छत्तीसगढ़ अपनी रजत जयंती मना रहा है और इसी अवसर पर राज्य की राजधानी के भविष्य को परिभाषित करने वाला एक नया अध्याय भी शुरू हो रहा है। नवा रायपुर स्थित नए विधानसभा भवन में इस वर्ष का शीतकालीन सत्र आयोजित होने जा रहा है, जिसे प्रधानमंत्री द्वारा हाल में उद्घाटित किया गया है। यह परिवर्तन केवल भवन बदलने का नहीं बल्कि राजधानी की नियोजित अवधारणा को साकार करने का ऐतिहासिक क्षण है। नए परिसर में स्थापित अटल बिहारी वाजपेयी की आदमकद प्रतिमा इस जगह को केवल वास्तुकला के लिहाज से नहीं बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी सम्मान देती है। नवा रायपुर, नई संरचनाएँ और क्या वहाँ सरकारी कामकाज की नई कार्यशैली विकसित होगी या फिर लोग कम्फ़र्ट ज़ोन में बैठकर वही सब करेंगे जिसके लिए शासन प्रशासन और राजनीतिक सिस्टम बदनाम है। पुराने विधानसभा भवन को अलविदा कहते समय 25 साल के इतिहास, जनअपेक्षाओं पर खरे उतर पाने का लेखा जोखा भी प्रस्तुत हो पाया। छत्तीसगढ़ देश के नक्शों में 26 के राज्य के रूप में उभर कर आकार की दृष्टि से देश का 9 वाँ बड़ा राज्य तो बन गया पर क्या अभी अपने विजन डाक्यूमेंट्र के लक्ष्यों तक पहुँच पाया है। इतिहास अपनी कमियों से सबक लेकर आगे बढऩे में मददगार होता है बर्शत उससे सीखने की ललक हो।
नवा रायपुर का सपना राज्य गठन के तुरंत बाद अजीत जोगी सरकार ने देखा था और उस समय इस नई राजधानी के लिए संरचनात्मक रूपरेखा तैयार हुई। उस दौर में भाजपा ने इसका विरोध भी किया, पर 2003 में सत्ता में आने के बाद इसी परियोजना को आगे बढ़ाया। फिर भी राजधानी का निर्माण जिस गति से होना चाहिए था, वह संभव नहीं हो सका। मंत्रालय और कई विभागों का स्थानांतरण तो हुआ, पर आवासीय कॉलोनियों का विकास, रोजमर्रा की सुविधाएँ, बाजार, परिवहन और प्रशासनिक गतिविधियों का दायरा लंबे समय तक सीमित रहा। आज भी नवा रायपुर में बने मंत्रियों और अधिकारियों के आवास पूरी तरह आबाद नहीं हुए हैं, कर्मचारी बसों पर निर्भर हैं और शहर का सामाजिक ढांचा अपनी अपेक्षित रफ्तार से नहीं बढ़ सका। इसके बावजूद विधानसभा के यहां शिफ्ट होने के बाद यह विश्वास मजबूत हुआ है कि सदन के सत्रों की नियमितता और सरकारी गतिविधियों का केंद्र बनने से नवा रायपुर की बसाहट को अब वास्तविक गति मिलेगी।
इस बीच पुराने विधानसभा भवन में एक विशेष सत्र आयोजित कर उसे भावनात्मक विदाई दी गई। ढाई दशक तक छत्तीसगढ़ की राजनीति, नीतियों, बहसों, टकरावों और ऐतिहासिक निर्णयों का साक्षी रहा यह भवन केवल दीवारें नहीं बल्कि लोकतंत्र की जीवंत स्मृतियों का भंडार है। इसी सदन ने वह रात देखी थी जब अविश्वास प्रस्ताव पर लगातार उन्नीस घंटे बहस चली और पूरे प्रदेश ने संसदीय मर्यादा की एक अनोखी मिसाल देखी। यह वही सदन है जहाँ पहली बार सत्ता पक्ष के एक वरिष्ठ मंत्री ने अपने ही सरकार के खिलाफ वॉकआउट कर सबको स्तब्ध कर दिया था। और यही वह परिसर है जिसने देश में अनोखा नियम बनाया कि वेल में उतरते ही सदस्य स्वत: निलंबित माना जाएगा—एक नियम जिसने छत्तीसगढ़ विधानसभा की गरिमा और अनुशासन को विशिष्ट पहचान दिलाई।
इन संसदीय स्मृतियों को याद करते हुए यह भी स्वाभाविक है कि राज्य गठन के शुरुआती दिन आज मन में ताज़ा हो उठते हैं। 1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया था, तब न स्थायी राजधानी थी, न विधानसभा का भवन। पहला सत्र राजकुमार कॉलेज के जशपुर हॉल में टेंटों और किराए की कुर्सियों के बीच आयोजित हुआ। वही अस्थायी व्यवस्था इस राज्य की विधायी परंपरा का प्रारंभ बनी। कुछ ही महीनों बाद जिस भवन में सत्र स्थानांतरित हुआ वह भी मूलत: भूजल प्रशिक्षण संस्थान था, जिसे बाद में विधानसभा चौक कहा जाने लगा। इन अस्थायी नींवों पर ही छत्तीसगढ़ की विधायी पहचान धीरे-धीरे आकार लेती गई।
रजत जयंती के अवसर पर आयोजित इस वर्ष का शीतकालीन सत्र विकसित भारत 2047 पर केंद्रित होगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस अवसर पर रजनी ताई उपासने, बनवारी लाल अग्रवाल और राधेश्याम शुक्ला जैसे दिवंगत नेताओं को श्रद्धांजलि दी, जिनका योगदान छत्तीसगढ़ की लोकतांत्रिक यात्रा में अविस्मरणीय है। वहीं सदन में नेतृत्व और नीति को लेकर तेज बहसें भी सुनाई दीं—अजय चंद्राकर ने रमन सिंह के कार्यकाल को स्वर्णिम युग बताया, जबकि भूपेश बघेल पर योजनाओं की प्रक्रियागत कमज़ोरियों को लेकर तीखी टिप्पणियाँ भी हुईं।
आज नए सदन में प्रवेश केवल एक इमारत बदलने का औपचारिक निर्णय नहीं है। यह उन पच्चीस वर्षों की यात्रा का सार है जिसमें अस्थायी हाल, किराए की कुर्सियाँ, सीमित साधन, नई परंपराएँ, तीखी रातें, राजनीतिक उठापटक, अनुशासन की मिसालें और लोकतंत्र की परिपक्वता एक साथ गुंथी हुई हैं। और अब यही यात्रा नवा रायपुर में एक नए परिवेश में जारी होगी—जहाँ आधुनिक ढांचा तैयार है, पर उसे जीवन देने के लिए अब नियमित गतिविधियों की धडक़नें बसना अभी बाकी हैं। विधानसभा के स्थानांतरण के साथ यह उम्मीद प्रबल हुई है कि राजधानी का सपना अब वास्तव में अपने अगले और निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है। छत्तीसगढ़ की रजत जयंती केवल अतीत को याद करने का अवसर नहीं, बल्कि उस भविष्य की ओर बढऩे का क्षण है जहाँ नया सदन, नई राजधानी और नया आत्मविश्वास—तीनों मिलकर आने वाले दो दशकों की दिशा तय करेंगे।