कविता – स्ट्रेचमार्क्स

वो स्त्रियां 

जिनके पेट पर स्ट्रेच मार्क्स होते हैं 

सुंदर होती हैं 

सिर्फ तन से हीं नहीं, मन से भी

क्योंकि उन्होंने अपनी सारी सुंदरता

अपने बच्चों, पति और सास ससुर को

समर्पित कर दिया 

वो भूल गई अपने सारे नाज नखरे

छोड़ आई उसे अपने मायके में 

उसकी पतली कमर 

उसकी बलखाती चाल 

उसकी स्निग्ध मुस्कान

हो सकता है..खत्म हो गए हों

पर दौड़ पड़ती है 

अपने पति, बच्चों और ससुराल वालों की

एक आवाज पर

घड़ी की सुईयों की तरह 

हर समय टिक टिक टिक टिक चलती है 

अनवरत…लगातार

बिना थके ..बिना रूके 

उसे याद भी नहीं रहता … कितने दिन हो गए 

नेल पॉलिश की मनपसंद शेड  लगाए

देख नहीं पाती वह कि धीरे धीरे उसके 

बालों में सफेदी झलकने लगी है 

भूलती जा रही चाट गोलगप्पे का स्वाद 

सहेलियों के साथ की वो ठहाके मार हँसी 

बात बात पर तुनक जाने वाली लड़की

कब इतनी सहनशील हुई जा रही 

कि सबके गुस्से को भी 

गरल पीते शिव की तरह  पीती जा रही 

मगन हुई जा रही अपने संसार में 

बिना चेहरे पर एक शिकन लाए 

तो सुन लो स्त्रियों..

चंद सोनम, मुस्कान, निकिता 

तुम्हारी गरिमा को 

बिलकुल भी ठेस नहीं पहुंचा सकते

क्योंकि तुम्हारे पेट पर पड़े ये स्ट्रेच मार्क्स 

तुम्हारी खूबसूरती और तुम्हारे आत्मविश्वास 

दोनों में चार चाँद लगा रहे हैं…

वीणा राज

इंदिरापुरम, गाजियाबाद 

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