Dhanteras festival धनतेरस के दिन आयुर्वेद के जनक ऋषि धन्वंतरि का प्राकट्य दिवस है।
Dhanteras festival
Dhanteras festival हम धनतेरस के दिन के अर्थ को भूलते जा रहे है , और इसे नया वस्तुएं खरीदने का दिन बना दिये है। कोई झाड़ू खरीद रहा है तो कोई गुंडी????
Dhanteras festival ऋषियों के बताये ज्ञान के अर्थ को न समझने के कारण हम अपनी संस्कृति को भुलते जा रहे है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले हमारे पूर्वज ऋषि कहते है कि आयुर्वेद का पालन करो तो तुम्हारे जीवन मे ऐश्वर्य आएगा।
“” पहला सुख निरोगी काया “”
हमने उल्टा अर्थ लगाकर खरीदारी शुरू कर दी।
Dhanteras festival पुराणों के अनुसार देवता-दानवों द्वारा समुंद मन्थन करने पर 14 रत्नों में से अंतिम रत्न के रूप में अमृत कलश लिये हुए भगवान धन्वन्तरि जी का प्रादुर्भाव हुआ था। उन्हीं की जयंती के रूप में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।
धन्वन्तरि जी वैद्य-विद्या-आयुर्वेद (चिकित्सा शास्त्र) के देवता माने जाते है।
इस दिन संचित की गई जड़ी-बूटियाँ अमृत के समान होती है।
आयुर्वेद में स्वस्थ शरीर को ही धन माना गया है।
पहला सुख निरोगी काया दूजा सुख घर में माया।
इसीलिये ऋषि-मुनियों ने सबसे पहले धन्वन्तरि पूजन कर स्वस्थ रहने की कामना के बाद ही लक्ष्मी पूजन करने कहा है।
धनतेरस के पहले दिन तक घर को लीप पोत कर स्वच्छ और पवित्र करके रंगोली तोरण आदि से सजावट किया जाता है। तथा शाम के समय मन्दिर , गोशाला , नदी तालाब व कुँआ के किनारे तथा बाग-बगीचों में भी दीपक जलाये जाते हैं। घर के अंदर पूजा स्थल पर धनाधिपति भगवान कुबेर व गौरी-गणेश की पूजा करके अन्नपूर्णा स्तोत्र , कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
धनतेरस के दिन करें यम दीपदान व जाने उसकी पूजन विधि
शास्त्रों के अनुसार इस दिन यम-दीपदान करने से मनुष्य के जीवन में आ रही अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
स्कंद पुराण के मुताबिक इस दिन ऐसा करने से अकाल मृत्यु का डर खत्म होता है। पूरे साल में धनतेरस और नरक चतुर्दशी को मृत्यु के देवता यमराज की पूजा दीपदान कर के की जाती है। इस दिन शाम को यमराज के लिए घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाया जाता है। माना जाता है कि, ऐसा करने से उस घर में रहने वालों पर यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के लोगों में अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता।
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
अर्थात – कार्तिक मास में त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यम-देव के उद्देश्य से दीपक रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है और जातक के अंदर अल्प मृत्यु के भय को दूर करता है साथ ही सुखी जीवन को जीने का साहस देता है।
यम दीपदान मन्त्र
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह |
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ||
इसका अर्थ है धनत्रयोदशी पर यह दीप मैं सूर्य पुत्र को अर्थात यम देवता को अर्पित करता हूं । मृत्यु के भय से वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें ।
यम-दीपदान पूजन विधि
यम दीप दान प्रदोष काल में अर्थात सूर्यास्त से डेढ़ घण्टे तक करना चाहिए।
इसके लिए गेहूं के आटे का एक बड़ा दीपक बना लें। गेहूं के आटे से बने दीपक में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रखती हैं।
तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक – दूसरे पर आड़ी, इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें।
अब इसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।
प्रदोष काल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। इसके पश्चात घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी लाई अथवा गेहूं से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है।
दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यम-तरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।
‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
साथ मे तेरह नग दीपक त्रयोदशी तिथि के नाम से भी जलायें।
आप सभी को ऋषि ध्वन्तरि के प्राकट्य दिवस की शुभकामनाये ,
आप सब का जीवन आयुर्वेद के साथ हो यही मेरी मंगल कामना है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
आप सभी सुखी रहें , सभी रोगमुक्त रहें,
सभी मंगलमय आयोजनों के साक्षी बनें
किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
इस धनतेरस पर आप सभी के उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाओं के साथ…