Chhattisgarh Film and Visual Art Society : प्रेमचंद की उपन्यास और कहानियों में झलकता है स्त्री विमर्श, देखिये VIDEO

Chhattisgarh Film and Visual Art Society :

Chhattisgarh Film and Visual Art Society : प्रेमचंद केवल न केवल समस्या गिनाते बल्कि उसका समाधान भी बताते हैं

प्रेमचंद की जयंती पर “प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री विमर्श” परिचर्चा का आयोजन

 

 

Chhattisgarh Film and Visual Art Society : रायपुर। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी द्वारा कालजयी लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर सोमवार को उन्हें प्रेमांजलि देते हुए एक साहित्यिक परिचर्चा आयोजित की गई जिसका विषय “प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री विमर्श” रहा। वहीं रचना मिश्रा द्वारा निर्देशित  ‘बूढ़ी काकी’ नाटक और कफ़न कहानी का नाट्य पाठ किया गया।

परिचर्चा में प्रमुख चार वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इसमें प्रसिद्ध साहित्यकार और रायपुर संभाग के कमिश्नर डॉ संजय अलंग, महिला साहित्यकार स्नेहलता पाठक, साहित्यकार एव रंगकर्मी सुमेधा अग्रश्री, छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी के अध्यक्ष सुभाष मिश्रा शामिल हुए।

बता दें की वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डा. संजय अलंग अपनी सादगी और सौम्य शख्सियत के लिए पहचाने जाते हैं प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ साथ वे लेखक और कवि भी हैं.. उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशन हो चुकी है !

इस अवसर पर बात रखते हुए डॉ संजय अलंग ने कहा कि जब हम विमर्श की बात करते हैं तो उसमें परिचर्चा शब्द आ जाती है उसमें विकास का दौर सामने आ जाता है इससे संबंधित अधिकार सामने आ जाता है ! इसके साथ ही जो सबसे महत्वपूर्ण बात है तथ्य जो है वह जागरूकता और सशक्तिकरण इन्ही दोनों के इर्द गिर्द सभी चीजें घूमने लगती है। उन्होंने आगे कहा कि प्रेमचंद की कहानियों ने अगर स्त्री विमर्श की बात करें तो उन्होंने महिलाओं को बहुत ही बुलंद तरीके से महिलाओं की सामाजिक स्थिति को रखा।

उनके अलग-अलग कहानी और उपन्यास में स्त्रियों को अलग तरीके से प्रस्तुत करने का कोशिश किया है प्रेमचंद कहीं कहानियों में महिलाओं को दुर्बल तो कहीं उन्होंने मनुष्य को प्रेम और संभल के प्रतीक दिखाया है उन्होंने कहा की प्रेमचंद एक ऐसे कथा लेखक थे या उपन्यासकार थे जिन्होंने न केवल समस्या को दर्शाते थे बल्कि अपनी कहानी और उपन्यास के माध्यम से उसका समाधान भी बता देते थे। वह अपनी कहानी से इस कदर किसी समस्या का समाधान बता देते जिससे लोगों को धीरे से पता चलता है कि यह तो समस्या का समाधान है।

सुभाष मिश्रा ने कहा कि इस विषय को रखने का यह आशय था कि इसी बहाने प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियों पर बात हो सके। प्रेमचंद की कहानियों में स्त्री विमर्श को देखा जाए तो प्रेमचंद की कहानी और उपन्यास में स्त्री को अलग-अलग तरीके से दिखाया गया है प्रेमचंद्र एक अलग तरीके से सोच रखते थे और एक नए संसार की कल्पना कर रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वराज मिलने के बाद भी अगर अभी वर्तमान में हक मिल पाया है तो जिस प्रकार प्रेमचंद अपनी कहानी और आर्टिकल में जिस तरह के स्त्री की कल्पना करते थे वह शायद अभी तक नहीं बन पाई।

स्नेह लता पाठक ने कहा कि स्त्री विमर्श का मतलब है कि महिलाएं अपनी संघर्ष को जारी रखते हुए आगे बढ़ रही हैं स्त्री जिस प्रकार से इस समाज में अपनी कीर्तिमान हासिल कर रहे हैं इसी से स्त्री विमर्श उपज रहा है स्त्री केवल घर ही नहीं चलाती वह पुरुषों को रास्ता भी दिखाने का काम कर रही है इस दौर में स्त्रियों को आगे आना होगा और अपने हक और आवाज को बुलंद करना होगा सही मायने में यही स्त्री विमर्श है।

 

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वहीं सुमेधा अग्रश्री ने कहा कि प्रेमचंद स्त्री के अधिकार स्त्री के शिक्षा या फिर स्त्री को शक्तिशाली दिखाने के लिए अपनी कहानी या फिर अपने उपन्यास में जबरजस्ती ठूसा नहीं है या लोगों के सामने परोसने का काम किया है बल्कि उन्होंने बहुत ही सरलता और सहजता के साथ रखने का कार्य किया है ताकि लोगों को बहुत सलीके से यह पता चले कि स्त्रियों को भी सम्मान देने की जरूरत है। उन्होंने कई कहानी का उदाहरण देते हुए बताया कि हर व्यक्ति अपने माहौल परिवेश के अनुसार चीजों को रिजेक्ट करता है वह कैसा व्यवहार करेगा उसके शिक्षा और परवरिश या व्यवहार पर निर्भर करेगा यही रिएक्शन ही प्रेमचंद्र के स्त्री पात्रों का स्त्री विमर्श है। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यास में स्त्री को कभी सहमी तो कभी उग्र होते दिखाया है इससे समाज में या मैसेज देने का प्रयास किया कि स्त्रियां केवल दुख सहने के लिए नहीं है ये अपनी दुख और सितम पर रिएक्ट भी करती हैं।

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