मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मनुष्य और पशु-पक्षियों का रिश्ता गहरा रहा है। कभी उन्हें भगवान मानकर पूजा की गई, तो कभी उनकी उपयोगिता के आधार पर पाल लिया गया। सांप की पूजा भी होती है और डर के कारण उसे मारा भी जाता है। यह विरोधाभास मानव और प्रकृति के रिश्ते की जटिलता को दर्शाता है। आज यही रिश्ता न्याय और सुरक्षा की मांग कर रहा है—न केवल इंसानों के लिए, बल्कि उन बेजुबान पशु-पक्षियों के लिए भी।
भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 लागू है, जिसके तहत अधिकांश जंगली जानवरों का शिकार प्रतिबंधित है। बावजूद इसके, शिकार और तस्करी की घटनाएँ थमती नहीं हैं। बाघ और हाथियों जैसे विलुप्तप्राय जीवों की रक्षा के लिए सरकार और समाज दोनों सक्रिय हैं। इको-सिस्टम के संतुलन के लिए यह आवश्यक भी है कि सभी जीव-जंतु अपने प्राकृतिक परिवेश में सुरक्षित रहें।
हाल ही में मुकेश अंबानी के पुत्र अनंत अंबानी ने गुजरात के जामनगर में वंतारा प्राणी बचाव और पुनर्वास केंद्र स्थापित किया है। संरक्षण के नाम पर बने इस जू को लेकर कई शिकायतें उठीं, जिनकी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया है। यह कदम बताता है कि वन्यजीव संरक्षण के नाम पर होने वाली गतिविधियों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
आवारा कुत्तों की बढ़ती चुनौती
भारत में आवारा कुत्तों की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। 2024 में 3.71 करोड़ से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा, जिनमें बच्चे और बुजुर्ग बड़ी संख्या में शामिल हैं। इस स्थिति ने सुप्रीम कोर्ट को कठोर हस्तक्षेप के लिए मजबूर किया। 11 अगस्त को शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया था कि सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर में रखा जाए और उन्हें दोबारा न छोड़ा जाए। लेकिन इस आदेश पर कुत्ता-प्रेमियों और पशु-प्रेमी संगठनों ने विरोध दर्ज कराया। इसके बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ ने संशोधित आदेश पारित किया, जिसके अनुसार आवारा कुत्तों का बंध्याकरण और टीकाकरण अनिवार्य है। केवल रैबीज संक्रमित और आक्रामक कुत्तों को अलग शेल्टर में रखा जाएगा, बाकी को उनके मूल स्थान पर छोड़ा जाएगा। प्रत्येक वार्ड में फीडिंग प्वाइंट बनाए जाएंगे ताकि कुत्तों को सड़क पर भोजन न दिया जाए। आदेश का उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी। पशु-प्रेमी आवारा कुत्तों को गोद भी ले सकते हैं, बशर्ते उनकी जिम्मेदारी होगी कि वे सड़क पर वापस न आएँ।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था आदेशों के पालन में बाधा डालेगी तो उस पर कठोर कार्रवाई होगी।
सामाजिक और कानूनी संतुलन
वन्यजीव संरक्षण और आवारा कुत्तों की समस्या, दोनों ही मुद्दे यह संकेत देते हैं कि कानून और संवेदनशीलता के बीच संतुलन आवश्यक है। संरक्षण के प्रयासों ने जहाँ कई सकारात्मक नतीजे दिए हैं, वहीं गरीब समुदायों की आजीविका प्रभावित हुई है। सर्कस और तमाशों में जानवरों पर रोक लगना सही दिशा है, पर इससे जुड़े लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था भी जरूरी है।
सरकार और समाज को मिलकर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे
प्रभावित समुदायों के लिए कौशल विकास और वैकल्पिक आजीविका। इको-टूरिज्म और स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा। वन्यजीवों और आवारा कुत्तों के प्रति संवेदनशीलता और शिक्षा। मजबूत ढांचागत व्यवस्था—डॉग शेल्टर, पशु चिकित्सक और विशेष वाहन।
भारत में पशु-पक्षियों और मनुष्य का रिश्ता सिर्फ उपयोगिता या भय का नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व का है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश और वंतारा विवाद यह स्पष्ट करते हैं कि संरक्षण के नाम पर कोई भी समझौता बिना पारदर्शिता और जवाबदेही के स्वीकार्य नहीं है। जरूरत इस बात की है कि हम न केवल मनुष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करें, बल्कि उन बेजुबान जीवों की न्याय और जीवन का अधिकार भी मान्यता दें। तभी इंसान और पशु-पक्षियों के बीच यह अनोखा रिश्ता संतुलन और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ सकेगा।