वेद प्रताप वैदिक
Congress कांग्रेस: फिर चक्का जाम
Congress मल्लिकार्जुन खडग़े अब कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे, यह तो तय ही है। यदि अशोक गहलोत बन जाते तो कुछ कहा नहीं जा सकता था कि कांग्रेस का क्या होता? गहलोत को राजस्थान के कांग्रेसी विधायकों के प्रचंड समर्थन ने महानायक का रूप दे दिया था लेकिन गहलोत भी गजब के चतुर नेता हैं, जिन्होंने दिल्ली आकर सोनिया गांधी का गुस्सा ठंडा कर दिया। उन्हें अध्यक्ष की खाई में कूदने से तो मुक्ति मिली ही, उनका मुख्यमंत्री पद अभी तक तो बरकरार ही लग रहा है।
Congress अध्यक्ष बनने के बाद खडग़े की भी हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वे गहलोत पर हाथ डालें। गहलोत और कांग्रेस के कई असंतुष्ट नेता भी उम्मीदवारी का फार्म भरने वाले खडग़े के साथ-साथ पहुंच गए। याने समस्त संतुष्ट और असंतुष्ट नेताओं ने अपनी स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने में कोई संकोच नहीं किया। यह ठीक है कि शशि थरुर और त्रिपाठी ने भी अध्यक्ष के चुनाव का फार्म भरा है लेकिन सबको पता है कि इनकी हालत वही होगी जो, 2000 में जितेंद्रप्रसाद की हुई थी।
Congress उन्होंने सोनिया गांधी के विरुद्ध कांग्रेस-अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था। उन जैसा शशि थरुर का भी हाल होने वाला है। हालांकि उन्होंने पहले दिग्विजयसिंह, अशोक गहलोत और अब खडग़े के बारे में बहुत ही गरिमामय ढंग से बात की है। 22 साल बाद होने वाले इस चुनाव से क्या कांग्रेस के हालात कुछ बदलेंगे? क्या यह डूबता हुआ सूरज फिर ऊपर उठ पाएगा? यह जाम हुआ चक्का क्या फिर चल पाएगा? कुछ भी कहना कठिन है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी पर माँ-बेटा राज तो अब भी पहले की तरह जोर से चलता रहेगा।
Congress हालांकि खडग़े अनुभवी और सुसंयत नेता हैं और उन्हें कर्नाटक की विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा में रहने के अनेक अवसर मिले हैं लेकिन कर्नाटक के बाहर उन्हें कौन जानता है? आम जनता की बात तो अलग है, कांग्रेसी कार्यकर्त्ता भी उन्हें ठीक से नहीं जानते। यह ठीक है कि जगजीवन राम के बाद वे ही पहले दलित हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे।
Congress लेकिन नरेंद्र मोदी ने पहले रामनाथ कोविंद और अब द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर पहले ही नहले पर दहला मार रखा है। कांग्रेस का भाग्योदय अगर होता है तो वह नौकर-चाकरों के भरोसे नहीं हो सकता। उसके मालिकों को गर्व होना चाहिए कि उन्हें ऐसी बगावत नहीं देखनी पड़ रही है, जैसी इंदिरा गांधी ने देखी थी। मालिकों के इस दावे पर कौन भरोसा कर रहा है कि वे अध्यक्ष के इस चुनाव में निष्पक्ष हैं?
Congress माँ-बेटे को खुशी होनी चाहिए कि जिन वरिष्ठ नेताओं ने बगावत की बांग लगाई थी, वे भी उनके आगे अब दुम हिला रहे हैं। इस अध्यक्षीय चुनाव से कांग्रेस के पुनरोदय की जो आशा बनी थी, वह धूमिल हो चुकी है। जब तक कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी का वैकल्पिक नेता और नीति नहीं होगी, वह इसी तरह लडख़ड़ाती रहेगी और भारतीय लोकतंत्र और कांग्रेस का यह दुर्भाग्य होगा कि वह लडख़ड़ाते-लडख़ड़ाते कहीं धराशायी ही न हो जाए।