Charama Latest News : सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने को लेकर भारत बंद का आह्वान किया गया था, चारामा विकासखंड मे दिखा बंद का पूरा असर 

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Charama Latest News :  सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने को लेकर भारत बंद का आह्वान किया गया था, चारामा विकासखंड मे दिखा बंद का पूरा असर 

 

Charama Latest News :  चारामा ! चारामा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे के अंदर कोटा व कोटे के कोटे के अंदर क्रीमी लेयर लागू करने के फैसले को पलटने संविधान संशोधन लाने को लेकर  समस्त अनुसूचित जाति एवम् जनजाति समाज के द्वारा 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया गया था, बंद का पूरा असर चारामा विकासखंड मे दिखा। जहाँ नगर सही हर गांव की दुकाने निजी संस्थाएं और स्कूल पूर्णतः बंद रहे।वही शासकीय स्कूलों,संस्थाएं और कार्यालयों में कर्मचारियों के द्वारा बंद की रैली में शामिल होने के कारण स्कूल और कार्यालय भी सुने रहे।

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रैली के लिए सुबह 10 बजे से अनुसूचित जाति एवम् जनजाति समाज के लोग आदिवासी धाम जैसा कर्रा में एकत्रित हुए, आदिवासी समाज के द्वारा रैली के पूर्व भगवान बुढ़ा देव के समक्ष अर्जी विनती की। अर्जी विनती के बाद हाथो में तक्ति और बैनर लेकर सभी समाज के लोग धाम से हाईवे से रैली शुरू की लगभग 10000 से अधिक लोगों की भीड़ पुरे हाईवे के दोनों और समा नहीं पर रही थी,रैली धाम से कोरर चौक से बस स्टैंड से अंवारी चौक से पुनः बस स्टैंड से सदर बाजार होते हुए भगवान बिरसा मुंडा चौक से कोरर चौक में समाप्त हुई,पूरी रैली के दौरान सभी सड़के जाम रही सड़को. पर समाज के लोग सभा की समाप्ति तक बैठे रहे।

जिसके बाद सभा का आयोजन हुआ, जिसमे मुख्य वक्ता क्षेत्रीय विधायक सावित्री मनोज मंडावी सहित विजय ठाकुर संरक्षक गोंडवाना समाज, जीवन ठाकुर, रेन सिंग कांगे अध्यन गोंडवाना समाज, अश्वनी कांगे, श्याम सिंग तारम,घनश्याम जुर्री, बंटी ठाकुर, दिन बन्धु वल्मीकी एस सी समाज अध्यक्ष, संतोष डहरे प्रवक्ता प्रगतीशील सतनामी समाज, चंद्र शेखर केसरी अध्यक्ष प्रगतिशील समाज युवा, के एल मरकाम, ललित गोटी एवं अन्य कई वक्ताओ के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सम्बोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 अगस्त 2024 को दिए गए फैसले अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कोटे के अंदर कोटा और कोट के अंदर क्रीमी लेयर निर्धारित करने का अधिकार राज्यों को देने निर्णय पारित किया है !

इस निर्णय से देश भर के अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्ग प्रभावित हो रहे हैं । वास्तव में अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्ग के भीतर वर्गीकरण करने का अधिकार राज्यों को नहीं है, क्योंकि आर्टिकल 341 (2) एवं 342 (2) यह अधिकार देश के सांसद को देता है और यही बात ई वी चिनैया मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 2005 में कहा था।पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में 1 अगस्त 2024 के निर्णय में 7 जजों में से एक जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी जी ने 6 जजों के फैसले से असहमति जताते हुए अपना निर्णय उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर के खिलाफ दी है।जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने 9 जजों की संवैधानिक पीठ इंदिरा साहनी मामले 1992 में जस्टिस जीवन रेड्डी के कथन को उद्धृत करते हुए निर्णय लिखी है कि क्रीमी लेयर टेस्ट केवल पिछड़े वर्ग तक सीमित है,अनुसूचित जातियों एवम् जनजातियों के मामले में इसकी कोई प्रासंगिकता नही है। पिछड़ेपन को लेकर कहा कि सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का परीक्षण या आवश्यकता अनुसूचित जातियों एवम जनजातियों पर लागू नही की जा सकती।

