Bhanupratappur सुदामा चरित्र, परिक्षीत मोक्ष के साथ ही कथा विश्राम
Bhanupratappur भानुप्रतापपुर। नव निर्मित श्रीराधा कृष्ण मंदिर से मंगलवार शाम 7 बजे डीजे के धुन पर आतिशबाजी के साथ ही भव्य श्रीराध कृष्ण की शोभायात्रा झांकी निकली गई। शोभायात्रा नगर के मुख्य चौक से होते हुए बस स्टैंड, व दल्ली नाका रोड स्थित देव स्थलों होते हुए रात्रि 11 बजे वापस पहुची। जय श्री राधेकृष्ण भजन पर भक्तजन थिरकते रहे। वही चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी बुधवार को महान्यास,प्राण प्रतिष्ठा,श्री राम जन्मोत्सव एवं श्री प्रधुम्न जन्म,शेय विवाह प्रसंग,श्री सुदामा चरित्र, परिक्षित मोक्ष कथा के साथ ही कथा विश्राम हुआ।
Bhanupratappur स्थानीय वृन्दावन धाम श्रीराधाकृष्ण मंदिर में सुबह से देर रात्रि तक अयोध्या से आचार्य पंडित सदाशिव तिवारी, आचार्य अजय शर्मा, आचार्य पंडित आदर्श तिवारी,व वृंदावन धाम से आचार्य पंडित कुलदीप तिवारी,ओझा से पंडित आदित्य एवं पंड़ित अविनाश जी महाराज के द्वारा प्रतिदिन पूजा पाठ चलता रहा जिससे शहर का पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। बता दे कि विगत 10 से 18 अप्रील तक श्रीमद्भागवत कथा एवं श्रीराधाकृष्ण मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम पूरा विधि विधान से चल रहा। बुधवार को राम नवमी के पावन अवसर पर श्रीराधाकृष्ण के प्राणप्रतिष्ठा सम्पन्न हो गया है।
शोभायात्रा के दौरान क्रमवार पहली झाँकी श्री कृष्ण रूखमणी जी, माता दुर्गा व माता काली जी, राम लक्ष्मण व माता जानकी,भोलेबाबा माता पार्वती जी एवं अंत मे श्री राधाकृष्ण, शिवलिंग , भगवान गणेश, कार्तिक की मूर्तियों की झांकी रही। झांकी के आगे पीछे सैकड़ो भक्त नाचते गाते चलते रहे। भजन मंडली टोली भी शोभायात्रा के दौरान भजन गाते रहे। मुख्य चौक पर जमकर आतिशबाजी की गई।
भगवान के दर्शन के लिए जगह जगह भक्तों की लाइन लगी रही जिनके द्वारा पूजन किया गया वही भक्तजनों के लिए रास्ते मे श्रद्धालुओं के द्वारा स्वल्पाहार, शीतल जल की व्यवस्था की गई थी।
श्रीमद्भागवत कथा के आठवें दिन बुधवार को व्यासपीठ पर विराजमान पंडित अविनाश महराज ने कथा के माध्यम से बताई की कालान्तर में रुक्मिणी जी के गर्भ से प्रद्युम्न का जन्म हुआ। शम्बरासुर को यह ज्ञात था कि रुक्मिणी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी।
सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुन्दर वर्णन किया। सुदामा जी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते । गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राह्मण आया है।
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कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते । उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंघासन पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा जी अपनी फूंस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। अगले प्रसंग में शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ कथा का विराम हो गया।