Big news- दुनिया को अलविदा कह गए भारत के ‘Tiger Man’

कैंसर से पीड़ित थे

भारत में बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व लेखक Valmik Thapar का निधन

जयराम रमेश बोले – ‘बहुत बड़ा नुकसान हुआ..’

नई दिल्ली। 

पिछले पाँच दशक से भारत में बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाले प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व लेखक वाल्मीकि थापर (Valmik Thapar) का शनिवार, 31 मई की सुबह 73 वर्ष की आयु मे निधन हो गया। उन्होंने नई दिल्ली के कौटिल्य मार्ग स्थित उनके आवास पर अंतिम सांस ली। वह कैंसर से पीड़ित थे। उन्हें ‘टाइगर मैन’ के नाम से जाना जाता था।

उन्होंने अपने पूरे जीवन में खासकर रणथंभौर के बाघों और जंगलों की रक्षा के लिए काम किया। वाल्मीक थापर ने 1988 में रणथंभौर फाउंडेशन बनाई, जो एक गैर-सरकारी संस्था है। यह संस्था स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बाघों और उनके जंगलों की सुरक्षा करती थी। वे शिकार करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने और बाघों के रहने की जगहों को बचाने के लिए लगातार आवाज उठाते रहे हैं।

रणथंभौर से शुरू किया संरक्षण का सफर

Valmik Thapar के संरक्षण का सफर रणथंभौर से शुरू वाल्मीकि थापर 25 से अधिक किताबें लिखीं जो वन्यजीव, पर्यावरण और संरक्षण के मुद्दों पर आधारित हैं। इसके अलावा, उन्होंने कई प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण और प्रस्तुति की। 1997 में बीबीसी पर प्रसारित हुई उनकी डॉक्यूमेंट्री “Land of the Tiger” ने उन्हें दुनिया भर में ख्याति दिलाई।

थापर का संरक्षण के क्षेत्र में प्रवेश वर्ष 1976 में हुआ, जब उनकी मुलाकात ‘फतेह सिंह राठौड़’ से हुई, जो उस समय राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व के निदेशक थे। दोनों ने मिलकर बाघों की रक्षा के लिए एक मजबूत साझेदारी बनाई, जिसने भारत की संरक्षण नीति को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।

उनकी यह साझेदारी न केवल रणथंभौर तक सीमित रही, बल्कि पूरे देश में ‘टाइगर वॉच’ जैसी पहलों के माध्यम से फैली। यह एक गैर-लाभकारी संस्था है, जिसे राठौड़ ने सवाई माधोपुर में स्थापित किया था और थापर ने इसे आगे बढ़ाया।

सरकार में काम किया और बाघ संरक्षण के लिए आवाज उठाई

वाल्मीक थापर ने सरकार के 150 से ज्यादा पैनलों में काम किया और 30 से अधिक किताबें वन्यजीवों पर लिखीं। वे 2005 में यूपीए सरकार की टाइगर टास्क फोर्स के सदस्य भी थे। यह फोर्स उस वक्त बनी थी जब सारिस्का टाइगर रिजर्व से अचानक बाघ गायब हो गए थे। फोर्स ने बाघों और इंसानों के साथ मिलकर रहने की बात कही, लेकिन वाल्मीक थापर इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि बाघों को लंबे समय तक बचाने के लिए बड़ी जमीन सिर्फ वन्यजीवों के लिए सुरक्षित रखनी होगी। वाल्मीक थापर को उनके गुरु फतेह सिंह राठौर से प्रेरणा मिली, जो भारत के जाने-माने संरक्षणकर्ता थे।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने वाल्मीक थापर के निधन पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि थापर के जाने से बाघ और जंगल बचाने के काम में बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। जयराम रमेश ने कहा कि आज रणथंभौर जो है, वह वाल्मीक थापर की मेहनत और लगन का ही नतीजा है। बता दें कि थापर का जन्म 1952 में मुंबई में हुआ था। उनके माता-पिता रोमेश और राज थापर प्रसिद्ध पत्रकार थे और ‘सेमिनार’ नामक राजनीतिक पत्रिका के सह-संस्थापक भी थे। थापर अपने पीछे पत्नी संजना कपूर और बेटे हमीर थापर को छोड़ गए हैं।

भारत के बाघों को दुनिया के सामने पहचान दिलाई

वाल्मीक थापर ने भारत के बाघों को दुनिया के सामने पहचान दिलाने में बहुत बड़ा काम किया। उन्होंने कई वन्यजीव (wildlife) डॉक्यूमेंट्री बनाने में मदद की और BBC के लिए कई फिल्में पेश कीं। साल 2024 में उन्होंने ‘माय टाइगर फैमिली’ नाम की डॉक्यूमेंट्री में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने 50 सालों तक रणथंभौर के जंगली बाघों का अध्ययन किया। वन्यजीव विशेषज्ञ नेहा सिन्हा ने वाल्मीक थापर को ‘भारतीय बाघों की अंतरराष्ट्रीय आवाज’ बताया और उनकी किताबें पढ़ने की सलाह दी। बाघ संरक्षणकर्ता निर्मल घोष ने उन्हें बाघों की देखभाल में एक महान नेता और दुनिया में बाघों के लिए एक प्रतिनिधि के रूप में याद किया।