एससी एसटी वर्ग के भीतर वर्गीकरण का यह अधिकार राज्यों को देने से एक वर्ग के भीतर ही नया संघर्ष से शुरू हो जाएगा एवं पुनः NFS(NOT FOUND SUITABLE) का दौर शुरू हो जाएगा। भविष्य में बगैर भरी रिक्त सीट सामान्य कोटे में अघोषित रूप से तब्दील हो जायेगी। एससी एसटी के भीतर ओबीसी की तरह क्रीमी लेयर लागू होने से यह वर्ग दो भागों में बंट जाएगा। मुख्यधारा की ओर थोड़ा आगे बढ़ रहे है, वे क्रिमि लेयर के दायरे में आ जाएंगे। यह वर्ग प्रतियोगिता में शामिल होने के पहले ही अघोषित रूप से बाहर हो जायेगा।

 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश के 100 सांसदों ने देश के प्रधानमंत्री से मुलाकात की। अगले दिन अखबार में आया कि प्रधानमंत्री एससी,एसटी के भीतर क्रीमी लेयर लागू नही करेंगे,लेकिन उप वर्गीकरण पर चुप्पी साधे है। यह केवल कोरा आश्वाशन है। देशभर के एससी,एसटी वर्ग कोरे आश्वाशन में विश्वास नही रखते। यदि भारत सरकार वास्तव में एससी,एसटी हितैषी है तो तत्काल संसद सत्र बुलाकर पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले दिनांक 1 अगस्त 2024 के आए फैसले को पलटते हुए संविधान संशोधन लाए।

 

एससी,एसटी वर्ग जो मुख्यधारा में अब तक नही जुड़ पाए है,उनके लिए राज्य के नीति निदेशक तत्व अनुच्छेद 38(2) में आर्थिक असमानताओं को दूर करने विशेष प्रावधान राज्यो को करने कहा है,इसी के परिपालन में एससी,एसटी के लिए 1980 से पृथक SCP,TSP बजट का प्रावधान किया गया है,लेकिन यह बजट केवल कागजों तक सीमित हो रही है,1980 से 2024 तक लगभग 44 साल में इस बजट प्रावधान से अब तक कितने एससी, एसटी मुख्यधारा में जुड़े, जो नही जुड़ पाए है वो आखिर क्यों नही जुड़ पाए।

इसका सोशल आडिट सरकारें क्यों नही करती। जबकि नीति आयोग के दिशा निर्देश के अनुसार एससी, एसटी वर्ग के जनसंख्या के अनुपात में इन वर्गो के आर्थिक उत्थान के लिए जनसंख्या के अनुपात में बजट प्रावधानित कर लक्षित उद्देश्यों में खर्च किया जाए। लेकिन केंद्र और राज्य की सरकार इस बजट का महज 1 से 2 % राशि ही लक्षित उद्देश्यों में खर्च पाती है, बाकि राजनीतिक पार्टियों की चुनावी गारंटी पूरा करने में खर्च होती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को स्वमेव संज्ञान लेनी चाहिए।

लोकसभा सत्र 2023 में पूछे गए सवाल में डॉक्टर जितेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री ने सदन में जानकारी देते हुए बताया कि भारत सरकार के 91 एडिशनल सेक्रेटरी में से एससी,एसटी वर्ग के 10 और ओबीसी वर्ग के 4 हैं,बाकी सब जनरल केटेगरी से है। वही 245 जॉइंट सेक्रेटरी में से एससी एसटी के 26 और ओबीसी के 29 अफसर है। ये स्थिति केंद्रीय सचिवालय की है।

