The election of the year 24 सन् 24 का चुनाव होगा कांटे का!

The election of the year 24

हरिशंकर व्यास

The election of the year 24 सन् 24 का चुनाव होगा कांटे का!

The election of the year 24 वक्त बहुत धीमे ही सही लेकिन बदलता हुआ है। तय मानें अगला चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। अपने आप वे हालात बन रहे हैं, विरोधी पार्टियों में वह हो रहा है, जिससे सन् 2024 का लोकसभा चुनाव एकतरफा होना संभव नहीं है?

The election of the year 24  पहली बात जो विरोधी पार्टियां, जो कांग्रेस अपने-अपने कारणों से बिना दिशा के थीं उन सभी को दिशा मिलती हुई है। लालू यादव वापिस राजद के अध्यक्ष हो गए हैं। अखिलेश यादव भी बिना पारिवारिक झंझटों की चर्चा के फिर से पार्टी अध्यक्ष बन गए हैं।

उधर कांग्रेस में जीवंतता लौट आई है। मल्लिकार्जुन खडग़े के अध्यक्ष बनने से कनार्टक और दक्षिण में निश्चित ही पार्टी में जान लौटेगी। विन्ध्य पार के महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के आगे एकनाथ शिंदे एंड पार्टी फेल होती हुई लग रही है। दशहरा के दिन मुंबई के शिवाजी पार्क की उद्धव रैली से यह और साफ हो जाएगा।

The election of the year 24  शरद पवार निश्चित ही कांग्रेस के साथ मिल कर शिवसेना संग महाराष्ट्र में ग्रैंड चुनावी एलायंस बनाएंगे। देवेंद्र फडनवीज-एकनाथ शिंदे कितना ही दम लगा ले इनकी जोड़ी लोकसभा चुनाव आते-आते दम तोड़ चुकी होगी। लोकसभा की 48 सीटों के महाराष्ट्र में भाजपा को पिछले चुनाव जितनी सीटे जीतना कतई आसान नहीं होगा।

The election of the year 24  मतलब यह कि विरोधी नेताओं-क्षत्रपों के जिन चेहरों से पहले तय था कि ये 2024 में नरेंद्र मोदी की आसान जीत बना देंगे वे सब अचानक मेहनत करते हुए, तेंवर दिखाते हुए और तैयारी व संकल्प करते नजर आ रहे है। नीतिश कुमार की धुरी पर बिहार, और पूर्वी उत्तरप्रदेश की वोट गणित बदलती हुई है।

The election of the year 24  बिहार-झारखंड के नीतिश-लालू यादव, हेमंत सोरेन जैसे चेहरे और उनके साथ छोटी पार्टियों, वामपंथी वोटों, ओबीसी- मुस्लिम- दलित-आदिवासी वोटों का घालमेल दोनों राज्यों की 54 सीटों पर भाजपा का एक-एक सीट पर मुकाबला बनवा देगा। दस साल के राज के बाद नरेंद्र मोदी अपने जादू, अपने जुमलों, अपने ढोल से चाहे जो शौर और भीड़ बनवाएं उस सबसे आगे लोगों के अनुभव और जमीनी जातीय समीकरण से 2014 और 2019 जैसे नतीजे नहीं आ सकते है।

सबसे बड़ी बात यह परिवर्तन है कि राहुल गांधी के कारण लोगों में जो मनोदशा बनी हुई थी वह 19 अक्टूबर के बाद तब बदलेगी जब मल्लिकार्जुन खडग़े फ्रंट में आ जाएंगे। उत्तर भारत के हिंदीभाषी लोगों के लिए खडगे का अधिक अर्थ नहीं है। मगर वे हिंदी भाषी भी है।

The election of the year 24  दक्षिण के अनुभवी नेताओं में एक है। उनके कारण कर्नाटक में यदि भाजपा पांच-आठ लोकसभा सीटे गंवा दे और अगला विधानसभा चुनाव कांग्रेस कायदे से लड ले तो मोदी-शाह का दक्षिण का महाअभियान पंचर होगा। खडगे लोगों के दिमाग में क्योंकि प्रधानमंत्री पद का चेहरा नहीं होंगे जैसे कि राहुल गांधी को अपने आप लोग मानते हुए थे और पूछते थे कि हे कौन प्रधानमंत्री लायक तो भाजपा का कैंपेन ज्यादा हिट नहीं होगा।
मतलब यह कि खडगे के अध्यक्ष बनने से विपक्ष और कांग्रेस को यह भी फायदा है कि राहुल गांधी को लेकर लोगों में बना मनोविज्ञान धीरे-धीरे खत्म होगा।

The election of the year 24  दूसरे, सभी विरोधी पार्टियों के नेताओं ( उत्तर-दक्षिण-पूर्व- पश्चिम) से आगे मल्लिकार्जुन खडगे तथा दिग्विजयसिंह ( जो संभव है अब राज्यसभा में नेता विपक्ष बने) और अशोक गहलोत की बातचीत से चुनावी तालमेल, साझा रणनीति का काम बेहतर हो। खडगे की भाजपा-संघ विरोधी खांटी सोच से उनको लेकर किसी भी जमात, वर्ग में यह शक नहीं होगा कि वे मोदी-शाह की खरीदफरोख्त की मंडी में वे बिक सकते है।

The election of the year 24  मतलब जैसे अरविंद केजरीवाल को लेकर शक है कि वे गुजरात, हिमाचल में भाजपा को जीताने की गुपचुप राजनीति कर रहे है, वैसा शक नहीं होगा। न वे पप्पू, लल्लू और गांधी परिवार की कठपुतली और न प्रधानमंत्री का चेहरा। मगर राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष के नाते, हिंदी- अंग्रेजी में बातचीत, स्टालिन से ले कर सीताराम यचूरी, लालू-नीतिश, कुमारस्वामी, मुस्लिम-आदिवासी नेताओं सबसे बात करने में समर्थ है। तभी संभव है कि सगंठन चुनाव के बाद की नई कांग्रेस विपक्ष को मोबलाइज करने की धुरी बने।

 

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