पराली पॉल्यूशन का नया सॉल्यूशन
राजकुमार मल
भाटापारा। हार्वेस्टर में सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम मशीन को लगाने से फसल कटाई उपरांत खेतों मे पड़े फसल अवशेष याने पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकेगा।
शीघ्र पकने वाली धान की प्रजातियां परिपक्वता अवधि में पहुंचने लगीं हैं। अब खेतों से पानी के निकाले जाने की तैयारी है, याने चालू पखवाड़े के बाद से खेतों में कटाई के लिए हार्वेस्टर मशीनें चलने लगेगीं और पराली याने फसल अवशेष छोड़ती चली जाएंगी। इसके साथ रबी फसल की बोनी के लिए किसान, यह फसल अवशेष जलाने लगेंगे। प्रदूषण के इस दौर पर नियंत्रण के लिए हार्वेस्टर में स्ट्रा मशीन का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
ऐसे काम करेगी सुपर स्ट्रॉ मशीन
कम्बाईन हार्वेस्टर में लगी हुई सुपर स्ट्रॉ मशीन फसल अवशेष को छोटे टुकड़ों में काटती है साथ ही खेतों में बिखेरने का काम भी करती है। बारीक फसल अवशेष आसानी से मिट्टी में मिल जाते है और खाद के रूप मे परिवर्तित हो जाते है। पराली का बारीक कटे होने से खेतों की जोताई मे कोई समस्या नही होती है। इसलिए इसे जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बाद की प्रक्रिया में गेहूं की बोनी हैप्पी सीडर या जीरो टिल सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल के माध्यम से की जा सकती है।
इन-सीटू प्रबंधन, नया विकल्प
पराली प्रबंधन के लिए किसान इन-सीटू विधि को अपना सकते है। इस विधि के तहत फसल अवशेष को सुपर स्ट्रा मेनेजमेंट सिस्टम या स्ट्रॉ चॉपर की मदद से बारीक कणों में काटा जाता है। इन कणों को फैलाकर इसे ट्राईकोडर्म या डीकम्पोजर की मदद से खाद मे परिवर्तित किया जा सकता हैं। फैलाने के लिए रोटावेटर या मल्चर या एम बी प्लाऊ का उपयोग कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में यह विशेष प्राकृतिक खाद के स्वरूप में आ जाते हैं।
एक्स-सीटू प्रबंधन, दूसरा विकल्प
एक्स-सीटू विधि के तहत फसल अवशेष को खेत के बाहर ना लें जाकर, एक ढेर का स्वरूप देना होगा। इसमें जैविक कल्चर का मिश्रण करना होगा। मानक मात्रा में नमी देते हुए तय समय पर मशीन की मदद से घूमाना होगा। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद यह अवशेष, प्राकृतिक जैविक खाद के रूप में परिवर्तित हो जायेगा। इस विधि से बनाई गई जैविक खाद को उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मददगार माना गया है।
इसलिए गाईड लाईन
धान की कटाई के बाद नई फसल की बोनी के लिए 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक का समय सही माना गया है। साथ ही आगे की फसल के लिए खेतों का प्रबंधन भी करना है। इसलिए किसान, खेत में छोड़ा गया अवशेष जला देते हैं। यह बेहतर विकल्प, इसलिए नहीं है क्योंकि जलाए गए अवशेष वायु प्रदूषण को जन्म देता ही हैं, जो लंबे समय तक वायुमंडल में बने रहते हैं। साथ ही खेत के अंदर रहने वाले सभी सुक्ष्म जीव भी तापक्रम बढने से समाप्त हो जाते है। जिसके कारण जीवाशम पदार्थ की मात्रा और मिट्टी की उत्पादकता कम हो जाती है साथ ही मिट्टी की संरचना मे भी प्रभाव पड़ता है और मित्र कीट की संख्या कम होने से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नही हो पाता। जिस कारण हमें मजबूरन महंगे और जहरीले कीटनाशक की इस्तेमाल करने की आवश्यकता पड़ जाती है।
सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम के लाभ
धान अवशेष के छोटे-छोटे टुकड़ो को आसानी से मिट्टी के अंदर मिला सकते है या जीरो टिल ड्रिल और हैप्पी सीडर का उपयोग करके इन्हे ज्यों का त्यों छोड़ा जा सकता है।
गेहूं की बिजाई के लिए उपयोग होने वाले हैप्पी सीडर की कार्य क्षमता में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है। •अगली फसल की बुवाई से पहले किसानों को धान की पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
• मिट्टी की सतह पर उपस्थित अवशेष एक मल्च के रूप में काम करते है, जो गेहूं के अंकुरण में मदद के साथ-साथ नमी को बचा कर जल संरक्षण में भी सहायक है।
अवशेष समय के साथ गल सड़ कर मिट्टी में जैविक तत्वों को बढ़ाने, पोषक तत्वों को बनाए रखने व मिट्टी की संरचना को सुधारने में भी मदद करते है।
कटाई और अवशेष प्रबंधन एक साथ
सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम एक ऐसी मशीन है, जिसमें कंबाइन हार्वेस्टर के साथ एक अतिरिक्त उपकरण जुड़ा होता है। जिससे यह मिट्टी की सतह पर खड़े पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है, जिससे फसल की कटाई और अवशेष प्रबंधन दोनों एक ही ऑपरेशन में किया जा सकता है।
इंजी. पंकज मिंज
सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट (एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग), कृषि विज्ञान केंद्र, बिलासपुर