• डॉ . सुधीर सक्सेना
जोहरान क्वामे ममदानी अब न्यूयार्क के निर्वाचित महापौर है। उनके कुल- गोत्र और सजरे के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। बिला शक उनका न्यूयार्क का मेयर चुना जाना मायने रखता है। अनेक कारणों से उनका जेरे-बहस होना भी स्वाभाविक है। अपनी ‘विक्ट्री स्पीच में उनका यूजीन डेब्स और पं. जवाहर लाल नेहरू का जिक्र करना अकारण कतई नहीं है और यह उनकी राजनीतिक सोच और सियासी मिजाज को व्यक्त करता है। इनमें यूजीन डेबस की छवि जहाँ खाँटी समाजवादी की रही, वहीं पं. नेहरू को सेक्यूलर वाद, राष्ट्र -निर्माण और विकास के शीर्ष व्यक्तित्व के तौर पर जाना जाता है। यूजीन को अमेरिका में समाजवाद की परंपरा के सूत्रपात का श्रेय प्राप्त है, तो पं. नेहरू उपनिवेशवाद विरोध, निर्गुट आंदोलन और स्वतंत्रता की विश्वव्यापी लहर के प्रतीक हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में पं. नेहरू की अपार लोकप्रियता और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा उनकी भावभीनी अगवानी के प्रसंग काफी चर्चित हैं। लेकिन एक और सन्दर्भ है, जो पं. नेहरू को अमेरिका से जोड़ता है। यह संदर्भ है पं. नेहरू का बाल्डविन से मैत्री का, जो अमेरिका में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) के संस्थापक थे। पं. नेहरू और बाल्डविन अभिन्न मित्र थे। दोनों मित्रों ने लीग अगेंस्ट इम्पीरियलिज़्म में साथ- साथ काम किया। पंडित नेहरू जब-तब बाल्डविन से सलाह लेते थे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बेटी सुश्री अमृत सिंह एसीएलयू से जुड़ी हुई है। ममदानी जिस विचारधारा में यकीन रखते हैं, उसकी जड़े डेब्स और बाल्डविन के विचारों की माटी में मौजूद हैं। इन सन्दर्भो पर गौर करें तो ममदानी का अपने विजय-उद्घोष में ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के उल्लेख के औचित्य को समझा जा सकता है।
पं. नेहरू और जोहरान ममदानी के मध्य एक और दिलचस्प साम्य खोजा गया है। ममदानी न्यूयार्क के युवतम महापौर हैं। उनकी उम्र 34 वर्ष है। प्रतापभानु मेहता ने पं. नेहरू के जीवन के एक अल्पज्ञात लगभग विस्मृत लेकिन निर्णायक अध्याय का उल्लेख किया है कि पं. नेहरू भी 34 वर्ष की उम्र में इलाहाबाद नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष चुने गये थे। जाहिर है कि उन्हें यह भूमिका राष्ट्रीय राजनीति से विचलन लगी, लेकिन उन्होंने जल्द ही भांप लिया कि इस भूमिका के जरिये इलाहाबादियों के जीवन को, थोड़ा अधिक सहनीय और थोड़ा कम पीड़ादायी बनाया जा सकता है। बताते हैं कि पं. नेहरू की नगरपालिक-प्राथमिकतायें समाज के हाशिये के लोगों से जुड़ी हुई थीं। उन्हें गरीबों, एक्केवालों, वेश्याओं और मजदूरों के हितों की चिंता थी। वह चुंगी यानि ऑक्ट्रॉय के विरोधी थे और आवास तथा परिवहन उनके सरोकारों में शामिल थे। वह सबके लिये आवास के वियेना मॉडेल से प्रभावित थे और मानते थे कि शहर नागरिक आदर्शों की प्रयोगशालायें हैं।
