Chhattisgarh Film and Visual Art Society : छत्तीसगढ़ फ़िल्म एवं विज़ुअल आर्ट सोसाइटी की ओर से जनमंच पर उषा प्रियवंदा की कहानी “वापसी” की नाट्य प्रस्तुति

Chhattisgarh Film and Visual Art Society :

Chhattisgarh Film and Visual Art Society : बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले…नाटक वापसी में व्यक्ति के रिटायरमेंट के बाद दिखा दर्द, हबीब तनवीर और  हरिशंकर परसाई को किया गया याद…...

Chhattisgarh Film and Visual Art Society : रायपुर । सुप्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर की जंयती पर और हरिशंकर परसाई की याद में छत्तीसगढ़ फ़िल्म एंव विज़ुअल आर्ट सोसाइटी की ओर से जनमंच पर नाट्य मंचन किया गया। नाट्य और साहित्य जगत के पुरखों को  करते हुए सुप्रसिद्ध लेखिका उषा प्रियंवदा की कहानी वापसी का नाट्य का मंचन रचना मिश्रा के निर्देशन में हुआ। परसाई की कहानी “मैं और चूहा” का पाठ एशियन न्यूज के समूह संपादक राजेश लाहोटी ने की। वहीं “वैष्णव की फिसलन” का पाठ भरत सिंह परसाई की लघु कहानी “अश्लील पुस्तकें” कहानी का पाठ एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्रा ने की।  हबीब तनवीर के नाटक के अंश हेमंत यादव , मंगेश कुमार ने प्रस्तुत किया।

राजेश लाहोटी ने कहा कि हरिशंकर परसाई की कहानियों में एक है “चूहा और मैं”, परसाई जी ने जिस रोचक तरीके कहानी को लिखा है उसमें कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है एक प्रतिबिंब बनता चला जाता है। कहानी “चूहा और मैं” में भी कुछ ऐसा ही है इस कहानी में चूहे को पात्र बनाकर समाज को ये संदेश दिया कि जब चूहा अपने हक की लड़ाई लड़ सकता है तो फिर भी हम मनुष्य हैं। अपने हक की लड़ाई कब लड़ेंगे।
सुभाष मिश्रा ने कहा कि परसाई जी की कहानी वर्तमान में कहीं न कहीं चरितार्थ होता दिखता है। आज ओटीटी का जमाना है आज पहले जैसे स्थिति नहीं रही।

वापसी नाटक बताता है की औघोगिक और शहरीकरण ने समाज में बिखराव पैदा की है । बदलते परिवारिक मूल्यों को केन्द्र में रखकर बहुत पहले लिखी गई उषा प्रियवंदा की कहानी वापसी आज भी बहुत प्रासंगिक है । तकनीक के ज़रिए निर्मित वर्चुअल दुनिया में अब सबके अपने -अपने कोने , स्पेस हैं जहां से वास्तविक रिश्ते धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं ।

कहानी में दिखाया गया है कि रेल्वे की नौकरी सेवानिवृत्ति के बाद गजानन बाबू जब अपने बनाये घर में पत्नी बच्चों परिवार के रहने की इच्छा , सुनहरे सपने लेकर पहुँचते हैं तो क़दम क़दम पर उनका किस तरह से तिरस्कार होता है , उनके सपने चकानाचूर होते हैं और अंत में उन्हें बड़ी बेआबरू के साथ एक दूसरी नौकरी के लिए अपने ही घर से वापसी करनी पड़ती है ।

 

परसाई की जन्मशती

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार, लेखक, प्रगतिशील चिंतक हरिशंकर परसाई  होशंगाबाद जिले के जमानी गांव में 22 अगस्त 1924 को जन्मे हरिशंकर परसाई अपने बारे में कहते थे कि मैं लेखक छोटा हूं पर संकट बड़ा हूं। हां वे सही कहते थे। परसाई अपने समय के सच , विसगतियों और प्रवृत्तियों को समझकर उन पर प्रहार करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि यदि कबीर आज पैदा होते तो परसाई होते और परसाई उस समय पैदा होते तो कबीर होते। कबीर, तुलसी, गालिब, प्रेमचंद के साथ-साथ वैज्ञानिक चेतना से लैस लेखकों, चितंकों, विचारकों और राजनैतिक व्यक्तित्व से प्रभावित परसाई ने ताजिंदगी जबलपुर में रहते हुए लोकशिक्षण किया।

हबीब साहब की याद

हमारे अपने हबीब साहब यानी हबीब तनवीर की आज जंयती है । रायपुर में  1 सितंबर 1923 को जन्मे हबीब साहब ने छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति और साहित्य को जब अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई जब यह एक स्वतंत्र राज्य में नहीं पहचाना जाता था ।भारत के इस मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता  के योगदान को हम आज याद करेंगे ।नया थियेटर के ज़रिए जनसरोकार से जुड़े नाटकों का लेखन , मंचन करने वाले हबीब तनवीर के चर्चित नाटकों में आगरा बाजार (1954) शतरंज के मोहरे ,लाला शोहरत राय

गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद,मिट्टी की गाड़ी
मिर्जा शोहरत बेग ,लाला शोहरत राय ,हिरमा की अमर कहानी
चरणदास चोर, बहादुर कलारिन ,देख रहे हैं नैन ,मुद्राराक्षस
कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना  ,सड़क

Chhattisgarh Film and Visual Art Society : शाजापुर की शांतिबाई, जिन लाहौर नही वेख्या वो जन्मा ही नही , पोंगा पंडित , गर्म हवाएँ , विसर्जन आदि शमिल है ।
उन्होने रंगमंच के साथ-साथ फ़िल्मों में अभिनय के ज़रिए एक कलाकार के रूप में अपना योगदान दिया । उनके द्वारा अभिनीत फ़िल्मों में राही – 1952 ,फ़ुट पाथ – 1953 ,चरणदास चोर – 1975 ,Staying On – 1980 ,गाँधी – 1982 , कब तक पुकारू – 1985 ,Man-Eaters of India – 1986

ये वो मंज़िल तो नहीं – 1986 ,हीरो हीरालाल – 1988
प्रहार – 1991 ,द बर्निंग सीजन – 1993 ,द राइज़िंग: मंगल पांडे – 2005 ,ब्लैक & व्हाइट – 2008 शमिल हैं ।

 

वापसी नाटक के पात्र

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पिंकूं  वर्मा -बाबूजी
रितू सेलट – अम्मा जी
खेवना पटेल -बहु
सूरज तिवारी -नरेन्द्र , अमर
आर्ची जैन -बंसती (बेटी )
मंगेश कुमार – गनेशी ( नौकर )
हेमंत यादव ( रामा , नौकर )
उमेश उपाध्याय – पड़ोसी ,वादक, गायन
मेहर पटेल ( पड़ोसी )
संगीत – सूर्या तिवारी
लाईट-महेन्द्र सिंह राजपूत
बेकस्टेज – सुमित भारती
नाट्य निर्देशिका – श्रीमती रचना मिश्रा )