(Basant Panchami) बसंत पंचमी पावन पर 600 साल पुरानी परंपरा त्रिशूल
(Basant Panchami) दंतेवाड़ा ! 52 शक्तिपीठों में एक पीठ मां दंतेश्वरी को माना जाता है.. बसंत पंचमी के अवसर पर बेलपत्र और आम के फूल से मां दंतेश्वरी की पूजा की गई. इसके बाद मंदिर प्रांगण में त्रिशूल की पूजा कर उसे स्थापित किया गया. यह परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही हैं. जो मां दंतेश्वरी की मंदिर के सेवादारो व 12 लंकावारो द्वारा आज भी निभाई जा रही है !
(Basant Panchami) त्रिशूल स्तंभ में रोज शिवरात्रि तक जलाया जाता है दीपक मंदिर के पुजारी हरेंद्रनाथ जिया ने बताया कि बसंत पंचमी के दिन सर्वप्रथम मां दंतेश्वरी की पूजा-अर्चना कर त्रिशूल स्तंभ की स्थापना की जाती है. स्तंभ में प्रतिदिन शिवरात्रि तक दीपक जलाया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद से मेला – मड़ई का आगाज हो जाता है.
विश्व प्रसिद्ध 9 दिन तक चलने वाले मेले के लिए 365 गांव के देवी-देवता को आमंत्रित किया जाता है. 9 दिनों तक मेला चलता है. दसवें दिन विधि-विधान से होलिका दहन किया जाता है. जिसके बाद दूरदराज से आए देवी-देवताओं को सम्मान भेंट कर विदाई दी जाती है.
(Basant Panchami) त्रिशूल स्थापना के बाद शाम को मां दंतेश्वरी का छत्र नगर भ्रमण के लिए निकाला गया. मां दंतेश्वरी के छत्र की पूजा-अर्चना कर श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया और आम के फुल छत्र में अर्पित किए जाते हैं. जिसके बाद माई जी के छत्र को पुलिस जवानों पुनः सलामी दी जाती है. इसके बाद मां दंतेश्वरी का छत्र वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया गया बसंत पंचमी मनाते हुए आमजन एक दूसरे के गले मिलते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं