debt crisis : कर्ज संकट का साया

debt crisis :

debt crisis : अमेरिकी मुद्रा डॉलर के लगातार मजबूत होने से दुनिया के अनेक देशों की अर्थव्यवस्थाएं डगमगा गई है।

debt crisis : तकरीबन 60 फीसदी विकासशील देशों के सामने कर्ज संकट विकराल रूप रूप में खड़ा हो गया है। श्रीलंका के डिफॉल्ट करने के बाद अब नजर पाकिस्तान, ट्यूनिशिया, घाना, केन्या और एल सल्वाडोर पर है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि दुनिया के तकरीबन 60 फीसदी विकासशील देशों के सामने कर्ज संकट विकराल रूप रूप में खड़ा हो गया है। तमाम आर्थिक विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैँ।

debt crisis :  श्रीलंका पहले ही डिफॉल्ट कर चुका है। अब विशेषज्ञों की नजर पाकिस्तान, ट्यूनिशिया, घाना, केन्या और एल सल्वाडोर पर है। पाकिस्तान के सामने विदेशी मुद्रा का संकट लगातार गंभीर होता जा रहा है। ट्यूनिशिया के लिए अपनी बजट जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है। घाना और केन्या पर कर्ज का भारी बोझ है। एल सल्वाडोर के बॉन्ड मैच्यूरो होने वाले हैँ। वैसे मुसीबत में अर्जेंटीना भी है।

debt crisis : वह अभी तक 2018 में पैदा हुए मुद्रा संकट के असर से ही नहीं उबर पाया है। तो यह साफ है कि अमेरिकी मुद्रा डॉलर के लगातार मजबूत होने से दुनिया के अनेक देशों में मुसीबत बढ़ी है। दुनिया की लगभग तमाम मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का भाव असामान्य रूप से बढ़ा है। इसका अमेरिका के लोगों को भले फायदा हो रहा हो, लेकिन अनेक देशों की अर्थव्यवस्थाएं डगमगा गई हैँ।

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debt crisis :  वजह यह है कि दुनिया का आधे से ज्यादा कारोबार आज भी डॉलर में होता है। इसके अलावा ज्यादातर देशों अंतरराष्ट्रीय बाजार से डॉलर में कर्ज लेते हैँ। अब डॉलर महंगा होने से कर्ज के रूप में उन्हें ज्यादा रकम चुकानी पड़ रही है। उधर डॉलर की कमी के कारण उनके लिए आयात मुश्किल हो गया है। ज्यादातर विकासशील देशों पर विदेशों से डॉलर में लिए कर्ज का बोझ ज्यादा रहता है।

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debt crisis : उन देशों के लिए कर्ज और ब्याज को चुकाना अब ज्यादा मुश्किल हो गया है। उधर ऐसे देशों से पूंजी के पलायन बड़ी मात्रा में हुआ है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक अब डॉलर में पैसा लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैँ। इसलिए उन्होंने विकाशील अर्थव्यवस्था से अपना पैसा निकाला है। इससे विभिन्न देशों की मुद्राओं का भाव गिरा है। इसका परिणाम सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट के रूप में सामने आएगा। देश जरूरत के मुताबिक आयात नहीं कर पाएंगे। उसका असर देश के अंदर उत्पादन पर पड़ेगा। ऐसा अभी कई देशों में होता दिख रहा है।

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