देश की उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट की बैंचों में अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व के लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा सत्र के दौरान ही बताया कि 2018 से जुलाई 2023 तक नियुक्त 604 हाई कोर्ट जजों में से 458 जज सामान्य श्रेणी के हैं,अनुसूचित जाति के 18,अनुसूचित जनजाति के 9 एवं पिछड़े वर्ग के 72 है। अर्थात भारत की जनसंख्या में लगभग 17% प्रतिनिधित्व करने वाली अनुसूचित जाति वर्ग की उच्च न्यायालयो के बैंचों में महज 3%प्रतिनिधित्व है,वही देश की जनसंख्या में 8% भागीदारी करने वाली जनजाति वर्ग की महज 1% प्रतिशत प्रतिनिधित्व है।

जबकि 1999 में गठित करिया मुंडा की रिपोर्ट में उच्च एवम उच्चतम न्यायालयो को अनुच्छेद 16(4) सहपठित अनुच्छेद 335 के तहत जजों की नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करने अनुशंसा किया है,रिपोर्ट में कहा है कि 13 जजों की बेंच केशवानंद भारती मामले में माना कि न्यायलय भी राज्यों की श्रेणी में आते है,अतः न्यायालयो में न्यायधीशो की नियुक्तियों में अनुसूचित जाति एवम जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए।यह रिपोर्ट सन 2000 में संसद में प्रस्तुत की गई,लेकिन अब तक लोकसभा में इस पर चर्चा हेतु नही लाया गया।

यह बात स्पष्ट दर्शाता है कि सरकारें एसटी,एससी वर्गो को उचित प्रतिनिधित्व देने के नाम पर अब तक उदासीनता बरती है,देश में केवल महज कागजो में खानापूर्ति चल रही है।

संविधान लागू होने के 74 वर्षो बाद क्या हमारा प्रतिनिधत्व देश के सभी संस्थानों एवम संशाधनो में पूरा हो पाया,इसकी रिपोर्ट सरकारों के पास है,यदि है तो रिपोर्ट सार्वजनिक करें।

वास्तव में अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्ग को प्रतिनिधित्व का अधिकार सदियों से वंचित रहने एवम् पिछड़ेपन के कारण मिली है,आर्थिक आधार पर नही। सरकारें संविधान सभा में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की वक्तव्य देख सकती है।

दूसरी बात संविधान के अनुच्छेद 341 एवम् 342 के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्ग अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते है,जिसके अंतर्गत एससी,एसटी वर्गो के सभी शासकीय सेवाओं में दावे का प्रावधान है,लेकिन न्यायालय एवम सरकारें इन वर्गो को अनुच्छेद 16(4) के तहत ही शासित समझती है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून है, इसे केवल संविधान संशोधन से ही बदला जा सकता है,कोरे आश्वासन से नहीं।सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अमल 1 सितंबर से शुरू हो सकता है।कई राज्य पहले से ही वर्गीकरण करने को तैयार बैठी है।आंध्र प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र,कर्नाटक बिहार,राजस्थान, तमिलनाडु,तेलंगाना,2004 की गठबंधन केंद्रीय सरकार इत्यादि ने पहले उप वर्गीकरण करने कोशिश की थी, लेकिन ई वी चिनैया निर्णय ने इनके मनसुबो पर पानी फेर दिया।

 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त के फैसले से ई बी चिनैया निर्णय को 7 जजों की बेंच ने पलट दिया।सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 6,7,8 फरवरी 2024 को लगातार 3 दिनों तक चली सुनवाई में भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल एवम विभिन्न राज्यों की ओर से शामिल अधिवक्ताओं ने उप वर्गीकरण का समर्थन किया है।इससे साफ मंशा जाहिर होती है कि केंद्रीय एवम् राज्यो की सरकारें अनुसूचित जाति एवम जनजाति वर्गो में फुट डालना चाहती है और संविधान में मिले आरक्षण को खत्म करना चाहती है।

अतएव इन्ही सब मुद्दो को लेकर देशभर के अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग 21 अगस्त भारत बंद का आह्वान किया गया, जो पूर्ण सफल रहा।

वही समाज की और से 12 बिन्दुओ की मांग जिसमे पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में आए निर्णय दिनांक 1 अगस्त 2024 के फैसले को पलटते हुए केंद्र सरकार तत्काल संविधान संशोधन लाए,

अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण मामले को अघोषित रूप से निष्प्रभावी करने वाली सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज बनाम भारत संघ निर्णय 2006, जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता निर्णय 2018 एवं जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वितीय निर्णय 2022 में आए फैसले एससी एसटी वर्ग के क्वांटिफिएबल डाटा एकत्र करने की पेचीदगियों को खत्म करने हेतु संविधान संशोधन लाया जाए,क्योंकि एससी,एसटी अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते है,जिसके अंतर्गत प्रत्येक शासकीय सेवा के पदों में एससी,एसटी के दावे का प्रावधान है।

 

एम नागराज निर्णय 2006 के बाद एससी,एसटी के दावे का लगातार हनन केंद्र और राज्य की सरकारें कर रही है,अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों को प्रतिनिधित्व का अधिकार एवं सुविधाएं उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन के कारण मिली है,ना की आर्थिक । इसके बावजूद एससी,एसटी वर्ग के विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप के लिए आय के प्रमाण की जरूरत पड़ती है ।केंद्र सरकार द्वारा सन 2011 में एससी, एसटी वर्ग,ओबीसी वर्ग के लिए छात्रवृत्ति हेतु ढाई लाख आय सीमा में रखी गई है जिसका संशोधन अब तक नहीं किया गया है, इसके कारण अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्ग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बच्चों को भी छात्रवृत्ति का लाभ नहीं मिल पा रहा हैं, अतः इस मामले पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता को खत्म करें।

सन 2000 में लोकसभा में प्रस्तुत करिया मुंडा की रिपोर्ट न्यायपालिका में अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए जजों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी अनुशंसा को लागू करें।

ओबीसी वर्गों में क्रिमिनल का प्रावधान बंद करने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए।

नीति आयोग के निर्देशानुसार अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए आवंटित पृथक बजट अनुसूचित जाति कंपोनेंट प्लान एवं ट्राइबल सब प्लान की राशि का 100% लक्षित उद्देश्यों में खर्च करने हेतु कानून बनाया जाए एवं जो भी जिम्मेदार अधिकारी इस कानून को लागू करने में कोताही बरते, उनके ऊपर दंड प्रावधान करने संबधी कानूनी प्रावधान किया जाए।

देश भर के अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में लागू पांचवी अनुसूची अंतर्गत पेसा कानून के दिशा निर्देशों का समुचित पालन किया जाए एवं इस निर्णय के परिपालन में कोताही बरतने वाले अधिकारियों के ऊपर दंड का प्रावधान किया जाए।

. 9वी अनुसूची को कानूनी समीक्षा के दायरे से बाहर रखें जाने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए।
सन 2021 से लंबित जातिगत जनगणना अविलंब किया जाए।

विशेष वर्गों को बैक डोर से एंट्री देने वाली लैटरल एंट्री केंद्र सरकार तत्काल खत्म करें एवं सरकारी संस्थाओं को बेचना बंद करे। साथ ही निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्गो की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण का प्रावधान करने संविधान संशोधन लाए।
संविधान संशोधन अधिनियम 1976, के 42 वें संशोधन के अनुसार जजों की भर्ती के लिए ऑल इंडिया जुडिशरी सर्विस का गठन किया जाना चाहिए। साथ ही 170 ख के मामले

1. तोवेन्द्र कुमार पिता रघुनाथ सिंह जाति गोड़ ग्राम खैरवाही विरूद्ध नजीम खान 170 ख के तहत् जमीन वापस दिलाया जाए।

2. ईश्वर दास पिता रामभाऊ जाति बैरागी ग्राम रतेसरा का जमीन वापस दिलाने बाबत् ।

3. दुजेसिंग / मगला गोड़ ग्राम खरथा का गलत तरीके से जमीन हस्तांतरण किया गया, जिसकी जाँच कर कार्यवाही की जाये, की. मांगो का ज्ञापन

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