आधुनिक भारत के अनन्य राजनेता : अटल बिहारी वाजपेयी


डॉ. सुशील त्रिवेदी

भारत के राजनीतिक इतिहास में सन् 1967 में हुए आम चुनाव के बाद एक नया अध्याय शुरू हुआ था। आजादी के पहले और आजादी मिलने के बाद भारत में संसद और विधानसभाओं में कांग्रेस का लगभग एकतरफा वर्चस्व बना हुआ था। वर्ष 1967 में हुए चुनावों में कांग्रेस को पहली बार अपेक्षित सफलता नहीं मिली और अनेक राज्यों मंं कांग्रेस के स्थान पर संयुक्त विधायक दल की सरकारें बनीं। ऐसा ही तत्कालीन मध्यप्रदेश में हुआ था। यह उल्लेखनीय है कि तत्कालीन मध्यप्रदेश के महाकोशल क्षेत्र में, जिसमें छत्तीसगढ़ शामिल था, कांग्रेस का दबदबा बना हुआ था, विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का जोर था, भोपाल क्षेत्र में कांग्रेस और साम्यवादी पार्टी का वर्चस्व था और मध्य भारत में जनसंघ का प्रभाव था। बहरहाल, वहां कांग्रेस सरकार ही बनती रही।

मध्यप्रदेश में 1967 के आम चुनाव में जनसंघ ने आंतरिक रूप से बड़ी तैयारी कर कांग्रेस को रणनीतिक चुनौती दी थी। यह आम चुनाव जनसंघ के लिए सर्वाधिक अनुकूल सिद्ध हुआ था। मध्यप्रदेश विधानसभा में 296 सीटें थी। कांग्रेस बहुमत पाने से पिछड़ गई थी। जनसंघ को 1962 के चुनाव के मुकाबले 1967 में लगभग दुगुनी- अर्थात 78 सीटें मिली थीं। मध्यप्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से जनसंघ को 10 सीटें मिली थीं। गौर करने की बात है कि उस चुनाव में लोकसभा में देश भर से जनसंघ को कुल 21 सीटें मिली थीं अर्थात उसे आधी से अधिक सीट केवल मध्यप्रदेश से मिली थी।

सन् 1967 के चुनाव के प्रचार के दौरान की एक घटना का स्मरण किया जाता है। उस चुनाव में मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान वाजपेयीजी भोपाल आए थे। भोपाल क्षेत्र, जहां कांग्रेस और साम्यवादी पार्टी को लगातार सफलता मिलती थी, वहां वाजपेयीजी ने जिस तरह से चुनावी सभा की वह उनकी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण का प्रमाण थी। वाजपेयीजी ने पुराने भोपाल के मध्य में घनी आबादी वाले जुमेराती बाजार और व्यापार की गहमा-गहमी वाले इलाके में सुबह-सुबह आम सभा ली। इस सभा की जानकारी मिलने पर वाजपेयीजी को सुनने के लिए अगर पुराने भोपाल शहर के आम नागरिक एकत्र हुए थे तो नये भोपाल में रहने वाले बुद्धिजीवी और सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी पहुंचे थे। यह बिंदु अपने आप में एक बड़े बदलाव का संकेत दे रहा था कि जो मतदाता जनसंघ की रीति-नीति के पारंपरिक समर्थक नहीं थे, वे भी वाजपेयीजी की चुनावी सभा में उनके विचारों को सुनने के लिए सभा में उपस्थित थे। अपने श्रोताओं को वाजपेयी जी ने अपनी दूरदृष्टि, पूर्ण राष्ट्रीय चेतना संपन्न राजनीतिक विचारधारा और अत्यंत प्रभावी वक्तत्व कला से आकर्षित किया था।

भारत की राजनीति में 1967 में दिशान्तरकारी परिवर्तन लाने का जो प्रयास किये गए थे उनमें एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस चुनाव में जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने चुनाव-प्रचार की बागडोर संभाली थी। वाजपेयी जी उत्तरप्रदेश के बलरामपुर से स्वयं जीतकर लोकसभा सदस्य बने थे और उनके नेतृत्व में जनसंघ को मध्यप्रदेश तथा अन्यत्र बड़ी सफलता मिली थी।
यह बात और भी महत्वपूर्ण है कि 1968 में पं. दीनदयाल उपाध्याय के आकस्मिक निधन के बाद वाजपेयी जी ही भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वाजपेयी जी की उदार और समावेशी राजनीतिक सोच का प्रभाव लगातार बढ़ रहा था। एक ध्रुवीय राजनीति के स्थान पर राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण, राष्ट्रसेवा के लिए कटिबद्धता और राष्ट्र के विकास तथा सर्वजन कल्याण के लिए संयुक्त प्रयासों पर जोर देने के कारण वाजपेयी जी सबसे अलग छवि वाले राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर कर आ गए थे। मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग था जो कांग्रेस या वामपंथी सोच के लिए प्रतिबद्ध नहीं था किंतु वह एक नई दिशा की खोज में था। वह वाजपेयीजी के इन गुणों के कारण जनसंघ की ओर आकर्षित हुआ। और इसी कारण मध्यप्रदेश में वाजपेयीजी के नेतृत्व में उठी नई राजनीतिक लहर क्रमश: उत्तर भारत में फैल गई और यही लहर बाद में जनसंघ के नए सांगठनिक रूप भारतीय जनता पार्टी को उत्तरोत्तर नई ऊंचाई की ओर लेकर गई।

सन् 1998 का एक वाकया है। बिलासपुर में रेलवे जोन की स्थापना की मांग लंबे समय से चल रही थी किंतु उसकी पूर्ति नहीं हो रही थी। सन् 1998 में केन्द्र में प्रधानमंत्री वाजपेयीजी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनीं तो केन्द्र ने बिलासपुर में रेलवे जोन की स्थापना का निर्णय लिया। निर्णय होने के बावजूद जोन की स्थापना का कार्य रूका हुआ था। सितम्बर 1998 में बिलासपुर के भाजपा नेताओं के आग्रह पर वाजपेयीजी ने जोन के उद्घाटन के लिए बिलासपुर आना स्वीकार किया। दिलचस्प बात यह है कि रेलवे जोन के उद्घाटन के लिए बिलासपुर आने के लिए उन्होंने बिलासपुर के जमीनी नेताओं को मौखिक स्वीकृति दे दी। प्रधानमंत्री की किसी भी यात्रा या कार्यक्रम के लिए जो लंबी शासकीय औपचारिकताएं होती हैं वे बाद में की गईं। उनके बिलासपुर आने से तत्कालीन बिलासपुर जिले में विधानसभा चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली थी। यह सफलता 2003 में और भी बड़ी हुई। उनकी बिलासपुर यात्रा जनता से वाजपेयीजी के जुड़ाव, भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय नेताओं के प्रति लगाव और विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता को विशेष रूप से रेखांकित करती है।

एक बड़ी घटना है जो वाजपेयीजी के लोकतांत्रिक सोच की गंभीरता, जनता से किये गए वादों को हर हाल में पूरा करने के लिए कटिबद्धता और प्रशासकीय परिपक्वता का स्मरण दिलाती है। सन् 1998 में आम चुनाव प्रचार के दौरान वाजपेयीजी ने मध्यप्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य बनाने का वादा किया था। उस चुनाव में छत्तीगसढ़ सहित मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सफलता मिली थीं। कुछ विश्लेषक यह मानते थे कि छत्तीसगढ़ क्षेत्र में कांग्रेस के बहुमत को देखते हुए केन्द्र सरकार, नए छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण नहीं कराएगी। केन्द्र में वाजपेयीजी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। वाजपेयीजी ने छत्तीसगढ़ की जनता से किये अपने वादे को पूरा करते हुए 01 नवम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण करने के लिए संपूर्ण संसदीय और सांविधानिक कार्रवाई संपन्न कराई। यह रेखांकन योग्य बात है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर यहां कांग्रेस की सरकार बनी। बहरहाल, 2003 के चुनाव में वाजपेयीजी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने भाजपा की सरकार को स्थापित किया। इसीलिए वाजपेयीजी को छत्तीसगढ़ के निर्माता के रूप में सादर याद किया जाता है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास की ये कुछ ऐसी घटनाएं हैं, जो यह सिद्ध करती है कि वाजपेयीजी समकालीन भारत के एक अनन्य जननेता थे। वाजपेयी जी के लिए राजनीति सत्ता पाने का खेल नहीं थी, बल्कि राष्ट्र सेवा का संकल्प थी। वे अपनी नेतृत्व क्षमता, दूरदर्शिता और वाकपटुता के साथ विशिष्ट जन नेता के रूप में स्थापित थे। उन्होंने संवाद और सहमति की राजनीति की थी, गठबंधन की मर्यादा निभाई थी और राजनीतिक क्षेत्र में वैचारिक विरोध की गरिमा को साकार किया था।

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *