भारतीय महिला क्रिकेट टीम अब विश्व विजेता बन चुकी है। दो बार फाइनल में पहुंचकर
भी जो ख्वाब अधूरा रह गया था, हरमनप्रीत कौर की कप्तानी वाली टीम
ने आखिरकार उसे साकार कर दिखाया। लेकिन इस जीत के पीछे
एक ऐसा नाम है, जो शायद मैदान पर नहीं दिखा, पर हर जीत की
स्क्रिप्ट उसी ने लिखी — कोच अमोल मजूमदार।

हरमनप्रीत ने रचा इतिहास, गुरु के चरण छुए
रविवार रात मुंबई के डी वाई पाटिल स्टेडियम में भारत ने इतिहास रच दिया। महिला विश्वकप के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर भारत पहली बार विश्व चैंपियन बना। ट्रॉफी मिलने के बाद एक भावुक दृश्य ने हर दिल को छू लिया.
कप्तान हरमनप्रीत कौर ने कोच अमोल मजूमदार के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। वो सम्मान सिर्फ एक कोच के लिए नहीं, बल्कि उस शिल्पी के लिए था जिसने पर्दे के पीछे से पूरी टीम को गढ़ा।

अमोल मजूमदार — वो खिलाड़ी जो खुद नहीं खेल पाया, पर टीम को बना गया चैंपियन
अमोल मजूमदार ने घरेलू क्रिकेट में रनों का पहाड़ खड़ा किया। उनके नाम फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 11,167 रन हैं, लेकिन किस्मत ने उन्हें भारतीय टीम की ब्लू जर्सी पहनने का मौका नहीं दिया।
उन्होंने मुंबई के लिए रणजी डेब्यू मैच में ही 260 रन की ऐतिहासिक पारी खेली थी. आज तक किसी भारतीय का फर्स्ट क्लास डेब्यू में ये सबसे बड़ा स्कोर है.
वो 1994 में अंडर-19 टीम के उपकप्तान रहे और राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों के साथ खेले।

लेकिन उस दौर में भारत का मिडिल ऑर्डर इतना मजबूत था, कि इस हुनरमंद बल्लेबाज को मौका नहीं मिल पाया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी — बल्कि मैदान से बाहर रहकर क्रिकेट को नई दिशा देने का फैसला किया। 2014 में फर्स्ट क्लास क्रिकेट से संन्यास लिया और कोचिंग की राह चुनी।
