी अधिकारी-कर्मचारी अपने निर्धारित मुख्यालय में निवास करें ताकि योजनाओं का क्रियान्वयन सुचारू रूप से हो सके। बावजूद इसके, सोनहत जनपद पंचायत में कलेक्टर के आदेश की खुली अवहेलना की जा रही है।

जानकारी के अनुसार, सोनहत जनपद पंचायत में पदस्थ कुल तकनीकी सहायकों में से अधिकतम एक या दो ही ऐसे हैं जो नियमित रूप से मुख्यालय पर उपलब्ध रहते हैं। बाकी सभी तकनीकी सहायक मुख्यालय से बाहर डेरा डाले हुए हैं।

तकनीकी सहायकों की मुख्य जिम्मेदारी कार्यों का आकलन करना, स्थल निरीक्षण करना, माप-पुस्तिका भरना और कार्यों को अंतिम रूप देना होती है। इनके बिना न तो नए कार्य शुरू हो पाते हैं और न ही पुराने कार्यों का बिल भुगतान हो पाता है।

एक स्थानीय सरपंच ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मनरेगा के तहत काम तो स्वीकृत हो जाते हैं, लेकिन जब कार्य पूरा होने के बाद मेजरमेंट कराने की बारी आती है, तो तकनीकी सहायक मिलते ही नहीं। हमें बार-बार जनपद कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अगर यही हाल रहा, तो मजदूरों को समय पर मजदूरी कैसे मिलेगी? उनकी रोजी-रोटी सीधे प्रभावित हो रही है।”

यह स्थिति तब है जब कोरिया कलेक्टर द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि सभी मैदानी कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से अपने मुख्यालय में निवास करना होगा ताकि आकस्मिक निरीक्षण या किसी भी जरूरी कार्य के समय वे उपलब्ध रहें।

तकनीकी सहायकों के इस रवैये से न केवल मनरेगा बल्कि आवास योजना और अन्य ग्रामीण विकास के कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति के कारण फील्ड रिपोर्टिंग और गुणवत्ता नियंत्रण पूरी तरह से ठप है।

ग्रामीणों ने की अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग

इस अव्यवस्था के चलते स्थानीय नागरिक और पंचायत प्रतिनिधि खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि सरकारी कर्मचारियों की इस लापरवाही का खामियाजा गरीब मजदूर झेल रहे हैं, जिनके लिए मनरेगा आय का एकमात्र स्रोत है।

ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से यह मांग की है कि ऐसे तकनीकी सहायकों के खिलाफ तत्काल सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए जो जानबूझ कर मुख्यालय से अनुपस्थित रह रहे हैं और शासकीय कार्यों में बाधा डाल रहे हैं। यदि जल्द ही स्थिति नहीं सुधरी, तो आने वाले समय में मनरेगा के तहत लाखों रुपये के कार्य रुक सकते हैं और मजदूरी भुगतान में बड़ा विलंब हो सकता है।

इस संबंध में जब जनपद सीईओ से संपर्क करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। अब देखना यह है कि कलेक्टर के आदेश की अवहेलना करने वाले इन तकनीकी सहायकों पर जिला प्रशासन कब तक नकेल कसता है।

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