मुंबई: 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ यूएपीए लागू करने या साजिश साबित करने में विफल रहा।
फैसले के प्रमुख बिंदु:
- साध्वी प्रज्ञा की बाइक पर सवाल: अदालत ने कहा कि विस्फोट स्थल पर मिली मोटरसाइकिल का साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से संबंध साबित नहीं हुआ। चेसिस और इंजन नंबर संदेहास्पद थे।
- RDX और बम असेंबली के सबूत नहीं: जज ने कहा कि न तो आरोपियों के घर से RDX मिला, न ही यह साबित हो सका कि उन्होंने बम बनाया।
- मेडिकल रिपोर्ट में हेराफेरी: कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में छेड़छाड़ की गई थी।
- फायरिंग और साजिश के प्रमाण नहीं: घटनास्थल से कोई गोलियों के खोल, फिंगरप्रिंट या DNA सैंपल नहीं मिले। फरीदाबाद-भोपाल की कथित साजिशकर्ता बैठकों का भी कोई सबूत नहीं था।
लंबी कानूनी लड़ाई
19 अप्रैल को सुनवाई पूरी होने के बाद, अदालत ने 1 लाख से अधिक पन्नों के दस्तावेजों की जांच के लिए समय मांगा था। आरोपियों को फैसले के दिन कोर्ट में हाजिर रहने का आदेश दिया गया था।
कौन थे आरोपी?
इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय समेत सात लोगों पर यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराएं लगाई गई थीं।
क्या हुआ था 2008 में?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक घायल हुए थे। शुरुआत में एटीएस ने जांच की, लेकिन 2011 में एनआईए को केस सौंपा गया। 2016 में एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा समेत कई आरोपियों के खिलाफ सबूतों की कमी बताते हुए चार्जशीट दायर की थी।
17 साल बाद आए इस फैसले ने एक लंबे कानूनी संघर्ष पर विराम लगा दिया है।