उक्त संदर्भों को देखें तो समझ सकते हैं कि भारत-अफ्रीकी युगल की संतान जोहरान क्वामे ममदानी के लिये पं. नेहरू की क्या अहमियत है और नागरिक आदर्श तथा सिविल लिबर्टीज उनके लिये क्या मायने रखती हें। उनके नाम और कुल-नाम के बीच मौजूद क्वामे भी कम अर्थपूर्ण नहीं है। क्वामे एन्क्रूमा अफ्रीकी राष्ट्र घाना के राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री थे और उन्हें पैन – अफ्रीकी नेता और अश्वेत मुक्ति के महानायक के तौर पर देखा जाता है। वह अफ्रीका के लेनिन कहलाये। सन 1963 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार से नवाजा गया। नाम में क्वामे का समावेश दर्शाता है कि जोहरान ममदानी की रगों में किन विचारों का रूधिर प्रवाहित है? वैसे भी पं. नेहरू की शख्सियत अमेरिका में एक बड़े वर्ग के लिये प्रेरक रही है। मार्टिन लूथरा किंग (जूनियर) ने कहा था कि मानवता के सभ्य बनने के इस संघर्ष में नेहरू की विराट आकृति सभी परिषदों की मेजों पर अदृश्य रूप से विद्यमान है। दुनिया उन्हें याद करती है और क्योंकि उनकी आवश्यकता आज भी है। वह आज भी इस अस्थिर दुनिया में एक जीवित शक्ति बने हुये हैं।
बहरहाल, ममदान अब उस न्यूयार्क के महापौर हैं, जो निर्विवाद रूप से वैश्विक-राजधानी (वर्ल्ड कैपीटल) है। गौरतलब है कि ममदानी राष्ट्रपति ट्रंप के खुले और मुखर विरोध के बावजूद चुनाव में विजयी हुये हैं। ट्रंप ने पुरजोर कोशिश की कि ममदानी चुनाव में विजयी न हों। अब ममदानी की जीत से ट्रंप की भृकुटी में बल पड़ना स्वाभाविक है। बेढब और बड़बोले ट्रंप के लिये ममदानी की जीत को पचाना कठिन होगा, क्योंकि ममदानी उस न्यूयार्क के मेयर चुने गये हैं, जो ट्रंप का ‘एम्पायर’ माना जाता है। यहां फिक्थ एवेन्यू पर ट्रम्प टॉवर, एक मिक्स्ड, यूज स्काईसक्रेपर है, जो ट्रंप आर्गेनाइजेशन का हेडक्वार्टर है। यह लंबे समय तक ट्रंप महाशय का घर भी रहा है। अन्य संपत्त्यिों में सेन्ट्रल पार्क वेस्ट पर ट्रंप इंटरनेशनल होटल एंड टॉवर और बा्रॅन्क्स में एक पब्लिक गोल्फ कोर्स व फेरी पॉइंट पर ट्रंप गोल्प लिंक्स शामिल है। ट्रंप अपने पद की गरिमा को बिसरा कर न्यूयार्कवासियों को चेतावनी देने से बाज नहीं आये कि गर वामपंथी ममदानी को चुना तो हालात और बदतर होंगे और वह राष्ट्रपति के नाते उन हालात में पैसा नहीं भेजेंगे। ट्रंप ने यहां तक कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है कि ममदानी जीत गये तो न्यूयार्क शहर पूरी तरह से आर्थिक और सामाजिक रूप से तबाह हो जायेगा।
ट्रंप के कथनों से स्पष्ट है कि ट्रंप ने न्यूयार्क के महापौर के चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था। अब ग्लोबल कैपीटल में युवा डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी की जीत से उनकी किरकिरी होना स्वाभाविक है। दरअस्ल, ट्रंप को नवंबर, 2026 में नियत मध्यावधि चुनाव का डर भी सता रहा है, जब अमेरिका की प्रतिनिधि सभी की सभी 435 सीटों के साथ सीनेट की 100 में से एक तिहाई सीटों का फैसला होगा। मध्यावधि चुनावों के दरम्यान 36 गवर्नर चुने जाते हैं। तब तक नगरपालिकओं और महापौर स्तर के चुनाव भी हो जायेंगे। चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने ममदानी की मुस्लिम पृष्ठभूमि पर करारे हमले किये थे और उन्हें यहूदी विरोधी करार दिया। जहां तक ममदानी का प्रश्न है, उन्हें अपनी मुस्लिम पहचान पर फख्र है। चुने जाने पर उन्होंने दो टूक कहा कि उम्मीद जिंदा है। न्यूयार्क अब ऐसा शहर नहीं रहेगा, जहां कोई इस्लामो-फोबिया फैलाकर चुनाव जीत सके।
ममदानी की जीत के साथ ही कुछ अन्य घटनाओं से भी ट्रंप की खाद भद्द पिटी है। वर्जीनिया में डेमोक्रेट एबिगेल स्पैन बर्गर ने गवर्नर का चुनाव जीत लिया है। वर्जीनिया की वह पहली महिला गवर्नर हैं। वहीं डेमोक्रेट ग़ज़ाला हाशमी ने लेफ्टिनेंट गर्वनर की रेस में रिपब्लिकन जॉन रीड को मात दे दी है। हैदराबाद में जनमी गजाला इस पर पर पहली दक्षिण एशियाई और पहली मुस्लिम महिला हैं। उधर न्यूयार्क के पड़ोस में न्यू जर्सी में डेमोक्रेट मिकीशेरिल गर्वनर चुने गये हैं। किस्सा कोताह यह कि रिपब्लिकन ट्रंप की हथेलियों से रेत फिसल रही है। जाहिर है कि उनकी रीति-नीति से अमेरिकी खुश नहीं हैं।
अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य में ममदानी के उदय से कयासों का रेला वह निकला है। सबसे बड़ा कयास ट्रंप की रणनीति और भावी फैसलों को लेकर है। प्रो. ग्रांट रीहर मानते हैं कि ममदानी को मुश्किल लड़ाई का सामना करना पड़ेगा। न्यूयार्क यूं भी शासन करने के मान से मुश्किल शहर है। बहरहाल, ममदानी आत्मविश्वास से भरे हुये हैं और न्यूयार्क को नयी रंगत देने के मूड में हैं। विदेश नीति के मोर्चे पर ममदानी फलस्तीन के कट्टर समर्थक हैं। भारत में गोधरा कांड को लेकर भी वह अपनी भावनाओं का इजहार कर चुके हैं। वह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पसंद नहीं करते और यहां तक कह चुके हैं कि वह मोदी के अमेरिका आने पर उन्हें मैडीसन स्क्वेअर पर सभा नहीं करने देंगे। बहरहाल, दुनियाभर में दक्षिण पंथी ताकतों के वर्चस्व के दौर में ममदानी की जीतने ताकतों के वर्चस्व ताकतों में उम्मीद नयी लौ बाल दी है। अमेरिकी सांसद बर्नी सैंडर्स का कहना सही है कि ममदानी की जीत आधुनिक अमेरिकी इतिहास के सबसे बड़े राजनीतिक उलटफेरों में एक है। माना जा रहा है कि ममदानी की जीत से अमेरिका की घरेलू राजनीति और राजनय में अंतर आयेगा। देखना दिलचस्प होगा कि ममदानी अपनी नीतियों को कैसे लागू करते हैं और राष्र्सपति ट्रंप का रवैया उनके प्रति कैसा रहता है और अगले साल मिड टर्म चुनाव क्या गुल खिलाते हैं? ममदानी ने जीत के बाद मंदिरों में जाकर अपनी नयी छवि सिरजी है और उनकी जीत इसकी तस्दीक करती है कि उन्हें आम लोगों से ‘कनेक्ट’ करने का हुनर हासिल है।